उप्र विधानसभा चुनाव 2022 से ठीक पहले बसपा प्रमुख मायावती को एक और बड़ा झटका लगने जा रहा है। पूर्वांचल के ब्राह्मण चेहरा माने जाने वाले पूर्व मंत्री हरिशंकर तिवारी के बेटे बसपा विधायक विनय शंकर तिवारी का बसपा से मोहभंग हो गया है। ऐसे में वो हाथी के उतरकर दूसरे दल का दामन थाम सकते हैं।
पूर्वांचल में मजबूत पकड़ रखने वाले पूर्व मंत्री व बाहुबली नेता हरिशंकर तिवारी के बेटे विनय तिवारी गोरखपुर की चिल्लूपार सीट से बसपा विधायक हैं। सूत्रों की मानें तो विनय शंकर तिवारी से बसपा सुप्रीमो मायावती नाराज हैं और पिछले दिनों उन्हें बैठक में भी यह बात साफ तौर पर कह दी गई है कि चिल्लूपार सीट पर आपकी स्थिति ठीक नहीं है।
मायावती की इसी बात को लेकर विनय शंकर तिवारी राजनीतिक विकल्प की तलाश में है। हालांकि, विनय तिवारी अभी अपने पत्ते नहीं खोल रहे हैं कि किस पार्टी का दामन थामेंगे। विनय शंकर तिवारी बसपा छोड़कर किसी दूसरी पार्टी में जाते हैं तो मायावती के ब्राह्मण राजनीति के लिए पूर्वांचल में एक बड़ा सियासी झटका होगा।
दरअसल, पूर्वांचल में ब्राह्मण सियासत का पूर्व कैबिनेट मंत्री व बाहुबली नेता हरिशंकर तिवारी प्रमुख चेहरा माने जाते हैं। ऐसे में हरिशंकर तिवारी के बेटे विनय तिवारी बसपा छोड़ते हैं तो बसपा के लिए पूर्वांचल खासकर गोरखपुर और संत कबीर नगर जिले की सीटों पर सियासी नुकसान हो सकता है। हरिशंकर तिवारी की गोरखपुर ही नहीं बल्कि पूर्वांचल के तमाम जिलों में पकड़ मानी जाती है।
हरिशंकर तिवारी एक ऐसा नाम है जिसे पूर्वांचल का पहला बाहुबली नेता कहा जाता है। कहते हैं कि हरिशंकर तिवारी के नक्शे कदम पर चलकर ही मुख्तार अंसारी और ब्रजेश सिंह जैसे बाहुबलियों ने राजनीति में कदम रखा। हरिशंकर तिवारी के नाम से एक समय पूरा पूर्वांचल थर्राता था।
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पूर्वांचल में वीरेंद्र प्रताप शाही और पंडित हरिशंकर तिवारी की अदावत जगजाहिर है। 1980 का दशक ऐसा था जब शाही और तिवारी के बीच गैंगवार की गूंज देश भर में गूंजी। यहीं से दोनों के बीच वर्चस्व की लड़ाई ने ठाकुर बनाम ब्राह्मण का रंग लिया।
हरिशंकर तिवारी और वीरेंद्र शाही दोनों एक ही विधानसभा क्षेत्र चिल्लूपार के रहने वाले थे। 1980 में हुए उपचुनाव में महराजगंज के लक्ष्मीपुर विधानसभा सीट से वीरेंद्र प्रताप शाही निर्दलीय लड़े और जीते। 1985 में भी चुनाव जीतकर शाही ने राजनीति में अपनी मजबूत दखल दिखाई।
पूर्वांचल ब्राह्मण बनाम ठाकुर के समीकरण पर दोनों का साम्राज्य कायम था। 1985 में हरिशंकर तिवारी जेल में रहते हुए चिल्लूपार विधानसभा सीट से चुनाव लड़े और जीत हासिल की। तिवारी 1997 से लेकर 2007 तक लगातार यूपी में किसी भी पार्टी की सरकार बनी हो, वो मंत्री रहे।
चिल्लूपार से अजेय बन चुके पंडित हरिशंकर तिवारी को वर्ष 2007 और 2012 में पराजय मिली। साल 2017 में बसपा के टिकट पर उनके छोटे बेटे विनय शंकर तिवारी विधानसभा पहुंच गए। हरिशंकर तिवारी के बड़े बेटे भीष्म शंकर उर्फ कुशल तिवारी संत कबीरनगर से दो बार सांसद रह चुके हैं।