धर्म डेस्क। गणेश उत्सव के दौरान जागरण अध्यात्म आपके लिए गणपति बप्पा के 8 अवतारों की पौराणिक कथाएं ला रहा है। हम आपको हर दिन एक अवतार की जानकारी दे रहे हैं। इससे पहले हमने आपको गणेश जी के पहले वक्रतुंड और दूसरे एकदंत अवतार की कथा सुना चुका हैं। वहीं, आज हम आपको गणेश जी के तीसरे अवतार यानी महोदर की कथा लाए हैं। तो चलिए पढ़ते हैं कि आखिर गणेश जी ने महोदर का अवतार क्यों धारण किया था।
तो इसलिए श्री गणेश बने महोदर:
दैत्यगुरु शुक्राचार्य का शिष्य मोहासुर ने सूर्यदेव को अपनी तपस्या से प्रसन्न किया था। सूर्यदेव ने प्रसन्न होकर उसे सर्वत्र विजय का वरदान दिया था। वहीं, शुक्राचार्य ने उसे असुरों का राजा भी घोषित कर दिया था। इसी वरदान का गलत उपयोग करते हुए उसने तीनों लोकों पर विजय प्राप्त की थी। उसने आतंक का साम्राज्य स्थापित कर दिया था। सभी देवी, देवता, ऋषि और मुनि दैत्य मोहासुर के आतंक से परेशान हो गए थे। धरती पर भी धर्म और कर्म की हानि होने लगी थी।
इस परेशानी के निवारण के लिए समस्त देवगण और ऋषि मुनि, सूर्यदेव की शरण में पहुंचे। वहां, उन्हें इससे निजात पाने का उपाय पूछा। सूर्यदेव ने उन्हें श्री गणेश का एकाक्षरी मंत्र दिया। सभी ने पूरे भक्ति भाव से उस मंत्र का जाप किया और श्री गणेश को प्रसन्न किया। गणपति बप्पा प्रसन्न होकर महोदर के रूप में प्रकट हुए।
सभी ने महोदर अवतार से मोहासुर से मुक्ति दिलाने का निवेदन किया। भगवान ने उन्हें मोहासुर का वध करने का आश्वासन दिया। फिर महोदर मूषक पर सवार होकर दैत्य राज को सबक सिखाने निकल पड़े। वहीं, नारद मुनि ने मोहासुर को महोदर की शक्ति के बारे में बताया। वहीं, दैत्य गुरू शुक्राचार्य ने भी मोहासुर को देवी महोदरा की शरण में जाने की सलाह दी। इसी बीच विष्णु जी ने भी मोहासुर से कहा कि वो महोदर से जीत नहीं सकता है।
ऐसे में वो उनकी शरण में चला जाए और मैत्री कर ले। अगर वो देवताओं, मुनियों और ब्राह्मणों को धर्म पूर्ण जीवन व्यतीत करने का आश्वासन देता है महोदर तुम्हारे प्राण बख्श देगा। अन्यथा तुम्हारी मृत्यु निश्चित है।
यह सब सुनकर मोहासुर का अहंकार नष्ट हो गया। उसने अपने नगर में महोदर को पूरे आदर-सत्कार के साथ बुलाया और उनकी शरण ग्रहण की। साथ ही पापक्रम से दूर रहने का निश्चय किया।