मुंबई| ‘लव सोनिया’ (‘Love Sonia’) फिल्म से सिने जगत में कदम रखने वाली मृणाल ठाकुर (Mrunal Thakur) ने ‘बाटला हाउस’, ‘सुपर 30’, ‘तूफान’, ‘धमाका’ आदि छोटी-बड़ी फिल्मों की हिस्सा रहीं। अब उनकी ‘आंख मिचौली’ फिल्म रिलीज को तैयार है। इसके अलावा ‘पिपा’ और ‘जर्सी’ फिल्म में भी फीमेल लीड रोल निभा रही हैं, जबकि अगले महीने आदित्य रॉय कपूर के साथ थ्रिलर फिल्म की शूटिंग शुरू करेंगी।
मैं आलिया (Aliya) की बहुत बड़ी फैन हूं। वे मुझे बहुत जबर्दस्त एक्ट्रेस लगती हैं, क्योंकि किसी भी कैरेक्टर में वे बड़े अच्छे से ढल जाती हैं और किरदार को जीवंत कर देती हैं। गंगूबाई (Gangubai) का जो टॉपिक है, उससे फिल्म देखने के लिए बहुत उत्सुक हूं। बहुत खुश हूं कि ऐसी फिल्में बन रही हैं। आलिया (Aliya) हों, संजय लीला भंसाली हों, ऐसे इंपोर्टेंट हस्तियों पर फिल्में बना रहे हैं, इसे लेकर भी खुश और प्राउड महसूस करती हूं। ऐसी कहानियों पर फिल्में बननी और लोगों तक पहुंचनी चाहिए ताकि पता चले कि गंगूबाई (Gangubai) का क्या संघर्ष रहा होगा या फिर उनकी क्या जर्नी है।
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अगर लव सोनिया (‘Love Sonia’) गंगूबाई (Gangubai) फिल्मों से ये सोसायटी जीने के लिए बेहतर जगह बनती है, तब क्यों नहीं ऐसी फिल्में बननी चाहिए। सच में प्राउड फील करती हूं कि आलिया इस तरह फिल्में चूज कर रही हैं। खुशी इस बात की भी है कि बॉलीवुड सिर्फ ग्लैमर, फन के लिए नहीं है, बल्कि ऐसी बड़ी हस्तियों पर भी फिल्में बन रही हैं, जिन्हें हम सेलिब्रेट नहीं कर पाए हैं। फिर तो चाहे उनके अचीवमेंट कितने बड़े या कितने छोटे हैं, जरूरी यह है कि हम उनको सेलिब्रेट करें। ऐसी महान हस्तियों को हम फिल्मों के द्वारा सेलिब्रेट कर रहे हैं।
उन्होने बताया की कोई स्ट्रेटजी नहीं बनाई है। प्लान यही है कि मैं ज्यादा से ज्यादा ऑडियंस तक पहुंच पाऊं। फिर तो चाहे मराठी ऑडियंस हों, हिंदी स्पीकिंग हो या तेलुगू हो। मुझे लगता है कि जब फिल्मों की बात होती है, तब लैंग्वेज वैरियर नहीं है। मैं एक्सप्लोर करना चाहती हूं। मुझे अलग-अलग भाषा सीखने का बड़ा शौक है। बतौर एक्टर हर तरह के कैरेक्टर निभाने का चैलेंज लेने में अच्छा लगता है, क्योंकि अगर ऐसा नहीं करती, तब चीजें एक जैसी लगने लगती है। वही सेट पर जाओ और एक तरह का रोल शूट करके वापस आ जाओ। नॉर्थ हो, साउथ हो, बॉलीवुड हो, हॉलीवुड हो, टॉलीवुड में हो, वह अच्छा काम हर जगह करना चाहूंगी।
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कैमरे के पीछे मैंने कभी किसी को थप्पड़ नहीं मारा है। मैं ऐसी इंसान हूं, जो चाहती हूं कि बातचीत में ही मामला सुलझ जाएं। हां, सेट पर पर शाहिद को थप्पड़ मारने में थोड़ा संकोच हुआ था। बड़ा डिफिकल्ट भी था, क्योंकि शाहिद कपूर को बहुत मानती हूं। वे बहुत उम्दा कलाकार हैं। शाहिद को थप्पड़ मारने के लिए मुझे डर लग रहा था कि कहीं जोर से न लग जाए। लेकिन वह सीन बहुत अच्छा बन पड़ा है। विश्वास है कि वह सीन लोगों को बहुत पसंद आएगा। मैं चाहती हूं कि लोग इसे थिएटर में जाकर देखें कि विद्या ने क्यों अर्जुन को थप्पड़ मारा। देखिए, बतौर एक्टर अलग-अलग किरदार निभाने और को-एक्टर के स्टेट ऑफ माइंड को जानने का मौका मिलता है।
पेंडेमिक की वजह से हमारी फिल्म रुक गई थी। जब रिज्यूम किया, तब हम सबके लिए बहुत मुश्किल था, क्योंकि हम सब पीपी किट में शूट कर रहे थे। मुझे क्रिकेट देखने का बचपन बड़ा शौक है, क्योंकि मेरे सारे भाई क्रिकेट खेलते हैं। भाई के साथ मैं भी स्टेडियम क्रिकेट देखने जाती थी। एक बार हम लोग स्टेडियम में बैठकर सचिन-सचिन चिल्ला रहे थे। इसी तरह फिल्म में एक शॉर्ट है, जहां पर खड़ी होकर मैं अर्जुन-अर्जुन चिल्ला रही हूं। सीन करते हुए लगा कि यह मेरी लाइफ का एक हिस्सा है। यह सीन निभाते समय ऐसा भी लग रहा था कि इसकी रिहर्सल सालों पहले कर चुकी हूं। मुझे लगता है कि यह भाव एक क्रिकेट फैन और सचिन फैन ही समझ सकता है।
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खास तैयारी यही करनी पड़ी कि औरतों की 1990 या 1980 में प्रायोरिटी क्या होती थी। मैंने अपनी मम्मी से, दोस्तों की मम्मियों से काफी सारी बातचीत की। उनकी तस्वीरें मंगवाकर देखा। इन सबके साथ थोड़ा वक्त गुजारा। उनसे जाना कि उस वक्त सोसायटी क्या एक्सपेक्ट करती थी। स्पेशली नार्थ इंडिया में किस तरह के डिसीजन लिए जाते थे। डायरेक्टर के साथ बैठकर काफी बातचीत की।
फिजिकली कोई चैलेंज नहीं था, लेकिन इस टॉपिक को लेकर मम्मी या उस दौर की महिलाओं के साथ काफी वक्त गुजारा। थैंक गॉड, इतनी अच्छी फिल्म बनती है, जिसकी वजह से अपनी मम्मी के बारे में और भी बहुत कुछ जान पायी। उन्होंने अपनी लाइफ में बहुत सारे डिसीजन क्यों लिए, जो बहुत जरूरी थे। मेरी आंखों में उनकी इज्जत और बढ़ गई।