नई दिल्ली| गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) और ऑनलाइन कर्ज देने वाली कंपनियों (फिनटेक) का ऊंचा ब्याज अब उनके लिए मुसीबत बनते जा रहा है। कोरोना संकट में मिले मोरेटोरियम अवधि खत्म होने के बाद अब लोन डिफॉल्ट के मामले बढ़ते जा रहे हैं। अक्तूबर में 40 फीसदी से अधिक लोन डिफॉल्ट के मामले सामने आए हैं। इससे एनबीएफसी और फिनटेक लिए मुश्किले बढ़ गई हैं।
वित्तीय क्षेत्र से जुड़े विशेषज्ञों का कहना है कि वाहन क्षेत्र के कर्ज पर एनबीएफसी का दबदबा रहा है। वह आसानी से कर्ज देती रही हैं। हालांकि, इसके बदले वह सरकारी बैंकों की तुलना में करीब तीन गुना ब्याज भी वसूलती हैं। बैंक जहां वाहन कर्ज (ऑटो लोन) करीब 10 फीसदी ब्याज पर दे रहे हैं।
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वहीं एनबीएफसी और फिनटेक 30 फीसदी से भी अधिक ब्याज वसूल रहे हैं। ऐसे में लोन डिफॉल्ट के मामले बढ़ते जा रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ सरकारी बैंकों का कर्ज सस्ता होने के साथ आसान उपलब्धता ने भी एनबीएफसी के लिए कड़ी चुनौती पेश कर दी है। एनबीएफसी से लोन लेने वालों की संख्या और मात्रा दोनों में कमी आई है। वहीं इन दोनों ही पैमानों पर लोन डिफॉल्ट बढ़ा है।
एनबीएफसी और फिनटेक बहुत आसानी से कर्ज देते रहे हैं। यहां तक कि सिर्फ आधार ओटीपी के जरिये एक क्लिक पर कर्ज की पेशकश करते हैं। हालांकि, ब्याज दरें औसतन 30 फीसदी या उससे भी अधिक होती है। विशेषज्ञों का कहना है कोरोना संकट के दौर में डिजिटल माध्यमों का उपयोग बढ़ने से अब उपभोक्ता बहुत पड़ताल कर रहे है और समझदारी से फैसला कर रहे हैं। इससे इन कंपनियों से नए कर्ज लेने वाले घटे हैं।
सरकारी बैंक वाहन लोन आसानी से देने लगे हैं। साथ ही उनका कर्ज भी बहुत सस्ता है। डिजिटल तकनीक के दम पर वह कई तरह की पड़ताल कर रहे हैं और यहां तक आर्टिफिशिएल इंटेलीजेंस (एआई) के इस्तेमाल से वह उपभोक्ता की पूरी कुंडली खंगाल रहे हैं। मानक पूरा होने पर वह तुरंत कर्ज की पेशकश कर देते हैं। इससे उपभोक्ता को भागदौड़ भी नहीं करनी पड़ती है।