फाल्गुन कृष्ण त्रयोदशी पर 8 मार्च को महाशिवरात्रि (Mahashivratri) का पर्व ग्रहों की शुभ युति तथा शिवयोग के सर्वार्थसिद्धि योग में मनेगा। पंचांग की गणना व धर्मशास्त्रीय मान्यता के अनुसार महाशिवरात्रि पर इस प्रकार के योग संयोग व ग्रह स्थिति 300 साल में एक या दो बार ही बनती है। इस दुर्लभ योग में भगवान शिव की पूजा शीघ्र फल प्रदान करने वाली मानी गई है। ज्योतिषियों के अनुसार योग, नक्षत्र व ग्रहों की इस स्थिति में भक्त अगर अपनी राशि के अनुसार पूजन करें, तो शीघ्र सफलता प्राप्त होगी।
ज्योतिषाचार्य पं.अमर डब्बावाला के अनुसार महाशिवरात्रि (Mahashivratri) पर शुक्रवार के दिन श्रवण नक्षत्र उपरांत धनिष्ठा नक्षत्र, शिवयोग, गर करण तथा मकर/कुंभ राशि के चंद्रमा की साक्षी रहेगी। वहीं, कुंभ राशि में सूर्य, शनि, बुध का युति संबंध रहेगा। इस प्रकार के योग तीन शताब्दी में एक या दो बार बनते हैं, जब नक्षत्र, योग और ग्रहों की स्थिति केंद्र त्रिकोण से संबंध रखती है।
इस युति में जब कोई महापर्व आता है तो धर्म, सनातन व वैदिक परंपरा को विशेष रूप से आगे बढ़ने का अनुक्रम साधता है। इस दृष्टि से इस बार आने वाली महाशिवरात्रि (Mahashivratri) विशेष रूप से पूजनीय है। इसी दौरान साधक, उपासक आराधक यथा श्रद्धा भक्ति अपने व्रत उपवास को वैदिक पौराणिक दृष्टिकोण से संपादित करेंगे। क्योंकि योगों की यह स्थिति बार-बार नहीं बनती।
शिव की कृपा पाने का खास दिन
वर्ष भर में आने वाली 12 शिवरात्रियों में यह महाशिवरात्रि (Mahashivratri) है। अर्थात फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी से युक्त यह शिवरात्रि महाशिवरात्रि की श्रेणी में आती है। इस दिन भगवान शिव की विशेष रूप से पूजा करनी चाहिए। इसमें पंचामृत अभिषेक, षोडशोपचार या पंचोपचार पूजन, अष्टाध्यायी रूद्र, लघु रूद्र, महा रूद्र आदि के माध्यम से भगवान शिव को प्रसन्न किया जा सकता है।
साधना उपासना की दृष्टि शिवरात्रि (Mahashivratri) विशेष
महाशिवरात्रि पर व्रत अवश्य रखना चाहिए, दिनभर भगवान शिव के बीज मंत्र, एकाक्षी मंत्र या वैदिक मत्रों का मानसिक जाप करना चाहिए। प्रकट रूप में भगवान शिव का अभिषेक पूजन करें, इसके अलावा पुष्प से अर्चन करना चाहिए। पुष्पार्चन, धान्यार्चन, रुद्राक्ष अर्चन आदि शिव सहस्त्रनामावली स्तोत्र पाठ के माध्यम से करना चाहिए। जिससे भगवान शिव की विशेष कृपा मिलती है। शारीरिक रोग दोष समाप्त होते हैं उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है दीर्घायु की प्राप्ति होती है।
राशि अनुसार इस प्रकार करें पूजन
– मेष – रक्त चंदन का त्रिपुंड लगाएं, लाल कनेर का पुष्प चढ़ाकर शिवाष्टक का पाठ करें।
– वृषभ – सफेद चंदन का त्रिपुंड लगाकर सफेद सुगंधित पुष्प चढ़ाएं रुद्राष्टक का पाठ करें।
– मिथुन – भस्म का त्रिपुंड लगाकर सफेद आंकड़े के सात पुष्प चढ़ाएं शिव स्तोत्र का पाठ करें।
– कर्क – सफेद चंदन का त्रिपुंड लगाएं तथा शिव सहस्त्र नामावली का पाठ करें।
– सिंह – पीले चंदन का त्रिपुंड लगाएं तथा शिव महिमा स्तोत्र का पाठ करें।
– कन्या – अबीर का त्रिपुंण्ड लगाएं और शिव चालीसा का पाठ करें।
– तुला – सफेद चंदन का त्रिपुंण्ड लगाएं, सात सुगंधित सफेद पुष्प चढ़ाएं तथा अष्टोत्तर शतनामावली का पाठ करें।
– वृश्चिक – लाल चंदन का त्रिपुंड लगाएं, लाल कनेर के सात पुष्प चढ़ाएं तथा शिवाष्टक का पाठ करें।
– धनु – पीले चंदन का त्रिपुंड लगाएं, पीले पुष्प चढ़ाएं तथा महामृत्युंजय स्तोत्र का पाठ करें।
– मकर व कुंभ राशि वाले भस्म का त्रिपुंड लगाएं, अपराजिता के फूल चढ़ाएं तथा महामृत्युंजय कवच का पाठ करें।
– मीन – पीले चंदन का त्रिपुंड लगाएं, पीले पुष्प अर्पित करें तथा 12 अमोघ शिव कवच का पाठ करें।