ललिता सप्तमी (Lalita Saptami) का व्रत देवी ललिता को समर्पित होता है। धार्मिक मान्यता है कि इस व्रत को करने से दांपत्य जीवन में सुख-शांति बनी रहती है और नवविवाहित जोड़ों को विशेष आशीर्वाद मिलता है। कहा जाता है कि इस दिन श्रद्धा और भक्ति भाव से उपवास करने से जीवन में प्रेम, समृद्धि और सौभाग्य बढ़ता है। पुराणों में वर्णन है कि देवी ललिता, शक्ति स्वरूपा मानी जाती हैं और उनका पूजन करने से वैवाहिक जीवन की सभी बाधाएं दूर होती हैं।
इसके अलावा इस व्रत से घर-परिवार में सुख-समृद्धि, संतान सुख और दांपत्य जीवन में मधुरता का वास होता है। यह तिथि विशेष रूप से भगवान श्री कृष्ण और राधा रानी की प्रिय सखी, देवी ललिता को समर्पित है। ललिता सप्तमी (Lalita Saptami) का व्रत श्री राधा अष्टमी से ठीक एक दिन पहले पड़ता है, इसलिए इसका महत्व और भी बढ़ जाता है। यह व्रत विशेष रूप से नवविवाहित जोड़ों के लिए बेहद फलदायी माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि जो दंपत्ति इस दिन श्रद्धापूर्वक देवी ललिता की पूजा करते हैं, उनका वैवाहिक जीवन सुख, समृद्धि और प्रेम से परिपूर्ण होता है।
ललिता सप्तमी (Lalita Saptami) की पूजा विधि
व्रत रखने वाले व्यक्ति को सुबह जल्दी उठकर स्नान करना चाहिए और स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए। पूजा स्थल को साफ कर वहां राधा-कृष्ण और देवी ललिता की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें। पूजा शुरू करने से पहले हाथ में जल लेकर व्रत का संकल्प लें। देवी ललिता को लाल रंग के वस्त्र, फूल, श्रृंगार सामग्री और मिठाई अर्पित करें।
पूजा में तुलसी दल का उपयोग करना शुभ माना जाता है।’ॐ ह्रीं ललितायै नमः’ मंत्र का जाप करना फलदायी होता है। इसके अलावा, राधा-कृष्ण के नाम का भी जाप कर सकते हैं। पूजा के अंत में देवी ललिता, राधा और कृष्ण की आरती करें। पूरे दिन व्रत रखें और शाम को पूजा के बाद फलाहार कर सकते हैं।
क्या है राधा अष्टमी से इसका संबंध?
ललिता सप्तमी (Lalita Saptami) के ठीक एक दिन बाद, यानी भाद्रपद मास की अष्टमी तिथि को, राधा रानी का जन्मोत्सव मनाया जाता है, जिसे राधा अष्टमी के नाम से जाना जाता है। ललिता सप्तमी पर राधा-कृष्ण की प्रिय सखी ललिता का पूजन कर हम राधा अष्टमी के लिए एक तरह से तैयारी करते हैं। यह दोनों पर्व एक-दूसरे से गहराई से जुड़े हुए हैं और एक साथ इनका पालन करना बहुत ही शुभ माना जाता है।
यह व्रत न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह आपसी प्रेम और विश्वास को मजबूत करने का भी अवसर देता है। नवविवाहित जोड़ों को यह व्रत एक-दूसरे के प्रति समर्पण और स्नेह बढ़ाने में मदद करता है, जिससे उनका वैवाहिक जीवन सदा सुखमय बना रहता है।