देहारादून। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी (CM Dhami) ने विधानसभा में पारित भूमि संशोधनों की सराहना की और कहा कि यह अंत नहीं है, बल्कि भूमि सुधारों की शुरुआत और नवाचार की ओर एक कदम है। उत्तराखंड विधानसभा ने शुक्रवार को उत्तराखंड ( उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश और भूमि सुधार अधिनियम , 1950) (संशोधन) विधेयक, 2025 पारित कर दिया । सीएम पुष्कर सिंह धामी ने कहा, हमने राज्य में ऐतिहासिक फैसले लिए हैं, जिसमें समान नागरिक संहिता को लागू करना भी शामिल है। हम युवाओं के लिए देश का सबसे सख्त धोखाधड़ी विरोधी कानून लेकर आए हैं। हमने धर्मांतरण और दंगे रोकने के लिए कानून बनाए हैं। हमने अतिक्रमण हटाया है। हम राज्य को नवाचार की ओर ले जा रहे हैं। हम जो कहते हैं उसे पूरा करने का प्रयास करते हैं और भूमि सुधार कानून भी उसी दिशा में हमारा एक कदम है।
मुख्यमंत्री (CM Dhami) ने कहा कि राज्य सरकार ने जनभावनाओं और प्रदेशवासियों की अपेक्षाओं के अनुरूप निर्णय लिया है। सरकार कई नये महत्वपूर्ण विषयों पर ऐतिहासिक निर्णय ले रही है। उन्होंने कहा कि हम उत्तराखंड के संसाधनों और जमीनों को भू-माफियाओं से बचाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। जिस उद्देश्य से लोगों ने जमीन खरीदी है, उसका उपयोग नहीं बल्कि दुरुपयोग हो रहा है, यह चिंता हमेशा मन में थी।
उन्होंने (CM Dhami) कहा कि उत्तराखंड में पर्वतीय क्षेत्रों के साथ मैदानी क्षेत्र भी हैं। जिनकी भौगोलिक परिस्थितियां और चुनौतियां अलग-अलग हैं। उन्होंने कहा, जब से स्वर्गीय अटल जी ने उत्तराखंड राज्य के लिए औद्योगिक पैकेज दिया है , तब से राज्य सरकार बड़ी संख्या में औद्योगीकरण की ओर अग्रसर है। ऐसे में राज्य में आने वाले वास्तविक निवेशकों को कोई परेशानी न हो और निवेश भी न रुके। इसके लिए हमने इस नये संशोधन/कानून में सभी को शामिल किया है।
मुख्यमंत्री (CM Dhami) ने कहा कि राज्य सरकार सभी की जनभावनाओं के अनुरूप कार्य कर रही है। हम लोकतांत्रिक मूल्यों में विश्वास रखते हैं। पिछले कुछ वर्षों में देखने में आया कि राज्य में लोग विभिन्न उपक्रमों के माध्यम से स्थानीय लोगों को रोजगार देने के नाम पर जमीन खरीद रहे थे।
भूमि प्रबंधन एवं भूमि सुधार अधिनियम बनने के बाद इस पर पूरी तरह अंकुश लगेगा। इससे वास्तविक निवेशकों और भू-माफियाओं के बीच का अंतर भी स्पष्ट होगा। राज्य सरकार ने पिछले वर्षों में बड़े पैमाने पर राज्य से अतिक्रमण हटाया है। वन भूमि और सरकारी भूमि से अवैध अतिक्रमण हटाया गया है। 3461.74 एकड़ वन भूमि से कब्जे हटाए गए हैं। यह कार्य इतिहास में पहली बार हमारी सरकार ने किया है। इससे पारिस्थितिकी और अर्थव्यवस्था दोनों सुरक्षित हुई है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य में कृषि और औद्योगिक उद्देश्यों के लिए खरीद की अनुमति कलेक्टर स्तर पर दी जाती थी। सीएम धामी ने कहा, अब 11 जिलों में इसे खत्म कर दिया गया है और केवल हरिद्वार और ऊधमसिंह नगर में राज्य सरकार के स्तर पर निर्णय लेने का प्रावधान किया गया है। किसी भी व्यक्ति के पक्ष में स्वीकृत सीमा में 12.5 एकड़ से अधिक भूमि हस्तांतरण को 11 जिलों में समाप्त कर दिया गया है और केवल हरिद्वार और ऊधमसिंह नगर जिलों में राज्य सरकार के स्तर पर निर्णय लिया जाएगा।
उन्होंने आगे कहा कि आवासीय परियोजनाओं के लिए 250 वर्ग मीटर भूमि खरीदने के लिए शपथ पत्र अनिवार्य कर दिया गया है। यदि शपथ पत्र झूठा पाया जाता है, तो भूमि राज्य सरकार में निहित हो जाएगी। उन्होंने कहा कि सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों के तहत थ्रस्ट सेक्टर और अधिसूचित खसरा नंबर की जमीन खरीदने की अनुमति, जो कलेक्टर स्तर पर दी जाती थी, अब राज्य सरकार के स्तर पर दी जाएगी।
मुख्यमंत्री ने कहा कि नए कानून में कई बड़े बदलाव किए गए हैं। उन्होंने कहा कि सरकार ने गैरसैंण में हितधारकों से भी विचार लिए हैं। उन्होंने आगे कहा, इन नए प्रावधानों में राज्य की जनता की राय ली गई है, और सभी से सुझाव भी लिए गए हैं। सभी जिलों के जिलाधिकारियों और तहसील स्तर पर उनके जिलों में लोगों से सुझाव भी लिए गए। सभी के सुझावों के अनुरोध पर यह कानून बनाया गया है। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड राज्य का मूल स्वरूप बरकरार रहे, मूल अस्तित्व बचा रहे। इसके लिए भूमि सुधार किया गया है। उन्होंने कहा कि राज्य की जनसांख्यिकी को बचाने का विशेष ध्यान रखा गया है। सीएम धामी ने यह भी कहा कि राज्य में औद्योगिक, पर्यटन, शैक्षिक, स्वास्थ्य और कृषि व बागवानी आदि उद्देश्यों के लिए कुल 1883 एकड़ भूमि खरीदने की अनुमति राज्य सरकार और कलेक्टर द्वारा दी गई।
उन्होंने बताया कि, उपर्युक्त प्रयोजनों/आवासीय प्रयोजनों हेतु क्रय की गई भूमि के सम्बन्ध में भूमि उपयोग उल्लंघन के कुल 599 मामले प्रकाश में आए हैं, जिनमें से 572 मामलों में उत्तराखण्ड (उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम, 1950) (अनुकूलन एवं संपरिवर्तन आदेश-2001) की धारा 166/167 के अन्तर्गत वाद दायर किए गए हैं तथा 16 मामलों में वाद का निस्तारण करते हुए 9.4760 हेक्टेयर भूमि राज्य सरकार में निहित की गई है। शेष मामलों में कार्यवाही की जा रही है।