सियाराम पांडेय ‘शांत’
खेल जगत का सर्वोत्तम पुरस्कार खेलरत्न अब पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के नाम पर नहीं, बल्कि हाकी के जादूगर ध्यानचंद के नाम पर दिया जाएगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस आशय की घोषणा कर खेल जगत ही नहीं, देश के हर आम और खास का दिल जीत लिया है। यह काम तो उसी समय किया जाना चाहिए था जब प्रथम खेलरत्न पुरस्कार की घोषणा की गई थी लेकिन जब जागे, जब पुरानी भूल सुधार ली जाए तभी सवेरा। पुरस्कार जिस विधा के अंतर्गत दिया जाए, उसका नाम उसी विधा की स्वनामधन्य हस्तियों का नाम रखा जाना चाहिए। इसे दुर्भाग्यपूर्ण नहीं तो और क्या कहा जाएगा कि देश में जितने भी क्रिकेट स्टेडियम हैं, उनमें से एक भी किसी क्रिकेटर के नाम पर नहीं है। दो स्टेडियम हॉकी खिलाड़ियों और कुछ क्रिकेट प्रशासकों के नाम पर जरूर हैं। खेल को राजनीति से जोड़ने का ही परिणाम है कि केवल एक खेल पर नजरें इनायत होती रहीं और शेष खेलों को रामभरोसे छोड़ दिया गया। वैसे भी नरेंद्र मोदी ने नामकरण का जो जादू किया है, उसे संसद से जंतर—मंतर तक मार्च करने वाली कांग्रेस अभी भी समझ नहीं पाई है। वह इसे हाथ की सफाई तो मान रही है लेकिन यह सफाई हुई कैसे, उसे भांप पाने में वह खुद को सर्वथा असहाय पा रही है।
कांग्रेस ने अपने शासनकाल में पुरस्कारों, खेल मैदानों, पार्कों, सड़कों और विकास योजनाओं पर जिस तरह अपने नेताओं के नाम रखने की परिपाटी विकसित की, उसे किसी भी लिहाज से उचित नहीं ठहराया जा सकता। उसकी रीति—नीति का अनुसरण करते हुए केंद्र में पदासीन होने वाले दूसरे दलों ने भी अपने नेताओं के नाम चमकाने की कोशिश की। इसका परिणाम यह हुआ कि संबंधित क्षेत्र की स्वनामधन्य हस्तियां नेपथ्य में चली गईं। देश में 52 इंटरनेशनल क्रिकेट स्टेडियम हैं। इसमें अनेक स्टेडियम गांधी—नेहरू परिवार के नाम पर हैं। वर्ष 2014 तक लगभग 600 सरकारी योजनाओं के नाम गांधी—नेहरू परिवार के नाम पर रखे गए थे लेकिन वर्ष 2014 में केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार बदलने के नाम उनमें से कई योजनाओं के नाम बदल दिए गए थे। तब भी उन पर राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के तहत काम करने के आरोप लगे थे और आज जब उन्होंने राजीव गांधी का नाम हटाकर खेल रत्न पुरस्कार के साथ मेजर ध्यानचंद का नाम जोड़ा है, तब भी उन पर कुछ उसी तरह के आरोप लग रहे हैं। कुछ लोग इस कवायद को प्रधानमंत्री के ट्रंप कार्ड से जोड़कर देख रहे हैं।
वैसे भी ट्रंप कार्ड खेलने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कोई जोड़ नहीं है। वे उचित अवसर पर अपने अचूक प्रहार के लिए जाने जाते हैं। मौका और दस्तूर देखकर काम करते हैं। 41 साल बाद हॉकी में टोक्यो में भारतीय पुरुष टीम को ओलंपिक मेडल मिला है। यह देश के लिए गौरव की बाद है कि उसके राष्ट्रीय खेल का नाम देश—दुनिया में चमका है। ऐसे में खिलाड़ियों के प्रोत्साहन के साथ उनके श्रम को महत्व भी दिया जाना ही था। प्रधानमंत्री ने अगर महिला टीम को यह कहा है कि आपका पसीना पूरे देश को प्रेरणा देगा तो उनके स्तर पर भी तो कुछ करना बनता था। यही सोचकर उन्होंने देश के सर्वोच्च खेल पुरस्कार का नाम हटाकर हॉकी के जादूगर ‘मेजर ध्यानचंद के नाम पर रख दिया। यह तो अच्छी बात है। अब अगर इससे कांग्रेस को झटका लगता है और वह इसे बदले की भावना से किया गया कार्य करार देती है तो यह उसका अपना विवेक है। ऐसे में एक गीत याद आता है— ‘मरता है कोई तो मर जाए, हम तीर चलाना क्यों छोड़ें।’
इसमें संदेह नहीं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह निर्णय गांधी—नेहरू परिवार को न तो निगलते बन रहा है और न ही उगलते। जंतर—मंतर पर किसान नेताओं को अपना पूरा समर्थन देने गए राहुल गांधी भले ही इस मामले में चुप्पी साध गए हों लेकिन देश भर में कांग्रेसियों ने जिस तरह के बयान दिए हैं, उससे तो कांग्रेस की तिलमिलाहट का पता चलता ही है। कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने तो यहां तक कहा है कि नरेंद्र मोदी बड़ी रेखा तो खींच नहीं सकते। रेखा मिटाना जरूर चाहते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी महान हॉकी खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद के नाम का उपयोग अपने राजनीतिक लाभ के लिए कर रहे हैं। उन्होंने यह भी मांग की है अब अहमदाबाद के नरेंद्र मोदी स्टेडियम एवं दिल्ली के अरुण जेटली स्टेडियम का नाम भी बदला जाना चाहिए। उक्त स्टेडियमों के नाम भी किसी खिलाड़ी के नाम पर रखा जाना चाहिए। रणदीप सुरजेवाला यह कहना भी नहीं भूले कि राजीव गांधी किसी पुरस्कार से नहीं, बल्कि अपनी शहादत, विचार और आधुनिक भारत के निर्माण के लिए अभिज्ञेय हैं। राजीव गांधी इस देश के लिए नायक थे, हैं और रहेंगे।
सवाल यह है कि रणदीप सुरजेवाला ऐसा क्यों कह रहे हैं कि नरेंद्र मोदी ने राजनीतिक लाभ के लिए ध्यानचंद के नाम का इस्तेमाल किया है। मोटे तौर पर इसकी दो वजह है। एक यह कि खेल को लेकर जितना लगाव युवाओं में देखा जाता है, बुजुर्गों का खेल प्रेम भी उतना ही है फिर ध्यान चंद तो सभी खिलाड़ियों के आदर्श हैं। दूसरी वजह यह कि उनका जन्म प्रयागराज में हुआ था और अगस्त माह में ही हुआ था। झांसी को उनकी कर्मस्थली माना जाता है। इस लिहाज से नरेंद्र मोदी ने पूर्वांचल और पश्चिमांचल दोनों में ही उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की राजनीतिक जीत की राह आसान कर दी है।
इंदिरा आवास योजना, इंदिरा गांधी मातृत्व योजना, राजीव ग्रामीण विद्युतीकरण योजना, राजीव आवास योजना, जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण मिशन का नाम मोदी सरकार पहले ही बदल चुकी है। केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद ज्यादातर योजनाओं के नाम जो बदले गए हैं, उनमें अधिकतर नेहरू-गांधी परिवार के नाम पर थे। 2015 के एक अनुमान के मुताबिक नेहरू-गांधी परिवार के नाम पर देश में करीब 600 सरकारी योजनाओं के नाम रखे गए थे। 2012 में सूचना के अधिकार कानून के तहत 2012 में यह जानकारी सामने आई कि 12 केंद्रीय और 52 राज्य योजनाएं, 28 खेल टूर्नामेंट और ट्राफियां, 19 स्टेडियम, पांच हवाई अड्डे और बंदरगाह, 98 शैक्षणिक संस्थान, 51 पुरस्कार, 15 फेलोशिप, 15 राष्ट्रीय अभयारण्य और पार्क, 39 अस्पताल और चिकित्सा संस्थान, 37 संस्थानों, कुर्सियों और त्योहारों और 74 सड़कों, इमारतों और स्थानों का नाम कांग्रेस ने नेहरू-गांधी परिवार के नाम पर रखा था। देश में जिस किसी भी राज्य में भारतीय जनता पार्टी की सरकार हैं वहां की राज्य सरकारों ने कई शहरों, कई संस्थानों और स्टेशनों और बंदरगाहों के नाम भी बदल दिए हैं। कई योजनाओं के नाम बदले जाने पर कांग्रेस ने हमेशा यही तोहमत लगाई है कि योजनाएं तो यूपीए सरकार के समय की हैं लेकिन मोदी सरकार केवल उसका नाम बदल कर उसे नया दिखाने और अपना बताने की कोशिश कर रही है। 15 जून, 2017 को कांग्रेस नेता शशि थरूर ने कहा था कि मोदी सरकार पिछली यूपीए सरकार की कई योजनाओं के केवल नाम बदलकर 23 नए कार्यक्रम चला रही है।
मेजर ध्यानचंद का नाम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अकारण ही नहीं उछाला है। उन्हें पता है कि कांग्रेस चाहकर भी इस नाम का विरोध नहीं कर सकती। मेजर ध्यानचंद ने तीन ओलंपिक में कुल 39 गोल किए थे। बर्लिन में 1936 के अपने आखिरी ओलंपिक में हॉकी के जादूगर ने 13 गोल दागे थे। फाइनल में हिटलर की मौजूदगी में जर्मनी को 8-1 से शिकस्त देकर भारत ने गोल्ड हासिल किया था। तब दूसरे हाफ में ध्यानचंद ने गोलों की बौछार कर दी थी। ध्यानचंद की बदौलत ही भारत ने 1928, 1932 और 1936 के ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीता था।
राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार की शुरुआत 1991-92 में हुई थी। सबसे पहला खेल रत्न पुरस्कार पहले भारतीय ग्रैंड मास्टर विश्वनाथन आनंद को दिया गया था। अब तक 45 लोगों को ये अवॉर्ड दिया जा चुका है। हॉकी में अब तक 3 खिलाड़ियों धनराज पिल्ले (1999/2000), सरदार सिंह (2017) और रानी रामपाल (2020) को खेल रत्न अवॉर्ड मिला है। इस पुरस्कार के तहत खिलाड़ी को प्रशस्ति पत्र,अवॉर्ड और 25 लाख रुपए की राशि दी जाती है।
पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के नाम पर नई दिल्ली, चेन्नई, कोच्चि, इंदौर, गुवाहाटी, मरागो, पुणे और गाजियाबाद में 9 स्टेडियम हैं। राजीव गांधी के नाम पर हैदराबाद स्थित क्रिकेट स्टेडियम का नाम रखा गया है जहां प्रवेश द्वार पर उनकी आदमकद प्रतिमा लगी है। उन्हीं के नाम पर देश के सर्वोच्च खेल पुरस्कार का भी नामकरण किया गया था। उनके नाम पर हैदराबाद, देहरादून और कोच्चि के एरिन का भी नामकरण हुआ है। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नाम पर भी देश में 3 एरिन गुवाहाटी, नई दिल्ली और विजयवाड़ा में हैं।
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के भी नाम पर 2 क्रिकेट स्टेडियम उत्तर प्रदेश के लखनऊ और हिमाचल प्रदेश के नादौन में हैं। सरदार वल्लभ भाई पटेल के नाम पर वलसाड में स्टेडियम है। अहमदाबाद का क्रिकेट स्टेडियम भी पहले उन्हीं के नाम पर था। अब वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर है। सबसे खास बात यह है कि भारत में किसी भी क्रिकेटर के नाम पर कोई भी क्रिकेट स्टेडियम नहीं है। हालांकि, क्रिकेट प्रशासकों के नाम पर स्टेडियमों का नामकरण जरूर हुआ है। खेल प्रेमियों के लिए थोड़ी सुकूनदेह बात यह जरूर है कि हॉकी के दो दिग्गजों के नाम पर देश में दो क्रिकेट स्टेडियम हैं। एक है लखनऊ का केडी सिंह बाबू स्टेडियम और दूसरा ग्वालियर का कैप्टन रूप सिंह स्टेडियम।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खेल पुरस्कार के नए नामकरण के साथ ही खेल और सेना से जुड़े लोगों को एक साथ साधने की कोशिश की है। देखना यह होगा कि कांग्रेस इस झटके से उबरने के लिए अगला कौन सा हथकंडा अपनाती है?