प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर यह बात चर्चा में थी कि वे अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के शताब्दी समारोह को संबोधित करेंगे। कुछ लोगों को असमंजस भी रहा होगा कि पता नहीं, संबोधित करें या नहीं करें। फिर एक सवाल और था कि अगर वे वहां बोलेंगे तो क्या बोलेंगे लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इन सारी आशंकाओं—प्रतिशंकाओं का एक झटके में समाधान कर दिया।
देश में प्रधानमंत्री तो कई हुए लेकिन लाल बहादुर शास्त्री के बाद अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को संबोधित करने वाले वे भारत के दूसरे प्रधानमंत्री हैं। वह भी उस दल के प्रधानमंत्री हैं जिन पर राजनीतिक दल हिंदुओं और मुस्लिमों को बांटने का आरोप लगाते रहे हैं। जम्मू—कश्मीर के गुपकार नेता फारुख अब्दुल्ला ने तो आज ही कहा है कि वे भाजपा को अपना दुश्मन मानते हैं क्योंकि वह धर्म के आधार पर लोगों को बांटती है लेकिन राजनीति के जानकारों को पता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कभी हिंदू—मुसलमान, सिख, ईसाई, जैन नहीं किया। उन्होंने हमेशा सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास की बात कही है और आज वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए किए गए अपने संबोधन में भी उन्होंने जो कुछ भी कहा है, उसका लब्बोलुआब भी यही है। अगर यह कहें कि शास्त्री जी के बाद नरेंद्र मोदी ने अलीगढ़ विश्वविद्यालय में काम की बात कही है तो कदाचित गलत नहीं होगा। 55 साल तक किसी विश्वविद्यालय में प्रधानमंत्री का संबोधन ही न हो तो इसे किस तरह देखा जाना चाहिए।
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प्रधानमंत्री ने कहा है कि विकास को राजनीतिक चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए क्योंकि राजनीति इंतजार कर सकती है लेकिन विकास इंतजार नहीं कर सकता। भारतीय चिंतक भी यही बात कहते रहे हैं कि ‘काल करै सो आज करै। आज करै सो अब, पल में परलय होयगी बहुरि करौगे कब।’ मतलब किसी काम को टाला नहीं जाना चाहिए। सवाल यह है कि प्रधानमंत्री को इस तरह की बात क्यों कहनी पड़ रही है, भारतीय राजनीतिक दलों पर इस पर आत्ममंथन करना चाहिए। इसमें संदेह नहीं कि देश में विकास की गति के लंबे समय तक मंद रहने की वजह भी यहां की टाल—मटोल की कार्य संस्कृति और राजनीतिक इच्छाशक्ति का अभाव ही रही है। मतभेद हमेशा दुख देते हैं, कार्यावरोध पैदा करते हैं। विकास की गति को बाधित करते हैं। मतभेद के चलते पहले ही यह देश बहुत कुछ गंवा चुका है। इस देश की सदियों के मूल में भी यहां के राजाओं का परस्पर मतभेद ही प्रमुख रहा है। इस बात को प्रधानमंत्री भी समझते पर हैं और राजनीतिक दल भी। हम सत्तापक्ष में हैं या विपक्ष में हैं, यह बात उतनी मायने नहीं रखती जितनी यह कि हम भारतीय है। हर व्यक्ति केवल अपने हिस्से की जिम्मेदारी ही ढंग से निभा दे तो यह देश फिर सोने की चिड़िया बन जाए। अपने देश के प्रधानमंत्री की कीमत विदेशी बेहतर समझते हैं लेकिन हमने उन्हें ‘ घर का जोगी जोगड़ा’ से अधिक महत्व दिया ही नहीं। इसे विडंबना नहीं तो और क्या कहा जाएगा? प्रधानमंत्री ने सभी से आग्रह किया है कि मतभेदों को भुलाकर वे एक लक्ष्य के साथ मिलकर नया भारत, आत्मनिर्भर भारत बनाएं। उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के शताब्दी समारोह के जरिए देश को यह बताने और समझाने की कोशिश की है कि राजनीति समाज का अहम अंग तो है लेकिन वह सब कुछ नहीं है। राजनीति के अलावा भी समाज भी बहुत कुछ इतना अहम है जिसे किए जाने की जरूरत है। देश और समाज राजनीति और सत्ता की सोच से बहुत ऊपर की चीज है। उन्होंने सलाह दी है कि राष्ट्रीय लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए हर तरह के मतभेद को दरकिनार कर देना चाहिए। उन्होंने राष्ट्र और समाज के विकास को सियासी ऐनक से न देखने की बात कही है। यह भी कहा है कि हर समाज में कुछ स्वार्थी तत्व होते हैं जो अपने मुनाफे के लिए राष्ट्र एवं समाज के विकास में रोड़ा अटकाते रहते हैं। सकारात्मकता को भी नकारात्मकता में परिवर्तित करने की कोशिशें करते रहते हैं। प्रधानमंत्री का यह बयान तब आया है जब दिल्ली की विभिन्न सीमाओं पर किसान तीन कृषि कानूनों को रद्द किए जाने की मांग को लेकर कुछ सप्ताह से आंदोलनरत हैं और सरकार इस आंदोलन को विपक्षी दलों की साजिश करार दे रही है।
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प्रधानमंत्री की इस बात में दम है कि आज पूरी दुनिया की नजर भारत पर है। मौजूदा सदी को भारत की बताया जा रहा है,उस लक्ष्य की तरफ भारत कैसे आगे बढ़ेगा,इसे देखने और जानने की अभिलाषा सभी को है।प्रधानमंत्री ने युवाओं में उम्मीद जगाने की कोशिश की है। उनसे आग्रह किया है तो हर युवा हम पहले भारतीय हैं की भावना से अगर आगे बढ़ेगा तो हम हर मंजिल हासिल कर सकते हैं। उन्होंने देशवासियों को यह समझाने की भी कोशिश की है कि हम किस मजहब में पले-बढ़े हैं, इससे बड़ी बात यह है कि कैसे हम देश की आकांक्षाओं से जुड़ें। शिक्षा को सभी तक बराबरी से पहुंचाने, नारी शिक्षा को प्रोत्साहित करने, खासकर मुस्लिम महिलाओं में शिक्षा के प्रति आई जागृति का तो उन्होंने उल्लेख किया है, साथ ही यह भी बताने की कोशिश की है कि उनके कार्यकाल में चली एक भी विकास योजना और जनसुविधाओं से जुड़ी योजना ऐसी नहीं है जिसमें जाति और मजहब के साथ किसी से भेदभाव किया गया हो।
उन्होंने यह भी बताया है कि 2014 में 16 आईआईटी थे जो अब 23 हो गए हैं। 2014 में 13 आईआईएमएस थे जो अब बढ़कर आज 20 हो गए हैं। 6 साल पहले तक देश में सिर्फ 7 एम्स हुआ करते थे, आज 22 हैं। उनकी सरकार सभी तक शिक्षा को पहुंचाने का काम कर रही है। उन्होंने युवाओं से ऐसे स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में जानकारी उपलब्ध कराने को कहा है जिनके बारे में अब कोई नहीं जानता या ज्यादा नहीं जानता। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से भी उन्होंने मजबूत आत्मनिर्भर भारत बनाने के लिए सुझाव मांगा है। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय
के संस्थापक सर सैयद अहमद खान की तारीफ तो उन्होंने की ही, विश्वविद्यालय में अनेक भाषाओं में शिक्षा देने की तारीफ कर भी उन्होंने समाज के एक बड़े तबके का दिल जीत लिया है।
यह भी कहा है कि उर्दू,अरबी और फारसी भाषा में यहां होने वाली रिसर्च भारतीय संस्कृति को नई ऊर्जा देती है। सर सैयद ने कहा था कि देश की चिंता करने वाले का सबसे बड़ा कर्तव्य है कि वह लोगों के लिए काम करे, भले ही उनका मजहब, जाति कुछ भी हो। जिस तरह मानव जीवन के लिए हर अंग का स्वस्थ रहना जरूरी है, उसी तरह समाज का हर स्तर पर विकास जरूरी है। कोई मजहब की वजह से विकास की दौड़ में पीछे न रह जाए। जाहिर तौर पर प्रधानमंत्री ने अपने ओजस्वी विचारों से देश को दिशा दी है।अब यह शिक्षण संस्थानों की जिम्मेदारी है कि वह छात्रों को वह ज्ञान दें जो उन्हें अपना दीपक खुद बनने और पूरी दुनिया का भला करने की ताकत और प्रेरणा दे। यही मौजूदा समय की मांग भी है।