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जानें, क्या है पोस्टपार्टम डिप्रेशन और कैसे करें इससे बचाव

पोस्टपार्टम डिप्रेशन

पोस्टपार्टम डिप्रेशन

लाइफ़स्टाइल डेस्क। किसी भी स्त्री के लिए मां बनना एक सुखद एहसास है, लेकिन इसके साथ ही उसके शरीर में कई बदलाव आते हैं-जैसे हार्मोन्स के स्तर में उतार-चढ़ाव, तनाव और नींद की कमी आदि। इसके अलावा अपनी और शिशु की सेहत को लेकर चिंता, नई जि़म्मेदारियों की वजह से होने वाली वाली घबराहट, अति भावुकता, चिड़चिड़ापन और मूड स्विंग जैसी समस्याएं अधिकतर स्त्रियों में देखने को मिलती हैं। डिलीवरी के बाद शुरुआती कुछ दिनों तक ऐसी समस्याएं होना आम बात है, जो समय के साथ दूर हो जाती हैं। अगर प्रसव के महीनों बाद भी स्त्री में ऐसे लक्षण मौज़ूद हों तो यह पोस्टपार्टम डिप्रेशन हो सकता है। यह डिलीवरी के बाद होने वाली आम समस्या है। जागरूकता के अभाव में पहले अधिकतर स्त्रियां इसे पहचान नहीं पाती थीं और इसी वजह से परिवार के सदस्य भी मामूली चिड़चिड़ापन समझकर इसे अनदेखा कर देते थे। अगर शुरू से ही इसके लक्षणों की पहचान कर ली जाए तो इसका आसानी से उपचार किया जा सकता है।

प्रमुख लक्षण

क्यों होता है ऐसा

आर्थिक परेशानियां

अनियोजित या अवांछित प्रेग्नेंसी की स्थिति में भी स्त्री शिशु की परवरिश से जुड़ी जि़म्मेदारियां उठाने को तैयार नहीं होती। इससे भी उसे पोस्टपार्टम डिप्रेशन की समस्या हो सकती है।

क्या है उपचार

किसी भी मनोवैज्ञानिक समस्या की तरह काउंसलिंग के ज़रिए इसका भी उपचार संभव है। इस समस्या से ग्रस्त स्त्रियों को आमतौर पर एंटीडिप्रेसेंट दवाएं दी जाती हैं। हॉर्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी भी इस बीमारी के उपचार में मददगार होती है। अगर मां शिशु को ब्रेस्ट फीड देती है तो डॉक्टर इस बात का पूरा ध्यान रखते हैं कि किसी दवा की वजह से शिशु की सेहत पर कोई बुरा असर न पड़े। आनुवंशिकता इस समस्या की प्रमुख वजह है। इसलिए अगर किसी के परिवार में इस बीमारी की केस हिस्ट्री रही हो तो उसे अपनी डॉक्टर को इस बात की जानकारी अवश्य देनी चाहिए। अगर आपको अपने अंदर पोस्टपार्टम डिप्रेशन के लक्षण नज़र आएं तो नि:संकोच एक्सपर्ट से सलाह लें। याद रखें, नवजात शिशु की अच्छी देखभाल तभी संभव है, जब आप भी स्वस्थ और प्रसन्न रहेंगी।

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