धर्म डेस्क। शादी विवाह का नाम सुनते ही हर कोई खुश हो जाता है, सभी शादी को लेकर तैयारियां करने लगते है, लेकिन हिंदू धर्म में सबसे आवश्यक काम रस्मों को सही से निभाना होता है। वहीं जब कोई पिता अपनी पुत्री का विवाह करता है, तो उसमें सबसे महत्वपूर्ण रस्म कन्यादान की होती है, इस समय सभी बहुत भावुक हो जाते हैं। सनातन धर्म में कन्या के दान को सबसे बड़ा दान माना गया है।
हिंदू धर्म में जब पिता अपनी कन्या का हाथ वर को सौंपता है तो उस रस्म को कन्या दान कहा जाता है, इस संस्कार में पिता के द्वारा कन्या की हथेलियों पर हल्दी लगाई जाती है, और फिर पिता के हाथ के ऊपर कन्या का हाथ रखा जाता है वर अपने ससुर के हाथ के नीचे अपना हाथ रखता है जिसके बाद कन्या के हाथ पर पिता कुछ गुप्त दान और फूल रखता है। मंत्रोच्चारण के साथ पिता अपनी पुत्री का हाथ वर के हाथ में सौंप देता है, क्यों किया जाता है कन्या दान..
हिंदू धर्म में विवाह को पाणिग्रहण संस्कार माना गया है। जिसमें वर को विष्णु और कन्या को धनलक्ष्मी का स्वरुप माना गया है। कन्यादान का अर्थ होता है कि माता-पिता अपने घर की लक्ष्मी और संपत्ति वर को सौंप रहे हैं। आज से उनकी पुत्री की सारी जिम्मेदारियां उसके पति को निर्वहन करनी हैं। कन्या का हाथ वर के हाथ में देते हुए माता-पिता यह उम्मीद करते हैं कि ससुराल पक्ष में भी उसे वही सम्मान और प्रेम मिलेगा जो अब तक उनके घर मिला है। इसलिए इस रस्म को विवाह की महत्वपूर्ण रस्म माना गया है। जानते हैं कन्यादान को महादान क्यों कहा गया है।
हिन्दू धर्म में माना जाता है कि जब माता-पिता कन्या दान करते हैं, तो यह उनके और ससुराल पक्ष दोनों के लिए सौभाग्य लाता है। जिन लोगों को कन्या का दान करने का सौभाग्य प्राप्त होता है उनके लिए इससे बढ़कर और कुछ नहीं होता है, माना जाता है कि यह दान माता-पिता के लिए स्वर्ग के रास्ते खोलता है। इसलिए हिंदू धर्म में कन्या दान को सबसे बड़ा दान माना गया है।