Site icon 24 GhanteOnline | News in Hindi | Latest हिंदी न्यूज़

चाकूओं की पसलियों से गुजारिश तो देखिए :  चंद्रशेखर उपाध्याय

CS Upadhyay

CS Upadhyay

देहरादून। ‘हिन्दी से न्याय’ (Hindi se Nayay) इस देशव्यापी अभियान के नेतृत्व पुरुष-न्यायविद चन्द्रशेखर पण्डित भुवनेश्वर दयाल उपाध्याय (CS Upadhyay) ने हिंदी पत्रकारिता दिवस (Hindi Journalism Day) के अवसर पर  पत्रकारों को अपनी हार्दिक शुभकामना देते हुए कहा  कि जब कलम तोप के मुकाबिल हो तो अखबार निकालना चाहिए।  उन्होंने कहा कि  हम शब्दवंशियों का युद्ध लोकतंत्री कहे जा सकने वाले राजवंशी टाइप की मानसिकता वाले लोगों से है। कुछ लोगों का संदेश है कि पूंजी और शब्दवंशियों के बीच चली आ रही पुरानी दुश्मनी को खत्म कर दिया जाना चाहिए।  ये दीगर है कि पूंजी और शब्दवंशियों की अन्योन्या श्रितता या मित्रता पुरानी है लेकिन वह कुछ ऐसी रही कि उसके नाजायज होने की ओर नजर कम ही जाती रही है।

उन्होंने (CS Upadhyay) कहा कि प्रायः शब्दवंशियों के हल्कों में यह सवार्नुमति सी ही है कि थोड़े बहुत इमदाद जरूरी है जो ले लेनी चाहिए। लेकिन छोटे स्तर पर, जमीनी स्तर पर शब्दवंशियों के चेहरे पर तकलीफ की हल्की सी लकीर खींची हुई हमेशा देखी जा सकती है कि हमें समझौता करना पड़ा है, एक मुक्ति-बोधीय किस्म का अपराध-बोध जमीनी स्तर पर आम  रहा  है।

इसलिए आज के इस मौके पर मेरी ‘खास’ से अपील होगी कि वो ‘आम’ को कविता लिखने दें, लतीफे सुनाने, लिखने-दिखाने का उन्हें अभ्यस्त न बनाएं, उन्हें जहर गटकने के लिए विवश न करें। मैं हस्तिनापुर का हिस्सा रहा हूं, और आज भी हूं। आपकी बिरादरी में ही कई वर्ष बिताने के बाद हस्तिनापुर के सिंहासन का हिस्सा बना हूँ, मैंने रात के काले स्याह अँधेरे में समझौते होते हुए देखे हैं। मेरी खास से अपील होगी कि कुछ इमदाद के बदले थोड़ा झुकें जरूर, लेकिन रेंगे नहीं।

केंद्रीय मंत्री कौशल किशोर ने कोरोना काल में अनाथ हुए दो बच्चों को लिया गोद

उन्होंने (CS Upadhyay) कहा कि  मुझे मालूम है कि किन-किन लतीफों को रोका जाता है, किन-किन को लिखा जाता है। सरकारी विज्ञप्तियां खबर नहीं है, खबर मिलेगी, गाँव की मेड़-मड़ियांव से, शहर के गर्द-गुबार भरे मोहल्लों से, आखिरी आदमी से, जहाँ जाना हमने छोड़ दिया है, वातानुकूलित कक्षों से निकलकर वातानुकूलित कक्षों में पहुंचकर लतीफे बटोरने से अच्छा है कि कविता को ही तलाशें, जो हमारा कुलधर्म है। सरकारों में रहते जब मैं अपने मित्रों को कविता की जगह लतीफे लिखते-दिखाते, और सुनाते हुए देखता हूं, जहर गटकते हुए देखता हूं, तो मन खिन्न हो जाता है और दुष्यंत याद आते हैं ।

‘उनकी अपील है कि हम उन्हें मदद करें, चाकूओं (Knives) की पसलियों (ribs) से गुजारिश (Request) तो देखिए’

Exit mobile version