बदले सबके रूप है, बदले सबके रंग ।
मगर रहे मजदूर के, सदा एक से ढंग ।।
देख हाल मजदूर का, है ‘सौरभ’ अफ़सोस ।
चलता आये रोज पर, दूरी उतने कोस ।।
जब-जब बदले कायदे, बदली है सरकार ।
मजदूरों की पीर में, खूब हुई भरमार ।।
बांध-बांध कर थक गए, आशाओं की डोर ।
आये दिन ही दुःख बढे, मिला न कोई छोर ।।
मजदूरों के हाथ हैं, सपनों की तस्वीर ।
‘सौरभ’ इनसे है जुड़ी, हम सबकी तकदीर ।।
Labour Day: भूख से मर रहे दिहाड़ीदार मजदूरों के लिए जिम्मेदार कौन?
(सत्यवान ‘सौरभ’ के चर्चित दोहा संग्रह ‘तितली है खामोश’ से। )
— डॉ सत्यवान ‘सौरभ’