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जो रस बरस रहौ बरसाने सो रस तीन लोको में नाय

Barsane Lathmar Holi

Barsane Lathmar Holi

मथुरा। “जो रस बरस रहौ बरसाने सो रस तीन लोको में नाय“ वाकये में विश्व प्रसिद्ध लठमार होली (Lathmar Holi) की बात ही निराली है। द्वापर काल में राधाकृष्ण ने गोपियों और सखाओं संग रंगीली गली बरसाना (Barsana) में खेली थी। आज भी राधा कृष्ण (Radha-Krishna) की प्रेमपगी लठमार होली (Lathmar Holi) की परंपरा को नंदगांव बरसाना (Barsana) के लोग जीवंत किये हुए है। आज भी सूर्य चंद्रमा भी लठमार होली देखने के साक्षी बनते है। लोगों और गोस्वामियों का कहना है कि फाल्गुन माह की शुक्लपक्ष नवमी पर ठीक शाम साढ़े छह बजे सूर्य चन्द्रमा एक साथ आसमान में लठमार होली देखने के लिए दिखाई देते है।

फागुन का महीना में हर कोई व्यक्ति के मन में बस एकी ख्याल आता है। द्वापर कालीन लठामार होली का जिसके आनंद में सराबोर होने के लिये मन हिलोर भरने लगता है। लठमार होली कुछ है ही ऐसी जिसको एक बार देखले बस देखता ही रहे। होली में जब नंदगांव के कृष्ण स्वरूपा हुरियारे बरसाना की राधा स्वरूपा हुरियारिनों पर खड़ी ब्रज भाषा मे सीधा कटाक्ष करते है और इसका जवाब हुरियारिनें लठ्ठन ते देय है। लाठियों की तड़तड़ाहट के बीच हुरियारे अपनी तीखी ब्रज भाषा के तीर छोड़ने की गति बढ़ाते है और उतनी ही तेजी से लठ्ठन की आवाज तेज होती जाती है।

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इसी आंनद का लुप्त उठाते धरती पर राधाकृष्ण के भक्त नजर आते है। तो वही आसमान में सूरज चंद्रमा में भी होड़ लगी होती है। होली देखने की इधर सूरज अस्त होने का नाम नही लेते तो उधर चंद्रमा उदय होने के लिए उतावले होते है। आखिर दोनों एक दूसरे के सामने शुल्क पक्ष की नवमी को ठीक 6ः30 बजे होली देखने के साक्षी बनते है और सूरज अपनी जिद छोड़ कर अस्त होने की गति बढ़ाते ही लठमार होली की रस वर्षा थम जाती है।

सूरज छुप मत जइयो श्याम संग होली खेलूंगी कान्हा संग होली खेलूंगी

बरसाना की हुरियारिनें कान्हा से होली खेलने के लिये सूरज (सूर्य) से प्रार्थना करती है। सूरज छिप मत जियो आज होली में कान्हा को मजा चाखनो है। जाये नर से नार बनानो है। इसी प्रार्थना को सूर्य भगवान स्वीकार करते है और राधा स्वरूपा हुरियारिनों के साथ अपनी गति रोक कर देते है और होली देखने के साक्षी बनते है। उधर चंद्रमा भी राधाकृष्ण की अलौकिक होली देखने के साक्षी बनने के लिए उतावले हो जाते है और फागुन महा की शुक्ल पक्ष की नवमी को ठीक 6:30 बजे उदय हो जाते है और लठामार होली देखने के साक्षी बनते है।

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सूरज चंद्रमा के आमने सामने आते ही चंद पलो बाद लठमार होली की लाठियों के तड़तड़ात का शोर थम जाता है। सेवायत गोस्वामी ने बताया कि बरसाना में लठमार होली के दिन सूर्य अपनी गति रोक देते है तो वही चंद्रमा उदय होने को आतुर होते है। दो में होड़ मची सी नजर आती है और होता भी ऐसा ही सूर्य अस्त नही होते और चंद्रमा उदय हो जाते है लठमार होली देखने को। हुरियारिन सावित्री ने बताया लठमार होली में कान्हा और बाके सखा हुरियारिनों को छेड़ते है और गालियां सुनाते है।तब हम सभी हुरियारिनें मिलकर उन पर लठ्ठन ते वार करे है।

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और सूरज ते कह है आज छुप मत जइयो आज कान्हा है होली को मजा चखानो है याई बातें सुनकर सूरज रुक जाये होली देखबे कु और चंदा हु आ जाये होली देखबे कु दोनु देखे लठ्ठन की मारे। ऊषा ने बताया कान्हा बरसाने आ जइयो तोय लठ्ठन को मजा चखा दूँगी ऐसी होली देखबे कु सब तरसे है।सूरज ते हम कह है सूरज आज छिप मत जइयो आज जाय कान्हा है होली को मजा चखा दिन दे।और सूरज जाई पुकार सुन कर रुक जाता है।और होली देखे उत कु चंदा होली कु देखबे के काजे जल्दी अज़ाबे ओर दोऊ होली देखे।

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