अशोक धाम भगवान शिव को समर्पित एक भव्य मंदिर है। यह बिहार के लखीसराय जिले में स्थित है। इसे इंद्रद्युम्नेश्वर महादेव मंदिर के रूप में भी जाना जाता है। अशोक नाम का एक चरवाहा गाय चराने के लिए अपनी टोली के साथ एक टीले पर जाया करता था।
एक दिन सतघरवा नामक बच्चों का खेल खेलने के क्रम में वह जमीन पर गिर पड़ा और उसके सिर में चोट लगी। तब उसे नीचे जमीन पर किसी पत्थर का एहसास हुआ। गाय चराने वाले डंडे से खोदने पर गहराई में काला चिकना पत्थर दिखाई पड़ा, जो विस्मित करने वाला था।
साथी चरवाहों के साथ अशोक ने खुदाई जारी रखी, उसी के साथ शिवलिंग बाहर आने लगा। तब तक गांव के लोग भी पहुंच गए। वे उत्साहित होकर खुदाई करने लगे। गहरी खुदाई के बाद एक वृहद शिवलिंग सामने आया।
उस टीले के अन्य भागों की खुदाई करने पर सैकड़ों छोटी मूर्तियां मिली थीं, जिन्हें मंदिर परिसर स्थित एक संग्रहालय में रखा गया है। खनन के दौरान कई खंडित मूर्तियों और स्तम्भों के टूटे हुए अंश मिले थे, जिन पर धार्मिक चित्र उत्कीर्ण हैं। 7 अप्रैल, 1977 को सबसे पहले अशोक की दृष्टि पड़ने और उसके सक्रिय होकर शिवलिंग को बाहर निकालने के कारण उस स्थान का नाम लोगों ने ‘अशोक धाम’ रख दिया।
शिवलिंग का नाम शास्त्र मर्मज्ञ, स्थानीय इतिहास के ज्ञाता पंडित कामेश्वर पांडेय की सलाह पर इन्द्रद्युम्नेश्वर महादेव रखा गया। इन्द्रद्युम्न पाल वंश के अंतिम शासक थे।
एक रामायण के अनुसार, वनवास के क्रम में इस जगह पर भगवान श्रीराम भी अपनी बहन शांता और बहनोई शृंगी मुनि के दर्शनार्थ आए थे। तब भगवान राम ने सबसे पहले यहां अपने आराध्य शंकर की पूजा की थी। ज्ञात हो कि शृंगी ऋषि का आश्रम यहां से 8 मील दूर एक पर्वत पर स्थित है। संभव है, वह यही शिवलिंग हो।
विशाल मंदिर परिसर में चार मंदिर हैं। केंद्र में विशाल इंद्रद्युम्नेश्वर महादेव मंदिर है। इस मंदिर को घेरे हुए तीन और मंदिर हैं, जो मां पार्वती, नंदी और देवी दुर्गा को समर्पित हैं। 11 फरवरी, 1993 को जगन्नाथपुरी के शंकराचार्य ने मंदिर परिसर के पुननिर्माण का उद्घाटन किया था।
कैसे पहुंचें: निकटतम हवाई अड्डा पटना में है, जो करीब 140 किलोमीटर की दूरी पर है। देश के प्रमुख शहरों से लखीसराय के लिए ट्रेनें चलती हैं। नजदीकी रेलवे स्टेशन लखीसराय और किउल जंक्शन है। लखीसराय राज्य व देश के प्रमुख नगरों से सड़क मार्ग से अच्छे से जुड़ा हुआ है।