रिश्वतखोरी के आरोप में पश्चिम बंगाल के दो मंत्रियों समेत 4 तृणमूल नेताओं की गिरफ्तारी के बाद राजनीति गरमा गई है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपने समर्थकों के साथ सीबीआई दफ्तर पर धरना देकर न केवल अपनी आक्रामकता जाहिर की है बल्कि इस पूरे प्रकरण को सियासी ठहराने की कोशिश भी की है। इस बीच तृणमूल कार्यकर्ताओं ने जिस तरह केंद्रीय सुरक्षाबलों पर पत्थरबाजी की,उसे किसी भी लिहाज से उचित नहीं ठहराया जा सकता। ममता के इस व्यवहार में भ्रष्टाचार के समर्थन, केंद्र सरकार,राज्यपाल और सीबीआई के प्रति सीधी बगावत की गंध भी आ रही है। बंगाल में भाजपा की जमती जड़ें भी उनकी इस बौखलाहट की वजह हो सकती हैं।
नारद स्टिंग ऑपरेशन में फंसे तृण मूल कार्यकर्ताओं को बचाने का काम तो ममता बनर्जी पहले से ही करती आ रही हैं। यह ऑपरेशन पहले दिन से ही उनके लिए परेशानी का सबब बना हुआ है। यह एक ऐसी फ़ांस है जो उनके गले में फंस गई है। वे तृण मूल सरकार के मंत्री फिरहाद हाकिम, सुब्रत मुखर्जी, टीएमसी विधायक मदन मित्रा और पूर्व नेता शोभन चटर्जी को फौरन रिहा करने के लिए धरने पर बैठ गईं। उनका कहना था कि या तो इन्हें रिहा करो या मुझे गिरफ्तार करो। उनका आरोप था कि इस मामले में आरोपी तो शुभेन्दु अधिकारी और मुकुल रॉय भी है जो भाजपा में चले गए हैं। उन्हें क्यों गिरफ्तार नहीं किया जा रहा है? केवल टीएमसी के नेताओं को ही टारगेट क्यों किया जा रहा है। ममता बनर्जी के इस सवाल में दम है लेकिन जांच एजेंसी की अपनी रणनीति होती है कि वह किसे पहले पकड़े और किसे बाद में। उसने यह तो नहीं कहा है कि वह किसे क्लीन चिट देने जा रही है लेकिन उन्हें इतना तो समझना ही चाहिए कि गिरफ्तार अपराधी को किया जाता है,निर्दोष को नहीं। फिर इस तरह की मांग सरकारी काम काज में बाधा नहीं तो और क्या है? मुख्यमंत्री पद पर बैठी महिला से इस तरह के उद्धत व्यवहार की यह देश अपेक्षा नहीं करता।
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नारद स्टिंग मामले में ममता बनर्जी आरम्भ से ही दीवार बनकर खड़ी हैं। सीबीआई कोर्ट से तो तृणमूल नेताओं को जमानत भी मिल गई थी। हाईकोर्ट अगर रोक न लगाती तो ममता एक तरह से उन्हें छुड़ाने में सफल हो ही गई थीं। राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने एक बार फिर ममता बनर्जी को संविधान के अनुरूप काम करने की सलाह दी है और सीबीआई दफ्तर पर पत्थरबाजी करने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं। चार टीएमसी नेताओं की गिरफ्तारी को पश्चिम बंगाल के विधानसभा अध्यक्ष ने अवैधानिक ठहराया है। उनका कहना है कि सीबीआई को गिरफ्तारी आदेश के लिए राज्यपाल के पास जाने से पहले उनसे अनुमति लेनी चाहिए थी। सीबीआई को इतना तो पता ही है कि उनके काम में किससे मदद मिल सकती है और कौन उनके काम में बाधक बन सकता है। खैर, नारद स्टिंग मामले में सीबीआई को पहली सफलता मिल गई है। पुलिस आयुक्त राजीव कुमार मामले में भी ममता बनर्जी ने हाई बोल्टेज ड्रामा किया था। वे न केवल राजीव कुमार के घर पहुंच गई थी बल्कि सीबीआई अधिकारियों को ही पुलिस ने अपनी गिरफ्त में ले लिया था। ममता दरअसल शुरू से ही नहीं चाहतीं कि यह मामला सीबीआई के पास जाए।
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विकथ्य है कि वर्ष 2016 में 52 घंटे के स्टिंग ऑपरेशन का वीडियो जारी हुआ था जिसमें सात तृणमूल सांसदों, तीन मंत्रियों और कोलकाता नगर निगम की महापौर को काम के बदले रिश्वत की मोटी राशि लेते हुए दिखाया गया था। यह स्टिंग नारद न्यूज़ के सीईओ मैथ्यू सैमुअल और उनके सहयोगी एंजेल अब्राहम ने किया था। ममता सरकार ने तो सैमुअल के खिलाफ ही मुकदमा दर्ज करा दिया था। वह तो उन्हें हाईकोर्ट से राहत मिल गई थी वर्ना आज वे सलाखों के पीछे होते और 80 लाख की रिश्वत लेने वाले तृणमूल नेताओं का बाल बांका भी न हो पाता। सीबीआई के निजाम पैलेस स्थित कार्यालय पर ममता बनर्जी के विरोध प्रदर्शन को किसी भी लिहाज से उचित नहीं ठहराया जा सकता। उनके समर्थकों ने न केवल हाई कोर्ट के आदेश में धकेल डालने का काम किया है,सुरक्षाबलों पर पथराव किया बल्कि हुगली, उत्तर 24 परगना और दक्षिण24 परगना जिलों समेत अन्य जिलों में भी तोड़फोड़ की, सड़क अवरुद्ध की। टायर जलाए। इसकी जितनी भी निंदा की जाए, कम है। ममता बनर्जी जिस तरह राज्य में मनमानियां कर रही हैं, वह किसी भी लिहाज से संवैधानिक मूल्यों और परंपराओं के अनुरूप नहीं है। बंगाल में प्रचंड बहुमत से तीसरी बार सत्ता में आईं ममता बनर्जी भ्रष्टाचारियों का आक्रामक बचाव कर आखिर क्या प्रदर्शित करना चाहती हैं? राज्य में कानून व्यवस्था वैसे ही बदतर है और जब मुख्यमंत्री खुद कानून व्यवस्था को हाथ में लेने लगेंगी तो फिर किससे क़ानून व्यवस्था को नियंत्रित करने की उम्मीद की जाएगी।
बेहतर तो यह होता कि ममता राज्य के व्यापक हितों का विचार करतीं और पश्चिम बंगाल को सुनहरा भविष्य देने का प्रयास करतीं। केंद्र से वैचारिक और राजनीतिक विरोध अपनी जगह है और बंगाल का हित अपनी जगह।उनकी जिद में बंगाल का अहित हो, यह तो उचित नहीं है। इसलिए भी उन्हें अपना नजरिया बदलना चाहिए और राज्य के समग्र विकास के लिए काम करना चाहिए।
भ्रष्टाचारी छोटा हो या बड़ा, उसकी सही जगह जेल ही है। काश, इस बात को ममता समझ पाती। आवेश में गलतियां होती हैं।इसलिए भी उन्हें ठंडे दिमाग से सोचना और राज्य हित में उचित निर्णय लेना चाहिए।