Budget में कई जटिल शब्द इसको और भारी भरकम बनाते हैं. इसलिए बजट को समझने के लिए इसकी शब्दावली को समझना बहुत जरूरी है. आइए जानें बजट से जुड़े इन शब्दों का मतलब, इससे बजट (Budget) को समझना होगा आसान.
Tax (कर): सरकार अपने खर्चों को पूरा करने के लिए आमदनी टैक्स से करती है. यह एक प्रकार का अनिवार्य भुगतान है जिसे हर आदमी सरकार को देता है. यह टैक्स दो प्रकार होते हैं, प्रत्यक्ष कर और अप्रत्यक्ष कर. वह टैक्स, जिसे आपसे सीधे तौर पर वसूला जाता है, जैसे इनकम टैक्स, कॉरपोरेट टैक्स, शेयर या दूसरी संपत्तियों से आय पर कर, प्रॉपर्टी टैक्स आदि डायरेक्ट टैक्स या प्रत्यक्ष कर कहलाते हैं.
दूसरी तरफ, वह टैक्स जिसे सीधे जनता से नहीं लिया जाता किंतु जिसका बोझ आखिरकार उसी पर पड़ता है, उसे अप्रत्यक्ष कर कहते हैं. जैसे, देश में तैयार की गई वस्तुओं पर लगने वाला उत्पाद शुल्क (एक्साइज), आयात या निर्यात किए जाने वाले वस्तुओं पर लगने वाले सीमा शुल्क (कस्टम), सर्विस टैक्स आदि अप्रत्यक्ष कर हैं.
उपकर और अधिभार (Cess एवं Surcharge): सेस या उपकर किसी टैक्स के साथ किसी विशेष उद्देश्य के लिए धन इकठ्ठा करने के लिए, कर आधार (tax base) पर ही लगाया जाता है. जैसे स्वच्छ भारत सेस, कृषि कल्याण सेस, स्वच्छ पर्यावरण सेस आदि. अधिभार या सरचार्ज कर के ऊपर लगने वाला कर है जिसकी गणना कर दायित्व के आधार पर की जाती है. सामान्यतः इसे इनकम टैक्स के ऊपर लगाया जाता है.
आयकर (Income tax): यह हमारी आय के स्रोत जैसे कि आमदनी, निवेश और उस पर मिलने वाले ब्याज पर लगता है.
कॉरपोरेट टैक्स (Corporate tax): कॉरपोरेट टैक्स कॉरपोरेट कंपनियों या फर्मों पर लगाया जाता है, जिसके जरिए सरकार को आमदनी होती है.
उत्पाद शुल्क (Excise duties): देश की सीमा के भीतर बनने वाले सभी उत्पादों पर लगने वाला टैक्स को उत्पाद शुल्क कहते हैं. एक्साइज़ ड्यूटी को अब जीएसटी में शामिल कर लिया गया है. इस तरह माचिस से लेकर कार तक जो भी सामान कोई व्यक्ति खरीदता है उस पर सरकार टैक्स वसूलती है.
सीमा शुल्क (Customs duties): सीमा शुल्क उन वस्तुओं पर लगता है, जो देश में आयात की जाती है या फिर देश के बाहर निर्यात की जाती है.
वित्तीय वर्ष: भारत में वित्तीय वर्ष की शुरुआत एक अप्रैल से होती है और यह अगले साल के 31 मार्च तक चलता है. इस साल का बजट वित्तीय वर्ष 2020-21 के लिए होगा जो एक अप्रैल 2020 से 31 मार्च 2021 तक के लिए होगा. ऐसी मांग उठती रही है कि वित्तीय वर्ष को जनवरी से दिसंबर तक किया जाए, जैसा कि कई देशों में है, लेकिन अभी इसे माना नहीं गया है.
सकल घरेलू उत्पाद (GDP): सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी एक वित्तीय वर्ष में देश की सीमा के भीतर उत्पादित कुल वस्तुओं और सेवाओं का कुल जोड़ होता है. इसे एक तरह से पूरी अर्थव्यवस्था का आकार मानते हैं और इसमें बढ़त की दर को ही अर्थव्यवस्था की तरक्की की दर माना जाता है. भारत की जीडीपी वृद्धि दर इस वित्त वर्ष में 5 फीसदी के आसपास रह सकती है.
सब्सिडी (Subsidies): आर्थिक असमानता दूर करने के लिए सरकार की ओर से आम लोगों को दिया जाने वाला आर्थिक लाभ सब्सिडी कहा जाता है. जैसे एलपीजी सिलिंडर के गैस भराने वाले गरीबों को सरकार सब्सिडी देकर उसे सस्ता कर देती है. यह नकद भी हो सकता है, लेकिन अब ज्यादातर सब्सिडी डीबीटी के द्वारा यानी सीधे लाभार्थी के खाते में डाला जाता है. कंपनियों को सब्सिडी टैक्स छूट के तौर पर दी जाती है ताकि औद्योगिक गतिविधियां बढ़ें और रोजगार पैदा हो.
राजकोषीय नीति (Fiscal Policy) और राजकोषीय घाटा (fiscal deficit): यह एक ऐसी नीति होती है कि जो कि सरकार की आय, सार्वजनिक व्यय (रक्षा, स्वास्थ्य, शिक्षा, बिजली, सड़क आदि), टैक्स की दरों (प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष), सार्वजनिक ऋण, घाटे की वित्त व्यवस्था से सम्बंधित होती है. सरकार की कुल सालाना आमदनी के मुकाबले जब खर्च अधिक होता है तो उसे राजकोषीय घाटा कहते हैं. चूंकि बजटरी घाटा सही तरीके से सरकार के ऋण दायित्वों की जानकारी नही देता है, इसलिए राजकोषीय घाटे की व्यवस्था लाई गई. इसे कुछ लोग वित्तीय घाटा भी कहते हैं.