धर्म डेस्क। हिन्दू धर्म में मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की पचंमी तिथि का बड़ा महत्व है। इस तिथि को विवाह पंचमी के नाम से जाना जाता है। इस साल विवाह पंचमी तिथि 19 दिसंबर को पड़ रही है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, विवाह पंचमी के दिन भगवान राम और माता सीता का विवाह हुआ था। तुलसी दास जी ने रामचरित मानस के लेखन की शुरूआत विवाह पंचमी से ही की थी। आइए जानते हैं विवाह पंचमी का मुहूर्त, पूजा विधि और महत्व।
विवाह पंचमी के पूजन का शुभ मुहूर्त
- पंचमी तिथि आरंभ- 18 दिसंबर 2020 को रात 2.22 मिनट से
- पंचमी तिथि समाप्त- 19 दिसंबर 2020 को दोपहर 2.14 मिनट तक
विवाह पंचमी की पूजा विधि
- सुबह जल्दी उठकर स्नान ध्यान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- ईश्वर का ध्यान करते हुए राम-सीता विवाह का संकल्प करें।
- किसी साफ-सुथरे स्थान पर आसन बिछाएं।
- आसन पर भगवान राम और माता सीता की प्राण प्रतिष्ठा करें।
- भगवान राम को पीले और माता सीता को लाल वस्त्र अर्पित करें।
- विधिनुसार माता सीता और प्रभु श्रीराम जी का विवाह कराएं।
- विवाह पंचमी के दिन रामचरितमानस का पाठ करें।
विवाह पंचमी का महत्व
हिंदू धर्म में विवाह पंचमी का खास महत्व माना जाता है। इस दिन भगवान राम और माता सीता का स्वयंवर रचाया जाता है। साथ ही दोनों की विशेष पूजा की जाती है। जिन लोगों की शादी में बाधाएं आ रही है उनके लिए विवाह पंचमी पर पूजन करना बहुत लाभदायक होता है। माना जाता है कि इससे विवाह में आने वाली सारी बाधाएं दूर होती हैं और एक सुयोग्य साथी की प्राप्ति होती है। इस दिन पूजा अर्चना करने से वैवाहिक जीवन भी सुखमय बनता है। दांपत्य जीवन की सारी समस्याएं स्वतः ही दूर हो जाती हैं।
भृगु संहिता में विवाह पंचमी के दिन को शादी-विवाह के लिए अबूझ मुहूर्त के रूप में बताया गया है। लेकिन मिथिलावासी इस दिन को अपनी बेटियों का विवाह नहीं करते हैं। वहां ऐसी धारणा है कि विवाह पंचमी के दिन माता सीता और प्रभु श्रीराम का विवाह होने के कारण दोनों को वैवाहिक जीवन का सुख नहीं मिला था। इस कारण लोग इस दिन अपनी बेटियों का विवाह नहीं करते हैं।