सनातन धर्म में करवा चौथ (Karwa Chauth) का व्रत सुहागिन महिलाओं के लिए बेहद खास माना जाता है. यह व्रत हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है. करवा चौथ विशेषकर उत्तर भारत में हिंदू महिलाओं के बीच बहुत लोकप्रिय दिन है. करवा चौथ मुख्य रूप से राजस्थान, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, दिल्ली और एनसीआर और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों में मुख्य रूप से मनाया जाता है. पंचांग के मुताबिक, इस बार उदया तिथि के हिसाब से करवा चौथ की पूजा और व्रत 1 नवंबर को ही रखा जाएगा. इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए बिना कुछ खाए पिए निर्जला व्रत रखती हैं और पूजा-पाठ करती हैं.
करवा चौथ (Karwa Chauth) के दिन रात्रि में चांद की पूजा करने का भी एक अलग महत्व है. करवा चौथ की पूजा बिना मिट्टी के करवे और सींक के अधूरा माना जाता है. मान्यताओं के मुताबिक, इस दिन पूजा में मिट्टी के करवे और सींक का इस्तेमाल जरूर करें. क्योंकि यह बेहद शुभ और पवित्र माना जाता है. करवा चौथ व्रत में शादीशुदा महिलाएं भगवान शिव, माता पार्वती, कार्तिकेय और भगवान गणेश की विधि-विधान से पूजा करें और रात को चंद्रदर्शन और उन्हें अर्घ्य देने के बाद ही व्रत खोलें. इस दिन विधिवत पूजा करने से अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होगी.
करवा चौथ (Karwa Chauth) व्रत कथा
एक साहूकार के सात लड़के और एक लड़की थी. एक बार कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को सेठानी सहित उसकी सातों बहुएं और उसकी बेटी ने भी करवा चौथ का व्रत रखा. रात्रि के समय जब साहूकार के सभी लड़के भोजन करने बैठे तो उन्होंने अपनी बहन से भी भोजन कर लेने को कहा. इस पर बहन ने कहा- भाई, अभी चांद नहीं निकला है. चांद के निकलने पर उसे अर्घ्य देकर ही मैं आज भोजन करूंगी.
साहूकार के बेटे अपनी बहन से बहुत प्रेम करते थे, उन्हें अपनी बहन का भूख से व्याकुल चेहरा देख बेहद दुख हुआ. साहूकार के बेटे नगर के बाहर चले गए और वहां एक पेड़ पर चढ़ कर अग्नि जला दी. घर वापस आकर उन्होंने अपनी बहन से कहा- देखो बहन, चांद निकल आया है. अब तुम उन्हें अर्घ्य देकर भोजन ग्रहण करो. साहूकार की बेटी ने अपनी भाभियों से कहा- देखो, चांद निकल आया है, तुम लोग भी अर्घ्य देकर भोजन कर लो. ननद की बात सुनकर भाभियों ने कहा- बहन अभी चांद नहीं निकला है, तुम्हारे भाई धोखे से अग्नि जलाकर उसके प्रकाश को चांद के रूप में तुम्हें दिखा रहे हैं.
साहूकार की बेटी अपनी भाभियों की बात को अनसुनी करते हुए भाइयों द्वारा दिखाए गए चांद को अर्घ्य देकर भोजन कर लिया. इस प्रकार करवा चौथ का व्रत भंग करने के कारण विघ्नहर्ता भगवान श्री गणेश साहूकार की लड़की पर अप्रसन्न हो गए. गणेश जी की अप्रसन्नता के कारण उस लड़की का पति बीमार पड़ गया और घर में बचा हुआ सारा धन उसकी बीमारी में लग गया.
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साहूकार की बेटी को जब अपने किए हुए दोषों का पता लगा तो उसे बहुत पश्चाताप हुआ. उसने गणेश जी से क्षमा प्रार्थना की और फिर से विधि-विधान पूर्वक चतुर्थी का व्रत शुरू कर दिया. उसने उपस्थित सभी लोगों का श्रद्धानुसार आदर किया और तदुपरांत उनसे आशीर्वाद ग्रहण किया. इस प्रकार उस लड़की के श्रद्धा-भक्ति को देखकर एकदंत भगवान गणेश जी उस पर प्रसन्न हो गए और उसके पति को जीवनदान प्रदान किया. उसे सभी प्रकार के रोगों से मुक्त करके धन, संपत्ति और वैभव से युक्त कर दिया.
करवे का महत्व
करवा चौथ (Karwa Chauth) की पूजा में उपयोग होने वाले मिट्टी के करवा को पंच तत्वों का प्रतीक माना जाता है. करवा में मिट्टी व पानी मिलाया जाता है और मिट्टी-पानी को भूमि और जल का प्रतीक माना जाता है. वहीं करवे का आकार देने के बाद इसे धूप और हवा में रखा जाता है ताकि ये जल्दी सूख जाए, जिसे आकाश और वायु का प्रतीक माना जाता है. आखिर में करवे को आग में तपा कर पकाया जाता है, जो कि अग्नि का प्रतीक माना गया है. ऐसे में एक करवा तैयार करने में पांचों तत्वों का इस्तेमाल किया जाता है. इसलिए कहा जाता है कि मिट्टी के बर्तन से पानी पीने से स्वास्थ्य भी अच्छा रहता है.
सींक का महत्व
करवा चौथ (Karwa Chauth) व्रत की पूजा में सींक का होना बहुत आवश्यक होता है. ये सींक मां करवा की शक्ति का प्रतीक है. पौराणिक कथा के मुताबिक, मां करवा के पति का पैर मगरमच्छ ने पकड़ लिया था. तब उन्होंने कच्चे धागे से मगर को बांध दिया और यमराज के पास पहुंच गईं थी. वे उस समय चित्रगुप्त करवा माता के जीवन का लेखा-जोखा देख रहे थे. तभी करवा माता ने सात सींक लेकर उन्हें झाड़ना शुरू किया, जिससे खाते आकाश में उड़ने लगे. करवा ने यमराज से अपने पति की रक्षा करने के लिए कहा, तब उन्होंने मगरमच्छ को मारकर करवा के पति की जान बचाई और उन्हें लंबी उम्र का वरदान दिया था.