देहरादून/लखनऊ। उत्तराखंड राज्य निर्माण के लिए आंदोलनरत महिलाओं, पुरुषों के साथ उत्तर प्रदेश के मुजफफरनगर जिले में रामपुर तिराहा (Rampur Tiraha Case) पर तीस वर्ष पहले दो अक्तूबर, 1994 को गोलीबारी, लूट, दुष्कर्म और छेड़छाड़ मामले में सोमवार को मुजफ्फरनगर की केन्द्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) अदालत ने दो पीएसी जवानों को दोषी करार देते हुए आजीवन कारावास और 50 हजार रुपए का जुर्माना लगाया है।
अदालत के फैसले का राज्य आंदोलनकारी संयुक्त समिति के केंद्रीय मुख्य संरक्षक और उत्तराखंड कांग्रेस के वरिष्ठ उपाध्यक्ष धीरेंद्र प्रताप ने संतोष व्यक्त किया है। साथ ही, इसे नाकाफी करार दिया है।
मुजफ्फरनगर के अपर जिला एवं सत्र न्यायालय संख्या-7 के पीठासीन अधिकारी शक्ति सिंह ने आज यह फैसला सुनाया। शासकीय अधिवक्ता, फौजदारी राजीव शर्मा, सहायक शासकीय अधिवक्ता, फौजदारी परवेंद्र सिंह, सीबीआई के विशेष लोक अभियोजक धारा सिंह मीणा और उत्तराखंड संघर्ष समिति के अधिवक्ता अनुराग वर्मा ने बताया कि सीबीआई बनाम मिलाप सिंह की पत्रावली में यह फैसला सुनाया गया।
न्यायालय ने दोषी पीएसी के जवान मिलाप सिंह और वीरेंद्र प्रताप सिंह को धारा 376 (2) (जी) के तहत आजीवन कारावास और 25 हजार रुपये का जुमाना लगाया। इसके अलावा धारा 392 में सात साल का कठोर कारावास और 10 हजार रुपये का अर्थदंड, छेड़छाड़ की धारा 354 में दो साल कारावास और 10 हजार रुपये अर्थदंड और धारा 509 में एक साल का कारावास और पांच हजार रुपये जुर्माना लगाया है। दोनों दोषियों पर 50-50 हजार रुपये लगाया गया है। जुर्माने की संपूर्ण धनराशि बतौर प्रतिकर पीड़िता को दी जाएगी।
रामपुर तिराहा कांड में 22 पुलिसकर्मियों के विरुद्ध गैर जमानती वारंट जारी
उल्लेखनीय है कि एक अक्टूबर, 1994 की रात अलग राज्य की मांग के लिए देहरादून से बसों में सवार होकर आंदोलनकारी दिल्ली के लिए निकले थे। इनमें महिला आंदोलनकारी भी शामिल थीं। रात करीब एक बजे रामपुर तिराहा (Rampur Tiraha Case) पर पुलिस ने बस रुकवा ली। दोनों दोषियों ने बस में चढ़कर महिला आंदोलनकारी के साथ छेड़खानी और दुष्कर्म किया। दोषियों ने पीड़िता से सोने की चेन और एक हजार रुपये भी लूट लिए थे। आंदोलनकारियों पर मुकदमे दर्ज किए गए। उत्तराखंड संघर्ष समिति ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। इसके बाद 25 जनवरी 1995 को सीबीआई ने पुलिसकर्मियों के खिलाफ मुकदमे दर्ज किए थे।
आज बहुचर्चित रामपुर तिराहा कांड (Rampur Tiraha Case) में फैसला देते हुए अपर जिला न्यायाधीश शक्ति सिंह ने लिखा कि महिला आंदोलनकारी के साथ बर्बरता और अमानवीय व्यवहार किया गया है। शांतिपूर्ण आंदोलन में नियमों के अधीन रहते हुए भाग लेना किसी भी व्यक्ति का मौलिक अधिकार है। इस मौलिक अधिकार के हनन के लिए किसी भी व्यक्ति को किसी भी महिला के साथ सामूहिक दुष्कर्म जैसा पाश्विक कृत्य कारित करने का अधिकार प्राप्त नहीं है एवं ऐसा व्यक्ति यदि पुलिस बल का है, तब यह अपराध पूरी मानवता को शर्मसार कर देने वाला है।