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जानें पुराणों में अधिकमास को लेकर यह पौराणिक कथा

malmas 2020

मलमास 2020

धर्म डेस्क। इस वर्ष आश्विन माह में ही अधिक मास अर्थात मलमास प्रारंभ हुआ है। यह 18 सितंबर से शुरू हुआ है और 16 अक्टूबर तक चलेगा। यही कारण है कि इस बार श्राद्ध पक्ष के खत्म होने के बाद नवरात्रि शुरू होने में एक महीने का समय है। पुराणों में अधिकमास को लेकर एक कथा प्रचलित है जिसका वर्णन हम यहां कर रहे हैं।

दैत्याराज हिरण्यकश्यप अमर होना चाहता था। इसके लिए उसने कठोर तप किया। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने उसे दर्शन दिए और वरदान मांगने को कहा। हिरण्यकश्यप ने ब्रह्माजी ने कहा कि आपके बनाए किसी भी प्राणी, न मनुष्य से और न पशु से मेरी मृत्यु ना हो। न दैत्य से और न देवताओं से। न भीतर मरूं, न बाहर मरूं। न दिन में न रात में। आपने जो 12 माह बनाए न उनमें, न किसी अस्त्र से न किसी शस्त्र से, न पृथ्वी पर न आकाश पर। किसी युद्ध में भी मुझे कोई मार न पाए। आपने जितने भी प्राणी बनाएं हैं उनमें मैं एकक्षत्र सम्राट हूं। तब ब्रह्माजी ने कहा- तथास्थु।

इस वरदान के बाद हिरण्यकश्यप के अत्याचार बढ़ गए। वो चाहता था कि विष्णु जी का कोई भी भक्त धरती पर न रहे। तब श्री‍हरि की माया से उसका पुत्र प्रहलाद ही उनका भक्त बन गया। विष्णु जी ने प्रहलाद की जान बचाने के लिए सबसे पहले 12 माह को 13 माह में बदल दिया। इस अधिक माह को अधिमास कहा गया। विषअणु जी ने नृसिंह अवतार लिया और शाम के समय देहरी पर अपने नाखुनों से उसका वध कर दिया।

इसके बाद हर चंद्रमास के हर महीने के लिए एक देवता निर्धारित हैं। लेकिन कोई भी इस अधिमास का देवता नहीं बनाना चाहता था। ऐसे में ऋषि-मुनियों ने भगवान विष्णु से इस मास का अधिपति बनने का आग्रह किया। उन सभी ने कहा कि वो इस मास का भार अपने ऊपर लें जिससे यह मास पवित्र बन सके। तब भगवान विष्णु ने इसे स्वीकार कर लिया। इस तरह यह मलमास के साथ पुरुषोत्तम मास भी कहलाया गया।

जब मलमास स्वामीविहीन थआ तब उसकी बड़ी निंदा होती थी। मलमास इस बात से बहुत दुखी था। उसने यह सब श्रीहरि विष्णु को बताया। श्रीहरि विष्णु मलमास को लेकर गोलोक पहुंचे। वहां पर श्रीकृष्ण ने मलमास की व्यथा जानी और उसे वरदान दिया। उन्होंने कहा कि अब से मैं तुम्हारा स्वामी हूं। इससे उनके सभी दिव्य गुण मलमास में समाविष्ट हो जाएंगे। कृष्ण जी ने कहा कि उन्हें पुरुषोत्तम के नाम से जाना जाता है ऐसे में वो मलमास को अपना यही नाम दे रहे हैं। इसके बाद से ही मलमास को पुरुषोत्तम मास के नाम से जाना जाने लगा।

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