हर दिन के हिसाब से सप्ताह में सातों दिन (7 Days in a Week) अलग अलग भगवान को समर्पित है. सोमवार को भगवान शिव का दिन माना जाता है. भगवान शिव (Lord Shiva) से जुड़ी कई रोचक कहानियां पढ़ने और सुनने को मिलती है. आज की इस कड़ी में हम उस कहानी के बारे में जानेंगे जिसमें शंकर जी की तीसरी आंख कैसे उत्पन्न हुई का उल्लेख है.
भगवान शिव की तीसरी आंख के बारे में सभी जानते हैं कि जब जब भोलेनाथ ने अपनी तीसरी आंख खोली है तब तब सृष्टि का विनाश हुआ है या फिर ये भी कहा जा सकता है कि भगवान शिव अपनी तीसरी आंख अधिक क्रोधित होने पर ही खोलते हैं. इसका सबसे बड़ा उदहारण कामदेव है. किस तरह कामदेव ने भगवान शिव की तपस्या को भंग किया था और कैसे वो शिव जी के क्रोध का शिकार हुए थे ये जग जाहिर है. भोले नाथ की तीसरी आंख को उनकी दिव्य दृष्टि भी कहा जाता है. यह भी मान्यता है कि भगवान शंकर अपनी तीसरी आंख से आत्मज्ञान प्राप्त करते हैं.
भगवान शिव के तीसरे नेत्र उत्पत्ती की कहानी
महाभारत के छठे खंड के अनुशासन पर्व में यह जानकारी दी गई है कि भगवान भोलेनाथ को तीसरी आंख कैसे मिली थी. पौराणिक कथा में उल्लेख है कि एक बार भगवान शिव और माता पार्वती के बीच हुई बातचीत के बारे में नारद जी बताते हैं. इसी बातचीत में तीन आंखों का रहस्य छिपा है.
इस कहानी के बारे में नारद जी बताते हैं कि एक बार की बात है भगवान शिव हिमालय पर्वत पर एक सभा कर रहे थे, जिसमें सभी देवता, ऋषि-मुनि और ज्ञानीजन उपस्थित थे. तभी उस सभा में माता पार्वती आईं और उन्होंने अपने मनोरंजन के लिए खुद के दोनों हाथों को भगवान शिव की दोनों आंखों पर रख दिये.
जैसे ही माता पार्वती ने भगवान शिव की आंखों को ढका, सृष्टि में अंधेरा हो गया. ऐसा लगा मानो सूर्य देव की कोई अहमियत ही नहीं है. इसके बाद धरती पर मौजूद सभी प्राणियों में खलबली मच गई. संसार की ये हालत देख कर भगवान शिव व्याकुल हो उठे और उसी समय उन्होंने अपने अपने माथे पर एक ज्योतिपुंज प्रकट किया, जो भगवान शिव की तीसरी आंख बन कर सामने आई. बाद में माता पार्वती के पूछने पर भगवान शिव ने उन्हें बताया कि अगर वो ऐसा नहीं करते तो संसार का नाश हो जाता, क्योंकि उनकी आंखें ही जगत की पालनहार हैं.