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जानिए भादों माह शुक्लपक्ष में 25 अगस्त को क्यों मनाया जाता है राधा अष्टमी

radha ashtami 2020

राधा अष्टमी

धर्म डेस्क। भादों माह शुक्लपक्ष की अष्टमी को श्रीराधाष्टमी के रूप में मनाया जाता है। यह व्रत चंद्रोदय व्यापिनी अष्टमी में करने का विधान है इसलिए 25 अगस्त को दिन के 01बजकर 58मिनट पर सप्तमी तिथि समाप्त हो रही है उसके पश्च्यात अष्टमी तिथि आरम्भ हो रही है जो 26 अगस्त को दिन के 10बजकर 28 मिनट तक ही विद्यमान रहेगी उसके बाद नवमी तिथि लग जायेगी। इसलिए शास्त्र मत के अनुसार यह व्रत 25 अगस्त मंगलवार को मनाया जाएगा।

कृष्ण के जन्मदिन भादों कृष्णपक्ष अष्टमी से पन्द्रह दिन बाद शुक्लपक्ष की अष्टमी को दोपहर अभिजित मुहूर्त में श्रीराधा जी राजा वृषभानु की यज्ञ भूमि से प्रकट हुई थीं। श्रीराजा बृषभानु और उनकी धर्मपत्नी श्री कीर्ति ने इस कन्या को अपनी पुत्री मानकर पालन-पोषण किया। ब्रह्मकल्प, वाराहकल्प और पाद्मकल्प इन तीनों कल्पों में श्री राधा जी का, कृष्ण की परम शक्ति के रूप में वर्णन किया गया है, जिन्हें भगवान् श्री कृष्ण ने अपने वामपार्श्व से प्रकट किया है।

तभी वेद- पुराणादि इन्हें ‘कृष्णवल्लभा’ ‘कृष्णात्मा’ कृष्णप्रिया’ आदि कहकर गुणगान गुणगान करते हैं। कई पौराणिक कथाओं के अनुसार जब श्रीविष्णु का कृष्ण अवतार में जन्म लेने का समय आया तो वै अपने अनन्य भक्तों को भी पृथ्वी पर चलने का संकेत किये। तभी विष्णु जी की पत्नी लक्ष्मी जी, राधा के रुप में पृथ्वी पर आईं थीं। अष्टमी को राधा पूजन आरम्भ करने से पहले भगवान् श्रीविष्णु को स्मरण करते हुए शारीरिक शुद्धि करें।

पुनः दीप आदि प्रज्ज्वलित करके पहले राधाजी की मूर्ति को दूध, दही, घी, शहद, शक्कर से अलग-अलग और पुनः एकसाथ पंचामृत से स्नान कराएँ पुनः शुद्ध जल से स्नान कराने के बाद उनका श्रृंगार करें। इसके पश्चात गंध, अक्षत, पुष्प धूप-दीप, नैवेद्य, ऋतुफल आदि अर्पण करके इस मंत्र- कृतपापहरां पुण्यां तीर्थपूजां च निर्मलाम्। हरिभक्तिप्रदां भद्रां सर्वविघ्नविनाशिनीम्।। से प्रार्थना करें।

उसके पश्च्यात आरती करके पुष्पांजलि समर्पित करें। इसदिन राधा जन्मोत्सव की कथा का श्रवण करने से भक्त सुखी, धनी और सर्वगुण संपन्न बनता है। भक्तिपूर्वक श्री राधाजी का मंत्र जाप एवं स्मरण मोक्ष प्रदान करता है।श्रीमद्देवीभागवत् में श्री राधा जी की आराधना के विषय में कहा गया है कि इनकी पूजा न की जाए तो भक्त श्री कृष्ण की पूजा का अधिकार भी नहीं रखता, क्योंकि श्री राधा ही भगवान श्री कृष्ण के प्राणों की अधिष्ठात्री देवी मानी गई हैं।

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