समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) को किस तरह तैयार किया जा सकता है? इस पर 22वें विधि आयोग (Law Commission of India) ने सुझाव मांगे हैं। ये सुझाव आम जनता, सार्वजनिक संस्थानों और मान्यता प्राप्त धार्मिक संगठनों से मांगे गए हैं। इसके लिए 30 दिन यानी 14 जुलाई तक का समय दिया गया है।
इससे पहले 2018 में 21वें विधि आयोग (Law Commission of India) ने विचार-विमर्श के बाद जारी की अपनी रिपोर्ट में कहा था कि फिलहाल देश को समान नागरिक संहिता की जरूरत नहीं है। विधि आयोग ने पर्सनल लॉ में ही सुधार करने सिफारिश की थी।
समान नागरिक संहिता को लागू करने की लंबे समय से बहस होती रही है। हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक समान नागरिक संहिता पर विचार करने की बात कह चुका है।
सत्ताधारी बीजेपी के घोषणापत्र में भी समान नागरिक संहिता (Common Civil Code) का मुद्दा हमेशा से रहा है। केंद्र की बीजेपी सरकार ने समान नागरिक संहिता पर कानून बनाने का जिम्मा 21वें विधि आयोग को सौंपा था। लेकिन अगस्त 2018 में उसका कार्यकाल खत्म हो गया। इसके बाद 22वें विधि आयोग को ये जिम्मेदारी दी गई। अब विधि आयोग ने समान नागरिक संहिता पर आम जनता और धार्मिक संगठनों की राय मांगी है। इसके बाद बाकी विचार-विमर्श कर विधि आयोग अपनी रिपोर्ट तैयार करेगा और केंद्र सरकार को सौंपेगा।
विधि आयोग (Law Commission of India) क्या है?
विधि आयोग या लॉ कमीशन (Law Commission of India) केंद्र सरकार का एक आयोग होता है। इसका मकसद कानूनों में सुधार या नया कानून बनाने या फिर पुराने कानूनों को खत्म करने की सलाह देना होता है।
आजादी के बाद 1955 में पहले विधि आयोग का गठन किया गया था। तब से ही समय-समय पर केंद्र सरकार विधि आयोग का गठन करती रही है।
20 फरवरी 2020 को 22वें विधि आयोग का गठन किया गया था। 20 फरवरी 2023 का इसका कार्यकाल खत्म हो गया था, लेकिन सरकार ने 31 अगस्त 2024 तक इसका कार्यकाल बढ़ा दिया।
विधि आयोग (Law Commission of India) का कार्यकाल
विधि आयोग का कार्यकाल आमतौर पर तीन साल का होता है। लेकिन केंद्र सरकार चाहे तो इसका कार्यकाल बढ़ा सकती है। जैसे- 22वें विधि आयोग का कार्यकाल सरकार ने डेढ़ साल के लिए बढ़ा दिया।
इसमें कौन-कौन होता है?
विधि आयोग में एक अध्यक्ष होता है। 22वें विधि आयोग के अध्यक्ष रिटायर्ड जस्टिस ऋतुराज अवस्थी हैं। जस्टिस ऋतुराज अवस्थी कर्नाटक हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रहे हैं।
चार फुल टाइम सदस्य होते हैं, जिनमें सदस्य सचिव भी शामिल होते हैं। इनके अलावा कानूनी मामलों और विधायी विभाग के सचिव भी इसके सदस्य होते हैं।
विधि विभाग में कुछ पार्ट टाइम सदस्य भी होते हैं। लेकिन आयोग में पांच से ज्यादा पार्ट टाइम सदस्य नहीं रखे जाते।
विधि आयोग (Law Commission of India) का काम
मुख्य रूप से तीन काम होते हैं–
पहलाः ऐसे कानूनों की पहचान करना जो अब प्रासंगिक नहीं रह गए हैं और उन्हें तत्काल खत्म किया जा सकता है।
दूसराः ऐसे कानूनों की पहचान करना जो आज के हिसाब से नहीं हैं और उनमें संशोधन या बदलाव किए जाने की जरूरत है।
तीसराः ऐसे कानूनों की पहचान करना जिनमें संशोधन या बदलाव जरूरी हैं और इन संशोधन का सुझाव देना।
ये काम कैसे करता है?
विधि आयोग आमतौर केंद्र सरकार या सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट्स के आदेशों और फैसलों के आधार पर किसी प्रोजेक्ट पर काम करता है। कुछ मामलों में विधि आयोग स्वतः संज्ञान लेकर भी काम शुरू कर सकता है।
काम करने का तरीका
कमीशन के सदस्य मिलकर किसी विषय पर चर्चा करते हैं। इसके बाद जिस विषय पर कानून बनाने या संशोधन की जरूरत होती है, तो उस पर आम जनता और उससे जुड़े लोगों की राय या सुझाव लिए जाते हैं।
मसलन, समान नागरिक संहिता (Common Civil Code) के मामले में विधि आयोग ने आम जनता, सार्वजनिक संस्थानों और मान्यता प्राप्त धार्मिक संगठनों से उनकी राय और सुझाव मांगे हैं।
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एक बार सारे सुझाव और राय आने के बाद सारे सदस्य और अध्यक्ष इन पर विचार-विमर्श करते हैं। इसी आधार पर फाइनल रिपोर्ट और समरी तैयार की जाती है।
एक बार फाइनल रिपोर्ट तैयार होने के बाद कमीशन उससे जुड़े कानून का ड्राफ्ट या फिर संशोधित बिल को तैयार करती है। सबसे आखिर में विधि आयोग अपनी रिपोर्ट केंद्र सरकार को सौंप देता है। आजादी के बाद से अब तक विधि आयोग 277 रिपोर्ट सौंप चुका है।
सरकार क्या करती है?
विधि आयोग (Law Commission of India) ने एक बार अपनी रिपोर्ट सौंप दी तो फिर सब केंद्र सरकार पर निर्भर करता है कि उसका क्या करना है।
केंद्र सरकार चाहे तो उस रिपोर्ट में दिए गए सारे सुझावों और सिफारिशों को मान ले। या फिर उन सुझावों या सिफारिशों को खारिज कर दे।
लेकिन कानून से जुड़े जो भी बदलाव होते हैं या फिर नया कानून बनता है, वो सब विधि आयोग की सलाह और सुझावों पर ही किया जाता है।
यूसीसी (Uniform Civil Code) के मामले में आगे क्या?
समान नागरिक संहिता के मामले में 22वें विधि आयोग ने अभी लोगों और धार्मिक संगठनों से उनकी राय मांगी है।
लोग अपनी राय 30 दिन यानी 14 जुलाई 2023 तक विधि आयोग को भेज सकते हैं। हो सकता है कि विधि आयोग बाद में कुछ लोगों और धार्मिक संगठनों से जुड़े प्रतिनिधियों को चर्चा के लिए भी बुला ले।
सारे सुझाव आने और गहन विचार-विमर्श के बाद विधि आयोग समान नागरिक संहिता से जुड़ी रिपोर्ट तैयार करेगा। साथ ही समान नागरिक संहिता का एक मसौदा भी सौंप सकता है।
अगर केंद्र सरकार को ठीक लगता है तो फिर उस ड्राफ्ट को बिल के जरिए संसद में पेश करेगी। संसद की मंजूरी मिलने के बाद ही इस पर कोई कानून बन सकता है।
समान नागरिक संहिता (Common Civil Code) है क्या?
समान नागरिक संहिता यानी सभी धर्मों के लिए एक ही कानून। अभी शादी, तलाक, उत्तराधिकारी और संपत्ति जैसे मामलों को लेकर सभी धर्मों के अपने अलग-अलग कानून हैं। जैसे- हिंदुओं के लिए हिंदू पर्सनल लॉ और मुस्लिमों के लिए मुस्लिम पर्सनल लॉ।
समान नागरिक संहिता अगर लागू होती है तो फिर शादी, तलाक, उत्तराधिकारी और संपत्ति से जुड़े सारे कानून सभी धर्मों में एक ही होंगे।
इसे लागू करने की बात इसलिए की जाती है ताकि देश में सभी के लिए समान कानून हो। इसे ऐसे समझिए कि शादी-तलाक से जुड़े मामलों के लिए हिंदुओं के लिए हिंदू मैरिज एक्ट है। हिंदू मैरिज एक्ट के तहत दूसरी शादी गैर-कानूनी है। लेकिन मुस्लिमों के पर्सनल लॉ के तहत मुस्लिम पुरुषों को चार शादियां करने की इजाजत है।
इसी तरह तलाक से जुड़े कानून भी अलग-अलग हैं। हिंदुओं में तलाक हिंदू मैरिज एक्ट के तहत होता है। जबकि, मुस्लिमों में तलाक के लिए अलग-अलग प्रथाएं हैं।
इसी तरह शादी की कानूनी उम्र को लेकर भी अंतर हैं। इसलिए समान नागरिक संहिता की मांग होती है। क्योंकि इसके आने के बाद सभी पर एक ही कानून होगा, चाहे वो किसी भी धर्म, जाति या मजहब का हो।