नई दिल्ली। लद्दाख के पैगांग क्षेत्र में चीन की फौज पिछले करीब चार महीने से एलएसी के इस पार भारतीय सीमा क्षेत्र में धौंस जमा रही है। भारतीय विदेश मंत्रालय की बार-बार अपील के बाद भी चीन ने डेपसांग, पैंगोंग से अपने कदम पीछे नहीं खींचे हैं। 19 अगस्त को दोनों देशों के संयुक्त सचिव स्तर के राजनयिकों की वार्ता में भी कोई ठोस समाधान नहीं निकला है।
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विदेश मंत्रालय के पूर्व विदेश सचिव शशांक, चीन मामलों के जानकार स्वर्ण सिंह, विदेश मंत्रालय से कुछ समय पहले ही रिटायर हुए हैं। बीजिंग स्थित दूतावास में काम कर चुके सूत्र का कहना है कि चीन काफी समय से पड़ोसियों के साथ ढाई कदम आगे, दो कदम पीछे की नीति पर चल रहा है। 2017 में डोकलाम घुसपैठ के बाद उसने भारत के साथ आक्रमकता भी दिखानी शुरू कर दी है।
इसलिए भारत को सुनियोजित तरीके अपनाने होंगे। वायुसेना के अवकाश प्राप्त वाइस एयर मार्शल एनबी सिंह, सेना से रिटायर लेफ्टिनेंट जनरल बलवीर सिंह संधू समेत अन्य के पास चीन को करारा जवाब देने के सिवा कोई ठोस जवाब नहीं है। वहीं भारत ने चीन के साथ कारोबारी रिश्ते में दबाव बनाने का संकेत देते हुए वास्तविक नियंत्रण रेखा पर सैन्य तैनाती बढ़ाने, सतर्कता बनाए रखने, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चीन की विस्तारवादी नीति पर अपना पक्ष रखने का रास्ता अपनाया है।
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जबकि चौकियों पर दो-तीन दर्जन सैनिकों की ही तैनाती रहती है। इसके उलट लद्दाख के गलवां नदी घाटी क्षेत्र, फिंगर एरिया के पास, पैगोंग, डेपसांग के सामानांतर हजारों की संख्या में सैनिक तैनात हैं। आर्टिलरी, टैंक, आकाश प्रतिरक्षा मिसाइल प्रणाली समेत अन्य की तैनाती है।