धर्म डेस्क। प्रभु श्री राम का जन्म त्रेता युग में हुआ था। एक अनुमान के अनुसार उनका जन्म 5114 ईसा पूर्व माना जाता है। कहते है जिसने धरती पर जन्म लिया है उसका मरण निश्चित है भगवान श्री राम ने भी धरती पर मनुष्य के रुप में अवतार लिया था। कई जगहों पर राम जी की मृत्यु या बैकुंठ धाम जाने का अलग-अलग वर्णन मिलता है। भगवान राम की मृत्यु के बारे में जो कथाएं मिलती हैं, उनमें से कुछ कथाएं इस प्रकार हैं।
कहा जाता है कि जब माता सीता को अपने पवित्र होने का प्रामाणिकता सिद्ध करने के लिए कहा गया तो उन्होंने परीक्षा देकर अपने पवित्र होने का प्रमाण दिया लेकिन इसके पश्चात सीता जी अपने दोनों पुत्रों कुश और लव को राम जी सौंप दिया और धरती माता ये कहा कि हे माता, मुझे अपने अंदर समा लिजिए, माता सीता जी के इतना कहते ही धरती फट गई और देखते ही देखते वह भूगर्भ में चली गईं। सीता जी के इस तरह से चले जाने के कारण राम जी व्यथित हो उठे और यमराज की सहमति से सरयू नदी के तट पर गुप्तार घाट में राम जी ने जल समाधि ग्रहण कर ली।
राम जी की मृत्यु के बारे में एक अन्य कथा भी मिलती है जिसके अनुसार, हनुमानजी की अयोध्या में अनुपस्थिति के समय यमदेव ने नगर में प्रवेश किया और संत का रूप धारण कर वे राम जी पास उनके महल में गए। संत वेश धारण किए हुए यमदेव ने श्रीराम से कहा कि हम दोनों के बीच की वार्ता गुप्त रहेगी। वे राम से एकांत में बात करना चाहते थे। यमराज जी ने राम जी के सामन यह शर्त रखी कि यदि हमारे वार्तालाप करत समय हमारे बीच कोई आया तो द्वारपाल को मृत्युदंड मिलेगा। राम ने वचन दे दिया लेकिन उस समय हनुमान जी वहां उपस्थित नहीं थे, जिसके कारण लक्ष्मण जी को द्वारपाल बनाकर खड़ा किया गया।
जिसके बाद यमदेव अपने असली रूप में आ गए और राम जी से कहा, प्रभु अब आपको अपने लोक लौटना होगा, धरती लोक पर आपका जीवन पूर्ण हो चुका है। अभी वार्तालाप चल ही रही थी। ऋषि दुर्वासा वहां पधारे और लक्ष्मण से द्वार के भीतर अंदर जाने की हठ करने लगे। उन्होंन लक्ष्मण से कहा कि यदि वे उन्हें अंदर नहीं जाने देंगे तो वे श्रीराम को श्राप दे देंगें।
लक्ष्मण जी दुर्वासा के क्रोध से भलिभांति परिचित थे। वे अब दुविधा में आ गए। आज्ञा का उल्लंघन करके ऋषि को अंदर जाने देते हैं तो मृत्युदंड मिलेगा और अगर वे दुर्वासा को अंदर प्रवेश नहीं करने देते हैं तो ऐसे में प्रभु राम को श्राप दे देंगे और अपने प्राणों की चिंता न करते हुए दुर्वासा को अंदर जाने की अनुमति दे दी।
वार्तालाप भंग हो गई राम जी सोचने लगे कि अब उन्हें अपने प्रिय अनुज लक्ष्मण को मृत्युदंड देना होगा। उन्होंने लक्ष्मण को राज्य निकाला दे दिया, लेकिन लक्ष्मण ने अपने भ्राता के वचन को तोड़ना नहीं चाहते थे वचन को पूरा करने के लिए उन्होंने सरयू नदि में जल समाधि ले ली। लक्ष्मण के सरयू नदी में समाधि लेने से राम जी अत्यंत दुखी हो गए और उन्होंने भी जल समाधि लेने का निर्णय कर लिया। माना जाता है कि जब राम जी ने सरयू नदी में जल समाधि ली तो उस समय हनुमान, जामवंत, सुग्रीव, भरत, शत्रुघ्न आदि सभी लोग उनके साथ वहीं पर उपस्थित थे।
श्रीराम जी के सरयू नदी के अंदर समाने के तत्पश्चात नदी के भीतर से भगवान विष्णु प्रकट हुए और उन्होंने अपने भक्तों को दर्शन दिए। इस प्रकार से राम जी ने अपना स्थूल रूप त्याग दिया और अपने वास्तविक स्वरुप अर्थात् विष्णु जी का रुप धारण किया, और इस तरह से राम जी ने वैकुंठ धाम की ओर प्रस्थान किया।