प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पड़ोसी प्रथम की भारतीय रीति—नीति का इजहार कर चीन को फिर कूटनीतिक झटका दिया है। ‘सौ सुनार की न एक लोहार की’ वाली कहावत को चरितार्थ करते हुए भारत के सीमावर्ती देशों को लोभ मोह में उलझाकर भारत के खिलाफ भड़का रहे चीन को उन्होंने अपने एक फोन से पटखनी दे दी है। विजय दिवस से एक दिन पूर्व उन्होंने अपने बांग्लादेशी समकक्ष शेख हसीना से न केवल वार्ता की बल्कि उन्हें इस बात का भरोसा दिया कि भारत हमेशा बांग्लादेश के साथ खड़ा है।
शेख हसीना ने बांग्लादेश के अभ्युदय और उसके विकास में सहयोग के लिए भारत का आभार माना तथा दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों पर भी जोर दिया। मार्च 2015 को भारत ने बांग्लादेश को 2 अरब डॉलर की सबसे बड़ी ऋण सहायता उपलब्ध कराई थी। इससे 5 साल पूर्व भारत की ओर से बांग्लादेश को एक लाख अरब डॉलर की आर्थिक ऋण सहायता मुहैया कराई गई थी। नरेंद्र मोदी और शेख हसीना के बीच हुए डिजिटल संवाद का असर यह रहा कि 55 साल से बंद चल रही चिलहटी और हल्दीबाड़ी के बीच रेल सेवा शुरू हो गई। भारत—पाकिस्तान के बीच युद्ध की वजह से यह सेवा 1965 में बंद हो गई थी।
1971 में बांग्लादेश के अलग देश बनने के बाद अगर दोनों देशों की सरकारें चाहती तो भारत और बांग्लादेश के बीच रेल सेवा उसी वक्त शुरू हो जाती। उस वक्त न सही, दो—चार साल बाद ही शुरू हो जाती लेकिन राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव में यह सब नहीं हो सका। नरेंद्र मोदी ने अपने पहले कार्यकाल में ही बांग्लादेश और भारत के मध्य सीमा विवाद का समाधान किया था। एक बार फिर उन्होंने शेख हसीना से बात कर यह साबित कर दिया है कि उनकी प्राथमिकता के केंद्र में भारत का सर्वोच्च विकास है। और यह तब तक संभव नहीं है जब तक कि सीमावर्ती पड़ोसी राज्य अशांत और उद्विग्न होंगे।
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रहीम ने लिखा था कि ‘करि कुसंग चाहत कुसल यह रहीम जिय सोच। महिमा घटी समुद्र की रावण बस्यो परोस।’ एक पड़ोसी पाकिस्तान से भारत पहले से ही परेशान है। वह चीन के प्रभाव में आकर आए दिन भारतीय सीमा पर अकारण गोलाबारी करता रहता है। चीन बांग्लादेश, नेपाल , श्रीलंका जैसे देशों पर डोरे डालता रहा है। उन्हें अपने कर्जजाल में फंसाता और भारत के खिलाफ उकसाता रहता है।
इसमें संदेह नहीं कि 1971 में बना बांग्लादेश लंबे समय तक कट्टरवादियों के चंगुल में रहा। बीते दो दशकों से इसकी कमान उदारवादी हाथों में है। यही वजह है कि वह गरीब राज्य की श्रेणी से निकलकर विकासशील देशों की श्रेणी में शुमार हो गया है। भारत और बांग्लादेश के मजबूत व्यापारिक रिश्तों को देखते हुए भी यह जरूरी हो जाता है कि दोनों देश अनवरत संवाद और स्नेह सौजन्य का सिलसिला बनाए रखें। भारत से बांग्लादेश को तकरीबन 11 अरब डॉलर का निर्यात होता है जबकि बांग्लादेश भारत को करीब सवा अरब डॉलर के सामानों का निर्यात होता है। दोनों देशों के बीच रेलसेवा शुरू होने से जाहिर है कि भारत और बांग्लादेश के बीच संबंध भी मजबूत होंगे और दोनों देशों के बीच व्यापार भी तेज होगा।
हालांकि इस सच से इनकार नहीं किया जा सकता कि भारत के कोलकाता और बांग्लादेश के ढाका के बीच चलने वाली मैत्री एक्सप्रेस और बंधन एक्सप्रेस पहले से ही दोनों देशों के संबंधों को मजबूत बना रही है। चिलहटी और हल्दीबाड़ी के बीच रेल सेवा शुरू हो जाने के बाद ये संबंध और प्रगाढ़ होंगे, इतनी उम्मीद तो की ही जानी चाहिए। जिस तरह भारत ने बांग्लादेश के स्वास्थ्य, बुनियादी सुविधाओं, ऊर्जा और परिवहन आदि क्षेत्रों में आर्थिक मदद की है, कुछ उसी तरह की पहल बांग्लादेश को भी करनी चाहिए। संबंधों का यही तकाजा भी है कि अब बांग्लादेश भारत की सुरक्षा और अन्य जरूरतों के प्रति सजग और संवेदनशील हो।
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दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों ने जो सात प्रमुख समझौते किए गए हैं, उससे दोनों देशों के बीच संबंध और मधुर होंगे, यह जितना सच है, उतना ही सच यह भी है कि अब दोनों देशों का विकासरथ भी उसी तेजी के साथ आगे बढ़ेगा। दोनों नेताओं ने बंगबंधु शेख मुजीबुर्रहान और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी पर आधारित डिजिटल प्रदर्शनी का भी उद्घाटन किया है। यह इस बात का द्योतक है कि महापुरुषों को याद कर, उनके पदचिन्हों पर चलकर ही कोर्ठ देश तरक्की कर सकता है। इसमें एक समझौता जहां स्थानीय निकायों तथा अन्य सार्वजनिक क्षेत्र के संस्थानों के माध्यम से सामुदायिक विकास योजनाओं में भारतीय अनुदान को लेकर है, वहीं दूसरा समझौता हाथी संरक्षण प्रोटोकॉल से संबद्ध है। एक अन्य समझौता वारिशाल क्षेत्र के लामचोरी में कचरा प्रबंधन से जुड़ा है। ढाका स्थित बंगबंधु स्मारक और राष्ट्रीय स्मारक नई दिल्ली के बीच भी एक सहमति पत्र पर दोनों देशों के अधिकारियों ने दस्तखत किए हैं। भारत—बांग्लादेश सीईओ फोरम को लेकर भी एक समझौता हुआ है। कुल मिलाकर देखा जाए तो ये सात समझौते भारत और बांग्लादेश के विकास में मील का पत्थर साबित हो सकते हैं। यह सच है कि इस कोरोनाकाल में बड़े सम्मेलनों का आयोजन संक्रमण के लिहाज से उचित नहीं है लेकिन इस डिजिटल युग में संवाद करने में कहां परेशानी है?
भारत वह पहला देश था,जिसने सबसे पहले बांग्लादेश के साथ 1971 में राजनयिक संबंध स्थापित किए थे और वे आज तक बदस्तूर कायम है। भारत के बारे में एक मान्यता है कि वह भूल से भी अगर किसी का हाथ थामता है तो उसे निभाता जरूर है। भारत के प्रयास से ही बांग्लादेश को 1974 में संयुक्त राष्ट्र संघ की सदस्यता प्राप्त हुई थी। भारत और बांग्लादेश के बीच क़रीब 4000 किमी. से अधिक लम्बी सीमा रेखा है। इसमें पश्चिम बंगाल में 2216 किमी., मिजोरम में 318 कि.मी. और असम में 262 कि.मी. की सीमा रेखाएं शामिल हैं। बांग्लादेश के शीर्ष नेतृत्व ने आश्वासन दे रखा है कि भारत को नुकसान पहुंचाने के लिए किसी को भी बांग्लादेश के भू-भाग के उपयोग की अनुमति नहीं होगी। 2011 में समन्वित सीमा प्रबंधन योजना पर भी दोनों देशों की सहमति है। समन्वित सीमा प्रबंधन योजना का उद्देश्य सीमा पार से गैर-कानूनी गतिविधियों और अपराधों नियंत्रण के लिए दोनों देशों के सीमा रक्षा बलों के कार्यों में तालमेल स्थापित करना है। भारत-बांग्लादेश के बीच नियमित रूप से सैन्य अभ्यास आयोजित किए जाते रहे हैं। भारत-बांग्लादेश सीमा पर 36 से अधिक लैंड कस्टम स्टेशन हैं जिनके माध्यम से सड़क मार्ग से माल की आवाजाही होती है। अंतर्देशीय जल व्यापार पर प्रोटोकॉल 1972 से ही लागू है। ऐसे में चीन को वहां किसी भी विकास परियोजना के जरिए भारत के खिलाफ भड़काने का मौका नहीं दिया जा सकता। यह वार्ता कांग्रेस नेता राहुल गांधी को जवाब भी है। दरअसल उन्होंने कहा था कि सभी पड़ोसियों को दुश्मन बनाकर भारत सुरक्षित नहीं रह सकता। मोदी—हसीना की इस वार्ता से साफ हो गया है कि भारत अपने पड़ोसी देशों के हित और सम्मान दोनों की सुरक्षा करना जानता है और जब हम सकारात्मक हैं तो हमारे पड़ोसी देश भी भारत के खिलाफ नहीं जाएंगे, इतनी अपेक्षा तो की ही जानी चाहिए।