लखनऊ। समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) ने सियासत में कदम रखा तो उनके दोस्त दर्शन सिंह यादव सबसे बड़ा सहारा बने थे। मुलायम सिंह ने अपने 55 साल के सियासी सफर में कई उतार-चढ़ाव भरे दौर देखे, लेकिन उन्होंने अपने बुरे दौर के सहयोगियों का न तो साथ छोड़ा और न ही दोस्तों का। वह अपने घनघोर विरोधियों को भी मौका पड़ने पर गले लगाने से नहीं चूके। नेताजी की दोस्ती सिर्फ समाजवादी नेताओं के साथ ही नहीं रही बल्कि पार्टी और विचारधारा से ऊपर उठकर विरोधी दलों के कद्दावर नेताओं से भी रही।
सामजवादी नेता जनेश्वर मिश्र से लेकर मोहन सिंह, बृजभूषण तिवारी, आजम खान, रेवती रमण सिंह, परसनाथ यादव, अमर सिंह, बेनी प्रसाद वर्मा, राजेंद्र चौधरी और किरणमय नंदा तक से मुलायम सिंह यादव की दोस्ती अमर रही। समाजवादी नेता ही नहीं बल्कि विपक्षी पार्टियों में भी उनकी दोस्ती की फेहरिश्त काफी लंबी है, जिसमें नारायण दत्त तिवारी से लेकर महेश्वर दत्त सिंह, अरुण सिंह मुन्ना,राजा आनंद सिंह, प्रमोद तिवारी, राजनाथ सिंह और कल्याण सिंह तक के नाम शामिल हैं।
नेताजी के नाम से मशहूर मुलायम सिंह (Mulayam Singh Yadav) की एक खूबी थी कि वे कार्यकर्ताओं से सीधा संवाद करते थे। मंच पर मौजूद लोगों के साथ भीड़ में बैठे कई लोगों के नाम लेकर संबोधन शुरू करते। तब स्वाभाविक तौर पर आयोजकों के साथ शहर के बाकी कई लोगों के चेहरे खिल उठते थे। बाद में लोग चर्चा करते कि बड़े पद पर रहते हुए भी मुलायम सिंह अपने परिचितों के सिर्फ चेहरे ही नहीं नाम तक याद रखते हैं।
भरी भीड़ में पुराने कार्यकर्ता को नाम से पुकारने वाली खूबी सियासत में बहुत कम नेताओं में हुआ करती है यदि रही भी तो स्थायित्व का अभाव रहता है। आज खुश, कल मुंह फेर लिया। इसके विपरित मुलायम सिंह के रिश्ते कटु होकर भी सद्भाव में बदल जाने की गुंजाइश रखते। सियासत में कई उतार-चढाव देखने वाले मुलायम सिंह यादव ने अपनी दोस्ती के रिश्तों को हमेशा सहेजकर रखा।
जनेश्वर मिश्र और मुलायम (Mulayam Singh Yadav) की दोस्ती
मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) और छोटे लोहिया के नाम से मशहूर जनेश्वर मिश्र की दोस्ती शुरुआती दौर से है। मुलायम सिंह से पहले जनेश्वर मिश्र सियासत में कदम रख चुके थे और राम मनोहर लोहिया के करीबी नेताओं में थे। 1967 में मुलायम सिंह पहली बार चुनाव लड़ रहे थे तो जनेश्वर मिश्र को अपने विधानसभा में चुनाव प्रचार के लिए संपर्क किया था। इसके बाद उनके बीच दोस्ती की बुनियाद पड़ी थी जो फिर मरते दम तक बनी रही है। मुलायम सिंह के हर कदम पर जनेश्वर मिश्र साथ खड़े रहे और 1992 में समाजवादी पार्टी का गठन हुआ तो राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बने।
अखिलेश यादव आस्ट्रेलिया से पढ़कर आए और सियासत में कदम रखा तो राजनीति का ककहरा तक नहीं जानते थे। ऐसे में मुलायम सिंह ने अखिलेश को जनेश्वर मिश्र के सानिध्य में रहकर राजनीति पाठ सीखने की सलाह दी थी। इस तरह जनेश्वर मिश्रा उनके सियासी गुरू बने। जनेश्वर मिश्र के निधन पर मुलायम पूरे परिवार के साथ प्रयागराज आए थे और अंतिम संस्कार होने तक मौजूद रहे। अखिलेश यादव यूपी के मुख्यमंत्री बने तो जनेश्वर मिश्र के नाम से पार्क बनवाया।
बृजभूषण तिवारी से मुलायम की यारी
डॉ. राम मनोहर लोहिया के साथी रहे बृजभूषण तिवारी की मुलायम सिंह से दोस्ती काफी गहरी रही है। बृजभूषण हर कदम पर मुलायम सिंह के साथ खड़े रहे हैं, चाहे 1989 में मुख्यमंत्री बनने की बात रही हो या फिर 1992 में समाजवादी पार्टी का गठन रहा हो। 1991 में मोहसिना किदवई चुनाव लड़ रही थी और बृजभूषण तिवारी के खिलाफ मुस्लिम समुदाय थे।ऐसे में मुलायम सिंह ने एक रैली करके मुसलमानों का मूड बदल दिया था और चुनावी तस्वीर बदल गई। बृजभूषण तिवारी भारी मतों से जीत दर्ज की और मरते दम तक सपा में रहे।
अमर सिंह से मुलायम सिंह (Mulayam Singh Yadav) की दोस्ती
मुलायम सिंह (Mulayam Singh Yadav) ने उद्योगपति अमर सिंह को गले लगाया और महासचिव पद सौंपा। 90 के दशक में अमर सिंह मुलायम सिंह के करीब आए और और चंद दिनों में ही पार्टी में नंबर दो की हैसियत हो गई। सपा के तेवर और कलेवर दोनों को ही अमर सिंह ने बदल दिया। अमर सिंह के चलते सपा के आजम से लेकर राज बब्बर, बेनी प्रसाद वर्मा जैसे कई दिग्गज नेताओं ने पार्टी छोड़ दी, लेकिन मुलायम ने अमर का साथ नहीं छोड़ा। अमर सिंह की हर बात को मुलायम ने माना और उनकी मुंहमांगी मुराद पूरी की थी। इसके बावजूद 2010 में अमर सिंह को सपा से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। अमर सिंह ने कई गंभीर आरोप लगाए, लेकिन मुलायम ने इन आरोपों को मुस्कुरा कर टाल दिया। इसके बाद भी मुलायम ने अमर सिंह को दोबारा से सपा में लेकर आए और राज्यसभा भेजा।
आजम खान और मुलायम (Mulayam Singh Yadav) की दोस्ती
सपा के गठन में मुलायम सिंह के अजीज दोस्त आजम खान से उनके रिश्ते बनते-बिगड़ते रहे हैं। कभी अमर सिंह तो कभी कल्याण सिंह की वजह से आजम खान असहज हुए। 27 साल साथ-साथ रहने के बाद 2009 में आजम ने सपा का साथ छोड़ दिया। इसके पीछे मूल वजह अमर सिंह को माना गया। आजम खान कभी खुलकर मुलायम सिंह के खिलाफ नहीं बोला, पर मुलायम सिंह ने भी किसी की परवाह नहीं की और आजम खान को पूरी छूट दे रखी थी। फिर चार दिसंबर 2010 को आजम खान की घर वापसी हुई। दोनों मिले तो आंखों में आंसू छलक पड़े।
कल्याण सिंह के साथ मुलायम (Mulayam Singh Yadav) के रिश्ते
उत्तर प्रदेश की सियासत में एक साथ सफर शुरू करने वाले मुलायम सिंह को छह दिसंबर 1992 को मुल्ला मुलायम तो कल्याण सिंह को हिंदू सम्राट की उपाधि मिली। भले ही दोनों ही नेता एक दूसरे के वैचारिक धुर विरोधी थे, लेकिन दोनों के बीच दोस्ती भी उतनी ही गहरी थी। एक ही इलाके से आते थे और दोनों ही ओबीसी समुदाय से थे। बीजेपी से रिश्ते खराब होने के बाद कल्याण सिंह ने अलग पार्टी बनाई। वर्ष 2009 से ठीक पहले मुलायम सिंह कल्याण सिंह मिले। आगरा में राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक में एक साथ मंच साझा किया। इस तरह मुलायम सिंह ने अपने वैचारिक विरोधी कल्याण सिंह को गले लगाया और दोस्ती बनी रही।
बेनी प्रसाद वर्मा हर कदम पर साथ रहे
मुलायम सिंह और बेनी प्रसाद वर्मा की दोस्ती भी गजब की थी। मुलायम सिंह को सीएम बनाने की पैरवी चौधरी चरण सिंह से बेनी प्रसाद ने की थी। समाजवादी पार्टी को बनवाने में बेनी बाबू की भूमिका अहम थी, लेकिन मुलायम सिंह ने जब संगठन बनाया तो बेनी प्रसाद को ही जगह नहीं दी। ऐसे में वो नाराज होकर चले गए थे, पर मुलायम सिंह उन्हे मना लाए थे। इसके बाद बेनी प्रसाद वर्मा 2008 में बेटे को टिकट नहीं मिलने से नाराज होकर नई पार्टी बनाई और फिर 2008 में कांग्रेस में शामिल हो गए। वर्मा ने मुलायम सिंह के खिलाफ बयान दिया कि मुलायम प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं, लेकिन उनकी औकात प्रधानमंत्री कार्यालय में झाड़ू लगाने तक की नहीं है। इसके बाद भी मुलायम सिंह ने कभी भी बेनी प्रसाद के लिए बयान नहीं दिया। हालात बदले और बेनी प्रसाद सपा में वापस आए तो उन्हें सपा ने 2016 में राज्यसभा भेजा।
मोहन सिंह समाजवादी साथी
समाजवादी नेता मोहन सिंह के रिश्ते भी मुलायम सिंह यादव के साथ काफी गहरे रहे हैं। लोहिया की राजनीति से निकले मोहन सिंह मरते दम तक सपा में रहे और मुलायम सिंह ने अपना नाता नहीं तोड़ा। अमर सिंह का प्रभाव बढ़ा तो मोहन सिंह जरूर साइडलाइन हो गए, लेकिन मुलायम सिंह से दोस्ती बनी रही। सपा का गठन हुआ तो मोहन सिंह राष्ट्रीय प्रवक्ता बने और पार्टी को वैचारिक संजीवनी देते रहे। लोकसभा और राज्यसभा सदस्य रहे।
चौधरी ने मुलायम के नाम कर जिंदगी
सपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने जब से सियासत में कदम रखा तब से लेकर मुलायम सिंह यादव के साथ कंधे से कंधा मिलाकर मजबूती से खड़े रहे। लोकदल दो धड़ों में बंटी तो राजेंद्र चौधरी ने चौधरी अजित सिंह के बजाय मुलायम सिंह खेमे में रहना पसंद किया। मुलायम ने भी उन्हें सहेजकर रखा और विधान परिषद सदस्य बनाया। मुलायम सिंह ही नहीं अखिलेश यादव के साथ भी राजेंद्र चौधरी के रिश्ते काफी गहरे हैं।
रेवती रमण सिंह क्रांति के साथी
मुलायम सिंह यादव के पुराने सिपहसलारों में एक नाम रेवती रमण सिंह का भी आता है। लोहिया के दौर से रेवती रमण सिंह 70 के दशक से मुलायम सिंह के साथ हैं। सपा के कई दिग्गज नेताओं ने पार्टी और मुलायम सिंह का साथ छोड़ दिया, लेकिन रेवती रमण सिंह कभी भी टस से मस नहीं हुए। रेवती रमण जब भी चुनाव हारे तो मुलायम सिंह ने उन्हें राज्यसभा भेजा और पार्टी के शीर्ष पद पर रखा।
किरणमय नंदा की मुलायम से दोस्ती
मुलायम सिंह यादव के साथ किरणमय नंदा की दोस्ती काफी पुरानी है। किरणमय नंदा पश्चिम बंगाल से आते हैं और सपा के साथ मजबूती के साथ खड़े हैं। मुलायम सिंह यादव ने 1992 में सपा का गठन किया था तो अलग-अलग राज्यों से कई नेताओं को संगठन में जगह दिया था, जिसमें एमपी से रघु ठाकुर, बिहार से कपिल देव सिंह, बंगाल से किरणमय नंदा थे। रघु ठाकुर और कपिल देव ने बाद में सपा छोड़ दिया, लेकिन किरणमय नंदा मजबूती से डटे हुए हैं। ऐसे ही राम कृष्ण हेगड़े भी थे, जो मुलायम सिंह के साथ दोस्ती को बनाए रखा।
अमिताभ-जया बच्चन की मुलायम से दोस्ती
फिल्म अभिनेता अमिताभ बच्चन के साथ मुलायम सिंह यादव की दोस्ती भले ही अमर सिंह ने कराई थी, लेकिन उस रिश्ते को नेताजी ने बरकरार रखा। दोस्ती के चलते ही मुलायम सिंह ने अभिताभ बच्चन की पत्नी जया बच्चन को राज्यसभा भेजा और सपा संगठन में जगह दी। अमर सिंह ने सपा से नाता तो तोड़ लिया, लेकिन मुलायम और अमिताभ की दोस्ती बनी रही और जया बच्चन सपा के साथ मजबूती से खड़ी रहीं। इसी का नतीजा है कि अखिलेश यादव ने उन्हें राज्यसभा भेजा। ऐसे ही फिल्म अभिनेता से नेता बने राज बब्बर के साथ भी मुलायम सिंह की दोस्ती रही।
परसनाथ-अंबिका-बलराम की तिकड़ी
परसनाथ यादव, बलराम यादव और अंबिका चौधरी पूर्वांचल में सपा सबसे भरोसेमंद नेताओं में से एक थे, लेकिन मुलायम सिंह यादव के भी ये करीबी थे। ये तीनों ही नेता पूर्वांचल से थे और यादव समुदाय से थे। तीनों ही नेता शुरू से ही सपा के साथ रहे। अंबिका चौधरी ने अखिलेश यादव के चलते जरूर सपा छोड़ दी थी, लेकिन बाद में वापसी कर गए जबकि बाकी दोनों ही नेता अंगद की तरह जमे रहे।
गैर-समाजवादियों के साथ मुलायम की दोस्ती
समाजवादी ही नही बल्कि गैर-समाजवादी नेताओं के साथ भी मुलायम सिंह यादव की दोस्ती बनी रही। मुलायम सिंह की दोस्ती विचाराधारा से ऊपर उठकर रही, जिसमें कुछ नेताओं के साथ उनके रिश्ते सहकारिता की राजनीति के चलते बने तो कुछ लोगों के साथ उनका लगाव रहा। 1969 में मुलायम सिंह यादव जब चुनाव हार गए तो कांग्रेसी नेता महेश्वर दत्त सिंह ने उनके लिए सियासी रास्ता बनाया। महेश्वर दत्त ने मुलायम सिंह को कॉपरेटिव की राजनीति में एंट्री कराई, जिसके चलते किसानों के बीच गहरी पैठ बनाई।
सहकारिता की राजनीति में मुलायम सिंह के कई दोस्त बने, जो गैर-समाजवादी थे। इसमें कांग्रेस नेता अरुण सिंह मुन्ना से लेकर राजा आनंद सिंह (मनकापुर) और प्रमोद तिवारी तक के नाम हैं। मुलायम सिंह की दोस्ती कभी इन नेताओं के आड़े नहीं आई। प्रमोद तिवारी को भी चाहे सपा के समर्थन से राज्यसभा भेजना रहा हो या फिर 2022 के चुनाव में उनकी बेटी के सामने सपा का कैंडिडेट न उतारना। इसी तरह से राजा आनंद सिंह के साथ भी मुलायम सिंह ने दोस्ती निभाई।
नारायण दत्त तिवारी से मुलायम की यारी
नारायण दत्त तिवारी के साथ भी मुलायम सिंह यादव के रिश्ते काफी नजदीकी रहे हैं। एनडी तिवारी यूपी के मुख्यमंत्री थे तो मुलायम सिंह यादव विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष हुआ करते थे। सदन में सरकार को घेरते और सदन के बाहर एनडी तिवारी के साथ दोस्ती निभाते। तिवारी पार्टी लाइन से जरा भी नहीं भटके, लेकिन साबित किया कि सियासत में निजी रिश्तों की भी अहमियत कम नहीं होती। यह निजी रिश्तों की ही तासीर थी कि उनके मुख से निकला, मुलायम देश चलाएं और अखिलेश यूपी।
मुस्लिम सियासत की राह दिखाने वाले दोस्त
मुलायम सिंह यादव को मुस्लिम सियासत की राह आजम खान से पहले बशीर रहमान (बन्ने भाई) और मसरूर जाफरी ने की थी। बन्ने भाई न तो सपा के नेता थे और न ही समाजवादी विचाराधारा से निकले थे बल्कि मुसलमानों की हार्डकोर राजनीति करते थे। बशीर रहमान मुस्लिम मजलिश के अध्यक्ष रहे और मुलायम सिंह को मुस्लिम उलेमाओं के बीच ले जाने का काम करते थे। बाबरी पर स्टैंड लेने के पीछे भी इन्हीं नेताओं का हाथ था। इसके बाद आजम खान ने उसे और भी आक्रामक धार दिया। मुलायम सिंह यादव के सबसे पुराने मुस्लिम दोस्तों में बशीर रहमान का नाम आता है, जिनके साथ कभी भी उनके रिश्ते खराब नहीं हुए।