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हेल्थ इंश्योरेंस के प्रीमियम का मासिक भुगतान सालाना की तुलना में पड़ता है महंगा

health policy

हेल्थ पॉलिसी

नई दिल्ली| बीमा नियामक इरडा के निर्देश को अमल में लाते हुए कई बीमा कंपनियों ने स्वास्थ्य बीमा के प्रीमियम का मासिक, त्रैमासिक और छमाही विकल्प देना शुरू किया है। बीमा विशेषज्ञों का कहना है कि यह विकल्प उन लोगों के लिए अच्छा है जो नकदी संकट का सामना कर रहे हैं। वह मासिक प्रीमियम भुगतान का विकल्प चुन सकते हैं लेकिन इससे लगात बढ़ जाती है।

वहीं, मासिक प्रीमियम चूक होने पर पॉलिसी लैप्स होने का खतरा भी रहता है। मासिक प्रीमियम भुगतान विकल्प में बीमा कंपनियां सात या 15 दिन का ही ग्रेस पीरियड देती है। इसके बीच में प्रीमियम जमा नहीं करने पर पॉलिसी लैप्स हो जाती है। वहीं, दूसरी ओर बीमा कंपनी आईटी इंफ्रा और दूसरे खर्चों की लागत बढ़ने के एवज में सालाना प्रीमियम के मुकाबले अधिक पैसा वसूलती है। हालांकि, पॉलिसी के तहत मिलने वाले लाभ में कोई बदलाव नहीं होता है।

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बीमा के प्रीमियम का मासिक भुगतान में क्लेम का प्रॉसेस भी पेचीदा है। इरडा के निर्देश के अनुसार, अगर कोई उपभोक्ता मासिक प्रीमियम का भुगतान करता है तो बीमा कंपनी बकाया प्रीमियम की राशि को काट कर दावे का भुगतान करेगा। उदाहरण के लिए अगर किसी पॉलिसी का प्रीमियम 12 हजार रुपये है और आप मासिक 1000 रुपये का भुगतान का विकल्प चुनते हैं। ऐसे स्थिति में अगर आप सिर्फ दो भुगतान के बाद 50 हजार रुपये का दावा करते हैं तो बीमा कंपनी 10 हजार रुपये प्रीमियम बकाया का काट कर 40 हजार रुपये देगी।

पॉलिसीबाजार के अनुसार, 25 से 30 साल के करीब 40 फीसदी युवा स्वास्थ्य बीमा खरीदने में मासिक पॉलिसी का विकल्प चुन रहे हैं। वहीं, 30 फीसदी सालाना पॉलिसी का विकल्प चुन रहे हैं। स्वास्थ्य बीमा खरीदने का प्रसार टियर टू और थ्री शहरों के मुकाबले मेट्रो शहरों में काफी तेजी से हो रहा है। कोरोना संकट के बाद स्वास्थ्य बीमा का प्रसार तेज गति से हो रहा है।

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