पटना। तू कितनी बोली हो, तू कितनी प्यारी हो, प्यारी-प्यारी मां…..हो मां…..मेरी मां….ये शब्द अपने आप में संपूर्ण ब्रह्मांड है। मां शब्द के उच्चारण मात्रा से मानो एक अद्भुत ऊर्जा का एहसास होता है। जिंदगी की सारी खुशियां एक पल में मां तेरी आंचल में मिल जाती है। तू सच धरती की साक्षात देवी हो, जो घर जैसे पवित्र मंदिर की शोभा हो। इसीलिए जो मां और उसकी संतान का रिश्ता दुनिया में सबसे अहम और अनमोल होता है। मां बच्चे की इस जरूरत को बिना किसी स्वार्थ के समझकर वक्त पर पूरा कर देती है। वैसे तो मां अपने बच्चे पर अपना पूरा जीवन कुर्बान कर देती हैं।
ऐसे में बच्चे अपनी मां के लिए कुछ खास करना चाहते हैं। मां की इसी ममता और प्यार को सम्मान देने के लिए एक खास दिन होता है। इस दिन को मदर्स-डे (Mother’s Day) कहते हैं। हर साल मई के दूसरे रविवार को मदर्स डे मनाया जाता है। मदर्स डे भारत में ही नहीं बल्कि कई अन्य देशों में भी धूमधाम से मनाया जाता है।‘मां’ जितना संक्षिप्त शब्द, उसका सार उतना ही विशाल है। मां ही है जो अपनी औलाद पर कोई मुश्किल आने ही नहीं देती।
जिंदगी मिलती है कुछ कर गुजरने के लिए ही, अगर इसे सलिके से संवारा जाए तो वही आगे चलकर इतिहास बन जाता है। लेकिन उस इतिहास के बनने से पहले कितने संघर्ष के रास्तों से गुजरना पड़ता है…इसे जानने के लिए पढ़िए “मदर्स दे पर” एक खास रिपोर्ट:
वैसे तो हर मां की कहानी संघर्षपूर्ण होती है, सभी को समेट पाना संभव नहीं है, मगर आज हम बात कर रहे हैं बिहार की जयंती देवी और आरती देवी की। जिन्होंने संघर्ष के दम पर अपने बेटों को बनाया देश-दुनिया का गौरव।
हम बात कर रहे हैं सपुर 30 फेम आनंद कुमार (Anand Kumar) की माँ जयंती देवी (Jayanti Devi) और मैथमेटिक्स गुरु फेम आरके श्रीवास्तव (RK Srivastava) की माँ आरती देवी (Aarti Devi) के संघर्ष की हकीकत कहानी की।
आनंद की माँ जयंती देवी
पिता के गुजरने के बाद खुद माँ जयंती देवी पापड़ बनाती और आनंद उसे वो बेचते थे। सुपर 30 फेम आनंद कुमार कहते हैं कि आज मैं जो कुछ भी हूं अपनी माँ की बदौलत हूं। उनके दिखाए रास्ते पर चलकर ही हूँ आज वैसे माताओं को हम प्रणाम करते हैं जिन्होंने अपने सँघर्ष के बल पर अपने बच्चो को बनाया समाज मे युवायों के लिए रोल मॉडल। शिक्षा के क्षेत्र में पटना के आनंद कुमार और उनकी संस्था ‘सुपर 30’ को आज कौन नहीं जानता। हर साल आईआईटी रिजल्ट्स के दौरान उनके ‘सुपर 30’ की चर्चा अखबारों में खूब सुर्खियाँ बटोरती हैं। आनंद कुमार अपने इस संस्था के जरिए गरीब मेधावी बच्चों के आईआईटी में पढ़ने के सपने को हकीकत में बदलते हैं। सन् 2002 में आनंद सर ने सुपर 30 की शुरुआत की और तीस बच्चों को नि:शुल्क आईआईटी की कोचिंग देना शुरु किया। पहले ही साल यानी 2003 की आईआईटी प्रवेश परीक्षाओं में सुपर 30 के 30 में से 18 बच्चों को सफलता हासिल हो गई। उसके बाद 2004 में 30 में से 22 बच्चे और 2005 में 26 बच्चों को सफलता मिली। इसी प्रकार सफलता का ग्राफ लगातार बढ़ता गया। सन् 2008 से 2010 तक सुपर 30 का रिजल्ट सौ प्रतिशत रहा।
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सुपर 30 की चर्चा विदेशों तक फैल चुकी है। कई विदेशी विद्वान उनका इंस्टीट्यूट देखने आते हैं और आनंद कुमार की कार्यशैली को समझने की कोशिश करते हैं। इनके जीवनी पर बॉलीवुड ने फिल्म सुपर 30 भी बना चुका है। आनंद कुमार विश्व के प्रतिष्ठित विश्विद्यालय अपने यहाँ सेमिनार के लिए भी बुलाते हैं। आज आनंद कुमार का नाम पूरी दुनिया जानती है और इसमें कोई शक नहीं कि आनंद कुमार देश का गौरव हैं।
आरके श्रीवास्तव की माँ आरती देवी:
कोई भी एकदिन में चर्चित नहीं होता, उसके पीछे संघर्ष की लंबी कहानी होती है। ऐसे ही संघर्ष से आर के श्रीवास्तव का बचपन गुजरा है। पांच वर्ष की अवस्था में अपने पिता पारस नाथ लाल को खोया। आप समझ सकते हैं कि बिना पतवार के नाव की बीच नदी में क्या हालत होगी। कुछ ऐसा ही हुआ आरके श्रीवास्तव के परिवार के साथ। मां आरती देवी के सामने मानों विपत्ती की पहाड़ टूट पड़ी। मगर अपने बच्चों की खातिर उन्होंने संघर्ष को अपनाया और बच्चों को तालिम के लिए खुद को झोंक दिया। उन्होंने अपने बेटे रजनी कांत श्रीवास्तव (आरके श्रीवास्तव ) को पढ़ा लिखाकर काबिल इंसान बनाया। श्रीवास्तव बताते हैं कि माँ के आशीर्वाद के बिना कोई भी उपलब्धि को पाना असंभव था। मां के संघर्ष की कहानी को बयां करते हुए आंखें छलक आती हैं। किस तरह अपने बेटे-बेटियों को पढ़ाया, लिखाया होगा। बचपन में गरीबी के दिन ऐसे रहे कि कभी खाली पेट भी बिना भोजन किये सोना पड़ता था, माँ खुद अपने हिस्से की रोटी हमें दे देती और अपने खाली पेट सो जाती। लेकिन एक कहावत है कि हर अंधेरे के बाद उजाला जरूर आता है , आपको बता दें की आरके श्रीवास्तव बचपन से ही पढ़ने में अधिक रुचि रखते थे, खासकर गणित विषय में। जब आरके वर्ग 7 में थे तो वे 8 वी स्टूडेंट्स को गणित का ट्यूशन पढ़ाते थे। अपने वर्ग से हमेशा आगे के प्रश्नों को हल करते , ट्यूशन पढ़ाने से जो भी लोग अपनी इच्छा से जो पैसा देते उससे आरके अपने आगे की पढ़ाई का खर्च निकालने लगे। जिम्मेदारी ने आरके को कब बड़ा बना दिया पता ही नहीं चला।
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पिता के गुजरने के बाद बेटियों की शादी भी धूमधाम से शिक्षित परिवार में किया। संघर्ष की कहानी पिता के निधन तक ही आकर नहीं रुकी बल्कि पिता तुल्य इकलौते बड़े भाई भी इस दुनिया को असमय ही अलविदा कर गए। पिता जी का तो आरके को चेहरा भी याद नहीं बस धुंधली तस्वीरें उभरकर आती हैं। माँ ने पिताजी और बड़े भाई के गुजरने के बाद भी यह अहसास नहीं होने दिया कि उसके जीवन पर कितना बड़ा पहाड़ टूटा। दिन प्रतिदिन अपने ज्ञान और कौशल के बल पर देश में अपना पहचान बना चुके चर्चित मैथेमेटिक्स गुरू आर के श्रीवास्तव ने लोगो को संदेश देते हुए माँ के महता के बारे मे समझाया। वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड होल्डर, एशिया बुक ऑफ रिकॉर्ड होल्डर एवं इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड होल्डर मैथमेटिक्स गुरु फेम बनाया। अपने दर्द को करीब से महसूस करने वाले आरके श्रीवास्तव ने 1 रुपया गुरु दक्षिणा वाले मैथेमैटिक्स गुरु” आरके श्रीवास्तव का नाम वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्डस लंदन, इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्डस, गोल्डेन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स मे भी दर्ज हो चुका है । राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद भी आरके श्रीवास्तव के शैक्षणिक कार्यशैली की भी प्रशंसा कर चुके हैं। अभी तक 540 गरीब स्टूडेंट्स को बना चुके हैं इंजीनियर।
ऑटो रिक्शा चलाकर कभी परिवार का होता था भरण- पोषण
आईआईटी, एनआईटी सहित अन्य इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा के एंट्रेंस टेस्ट की तैयारी करवाने वाले आरके श्रीवास्तव ने सैकङो आर्थिक रूप से गरीब स्टूडेंट्स के सपने को पंख लगाया।आरके श्रीवास्तव पिछले कई सालों से गरीब बच्चों को 1 रुपया गुरु दक्षिणा में शिक्षा देकर उन्हें आईआईटी, एनआईटी,बीसीईसीई सहित देश के अन्य प्रतिस्ठित प्रवेश परीक्षाओ में सफलता दिलाते रहे हैं।