धर्म डेस्क। भगवान श्री कृष्ण का जन्म भादो मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मध्यरात्रि के समय रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। ये तो सभी को पता है कि कृष्ण जी ने माता देवकी के गर्भ से जन्म लिया जिसके बाद उनके पिता वासुदेव उन्हें नंदबाबा के यहां छोड़ गए थे। जिसके बाद उनका लालन-पालन यशोदा मां ने किया लेकिन क्या आपको पता है कि कृष्ण जी का नामकरण कैसे और किसने किया था। जानते हैं..
ऋषि गर्ग यदुवंश के कुलगुरु थे, एक दिन वे गोकुल में पधारे। नंदबाबा और यशोदा जी ने पूरे भाव से उनका आदर सत्कार किया और वासुदेव देवकी का हाल चाल पूछा। उसके बाद जब उन्होंने गर्गाचार्य से गोकुल में पधारने का कारण पूछा तब उन्होंने बताया कि वे पास ही के गांव में एक बालक का नामकरण करने आएं हैं। रास्ते में तुम्हारा घर पड़ा तो विचार किया कि तुमसे भी मिलता चलूं। जब नंदबाबा और यशोदा जी ने सुना तो उन्होंने गर्ग ऋषि से कहा कि बाबा हमारे यहां भी दो बालकों ने जन्म लिया है, कृपा करके उनका भी नामकरण कर दीजिए।
लेकिन गर्गाचार्य ने मना कर दिया उन्होंने कहा कि अगर इस बात का पता कंस को चल गया तो वह मुझे जीवित नहीं रहने देगा। इसपर नंदबाबा ने कहा कि आप चुपचाप गौशाला में नामकरण कर दीजिए हम इस बात का जिक्र किसी से नहीं करेंगे
जब रोहिणी जी को अवगत हुआ कि यदुवंश के कुल पुरोहित आए हैं, तो वे भावविभोर होकर उनके गुणों का बखान करने लगी। तभी यशोदा ने कहा कि अगर गर्गाचार्य इतने बड़े पुरोहित हैं तो हम अपने पुत्रों को बदल लेते हैं, तुम मेरे लल्ला को लेकर जाओ और मैं तुम्हारे पुत्र को लेकर आती हूं। देखते हैं कि कुलपुरोहित यह जान पाते हैं या नहीं.. इस तरह माताएं गर्ग ऋषि की परीक्षा लेने लगीं।
दोनों माताएं बालकों को लेकर गर्गाचार्य के समक्ष गई। लेकिन गर्गचार्य ने जैसे ही यशोदा के हाथ में बालक को देखा तो वे पहचान गए और कहने लगे कि यह रोहिणी पुत्र है। इस कारण बालक का नाम रौहणेय होगा, यह बालक अपने गुणों से सबको आनंदित करेगा तो एक नाम राम होगा और यह बहुत बलशाली होगा इसके बल समान कोई दूसरा न होगा, जिसके कारण इसका एक नाम बल भी होगा, इस तरह से इसका सबसे ज्यादा लिया जाने वाला नाम बलराम रहेगा। किसी में कोई भेद न करने के कारण यह सभी को अपनी ओर आकर्षित करेगा इसलिए इसका एक नाम संकर्षण होगा।
जब कृष्ण जी को देखकर ऋषिगर्ग ने खो दी अपनी सुध
जब ऋषि गर्ग मे रोहिणी की गोद के बालक को देखा तो वे बालक कि मनमोहक छवि को देखकर उसमें ही खो गए और अपमी सुध-वुध भूलगए। गर्ग ऋषि जैसे मानो एक जगह जड़ हो गए वे न कुछ कहते ने उनके शरीर में कोई हलचल होती वे तो बस एकटक लगाएं बालक को निहारने लगे। तब घबराकर यशोदा और नंदबाबा ने पूछा कि कि आचार्य क्या हुआ। तब कही जाकर गर्गाचार्य को अपनी सुधी हुई।
जब कृष्ण जी ने दिखाई अपनी बाललीला
जैसे ही गर्गाचार्य यह कहने कि हुए कि नंद तुम्हारा बालक कोई साधारण इंसान नहीं है बल्कि यह तो साक्षात… यह कहते हुए जैसे ही गर्गाचार्य ने अपनी उंगली कृष्ण जी की तरफ उठाई, तभी छोटे से नंदलाल ने अपनी लीला दिखाते हुए गर्गाचार्य को आंखों ही आंखों में धमकाया कि बाबा मेरे भेद नहीं खोलना। क्योंकि अगर किसी को मेरा भेद पता चल गया तो लोग मुझे पूजने लगेंगे। यहां पर पूजा करवाने या कैद होने नहीं आया हूं मैं तो यहां माखन मिश्री खाने आया हूं, मां की ममता की अनुभूति करना चाहता हूं। अगर आपने सबके सामने मेरा भेद खोल दिया। तो सभी मुझे पूजने लगेंगे और मैं मां के प्रेम से वंचित रह जाऊंगा। लेकिन ऋषि गर्ग अपने आप को रोक नहीं पा रहे थे जैसे ही वे दोबारा बोलने के लिए तत्पर हुए वैसे ही कान्हा ने फिर धमकाया बाबा मान जाओ नहीं तो आपकी जीभा यहीं रुक जाएगी और उंगली भी उठी की उठी रह जाएगी। आंखों ही आंखों में कृष्ण जी अपनी लीला दिखा रहे थे। परंतु इस बारे में नंद और यशोदा को कुछ भान नहीं हुआ।
इस तरह हुआ कृष्ण का नामकरण
तभी गर्गाचार्य ने कहा कि आपका पुत्र के अनेकों नामों से जाना जाएगा। यह जैसे कर्म करता जाएगा उसी के अनुसार इसके नए नाम होते जाएंगे। गर्गाचार्य ने कहा कि यह कई रंगों में इससे पहले जन्म ले चुका है परंतु इस बार यह काले रंग में आया है, इसलिए इसका नाम कृष्ण होगा, लेकिन माता यशोदा को यह नाम बिल्कुल नहीं भाया..उन्होंने कहा कि यह कैसा नाम रखा है आपने, कोई सरल और आसान नाम बताइए तब गर्गाचार्य कहा कि तुम इसे कन्हैया, कान्हा, किशन या किसना कहकर पुकार लेना। यह सुन माता यशोदा के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई। माता यशोदा कृष्ण जी को हमेशा लल्ला या कान्हा कहकर बुलाती थी।