इस्लामिक कलैंडेर का पहला महीना शुरू हो गया है। यानी मुहर्रम (Muharram) का महीना। इस्लाम के इतिहास में यह महीना काफी अहमियत रखता है। एक ऐसी तारीख को बयान करता है जो बताता है कि इस्लाम ने कैसे जुल्म के खिलाफ खड़ा होना सिखाया। सच और इंसाफ के लिए अपनी जान की भी परवाह नहीं की।
मुहर्रम (Muharram) के महीने को कर्बला की जंग के लिए याद रखा जाता है। एक ऐसी जंग जिसका जिक्र करने पर भी आज भी आंखों में आंसू आ जाते हैं। लेकिन आज जहां पहले हम आपको बताएंगे कि कर्बला की जंग क्या थी, यह क्यों हुई। वहीं, हम बात करेंगे कि जहां इस जंग में पैगंबर मोहम्मद के नवासे इमाम हुसैन के साथ ही पैगंबर मोहम्मद के खानदान के कई लोग शहीद हुए। वहीं, कैसे इस्लाम की बेटियों यानी महिलाओं ने जंग में अहम किरदार निभाया। हजरते जैनब के एक खुतबे ने कैसे यजीद (जालिम बादशाह) के तख्त-ओ-ताज को हिला कर रख दिया।
हजरते जैनब ने जंग में निभाया अहम किरदार
हम जब भी कर्बला की जंग का जिक्र करते हैं तो इमाम हुसैन और उनके साथियों की शहादत को पढ़ते हैं। कैसे वो यजीद (जालिम बादशाह) के जुल्म के खिलाफ खड़े हो गए। अपनी जान की परवाह किए बिना उन्होंने उसके खिलाफ आवाज बुलंद की। वहीं, इमाम हुसैन की बहन, हजरत अली और बीबी फातिमा की बेटी हजरते जैनब ने कर्बला की जंग में वो किरदार निभाया जिसके बाद ही कर्बला की हकीकत पूरी दुनिया तक पहुंची। हजरते जैनब ने इस जंग में क्या रोल अदा किया। यह सीधे-सीधे बता देने से पहले यह जान लेना जरूरी है कि यह जंग क्या थी और यह क्यों हुई।
क्या है दास्तान-ए-कर्बला?
इस्लाम धीरे-धीरे फैलता गया। पैगंबर मोहम्मद के दुनिया से जाने के बाद खिलाफत का सिलसिला शुरू हुआ। कर्बला की जंग होने के पीछे की वजह आसान शब्दों में समझें तो यह सत्ता की भूख, शासन हासिल करने का लालच ही थी। कर्बला की जंग 10 मुहर्रम 61 हिजरी (680 ईस्वी) में इराक के कर्बला नामक स्थान पर हुई थी। यजीद चालाकी और गलत तरीकों से खलीफा बन गया था। उसने ताकत के बल पर सत्ता हथियाई थी। लेकिन वो चाहता था कि पैगंबर मोहम्मद के नाती यानी इमाम हुसैन उसके हाथ पर बैअत कर लें। यानी उसको खलीफा मान लें। लेकिन इमाम हुसैन ने यजीद को इस्लाम का खलीफा मानने से इनकार कर दिया था।
इतिहास से पता लगता है कि यजीद इस्लाम में जिस तरह का खलीफा होना चाहिए। उससे अलग था। वो शराब पिता था, वो अन्याय करता था, लोगों पर अत्याचार करता था। लेकिन वो जानता था कि अगर इमाम हुसैन उसको खलीफा मान लेंगे तो उसकी ताकत में इससे इजाफा होगा। इस्लाम के मानने वालों के बीच उसकी पहुंच बढ़ जाएगी। लेकिन इमाम हुसैन एक ऐसे शख्स को खलीफा मानने के सख्त खिलाफ थे जो इस्लाम के सीधे रास्ते पर ही नहीं था।
यजीद ने इमाम हुसैन को कत्ल करने का बनाया मनसूबा
इमाम हुसैन ने जैसे ही बार-बार यजीद को खलीफा मानने से नकारा उनके लिए चीजें मुश्किल होती चली गई। यजीद ने इमाम हुसैन और उनके परिवार का जीना मुश्किल कर दिया। चीजें उनके लिए मुश्किल कर दी। इसके बावजूद इमाम हुसैन ने यजीद को खलीफा मानने को लेकर कहा, मैं किसी जालिम को बैअत नहीं कर सकता।
उन पर दबाव डाला। उनको जान से मारने की धमकी दी। जब यजीद को पता लग गया कि उसका हर तरीका अपनाने के बाद भी इमाम हुसैन उसको खलीफा मानने से राजी नहीं होंगे, उसने इमाम हुसैन को कत्ल करने का मनसूबा बनाया। यह बात जानने के बाद इमाम हुसैन ने मदीना छोड़कर मक्का जाने का फैसला कर लिया। यजीद को जैसे ही मालूम हुआ कि इमाम हुसैन काबा की तरफ जा रहे हैं तो उसने अपनी फौज भेज दी। लेकिन इमाम हुसैन काबा के आसपास खून खराबा नहीं चाहते थे, तो वो इराक की तरफ चल दिए।
इमाम हुसैन के कर्बला जाने की एक वजह यह थी भी कि इराक के शहर के कूफा के लोग उन्हें यजीद की हरकतों के खिलाफ पत्र लिखकर वहां बुला रहे थे। कूफा के लोगों ने इमाम हुसैन को खत भेजे और उनसे कहा कि वो आएं और यजीद के खिलाफ यहां नेतृत्व करें। इसी के बाद इमाम हुसैन का कर्बला आने का सफर शुरू हुआ। इराक में ही कूफा मौजूद है। कूफा एक शहर है और कर्बला मैदान है।
इमाम हुसैन पहुंचे कर्बला के मैदान
इमाम हुसैन 2 मोहर्रम को कर्बला के मैदान पहुंचे। इमाम हुसैन अपने पूरे परिवार के साथ यहां आए थे। यहां उनके साथी, बच्चे और महिलाएं भी मौजूद थीं। यजीद ने यहां अपनी 1 लाख से ज्यादा की सेना को भेज दिया। यजीद की सेना ने यहां क्रूरता की सारी हदें पार कर दी और खून बहाना शुरू किया।
उस जमाने में जंग के उसूल हुआ करते थे कि महिलाओं-बच्चों पर वार नहीं किया जाएगा, पानी बंद नहीं किया जाएगा। निहत्थों पर वार नहीं किया जाएगा। लेकिन 6 मुहर्रम को इमाम हुसैन के इस ग्रुप पर पानी बंद कर दिया। भूख-प्यास की तड़प सब में बढ़ती गई। छोटे-छोटे बच्चे, महिलाएं सभी भूख और प्यास से तड़पने लगे।
6 महीने के बच्चे पर बरसाया तीर
यजीद की सेना हैवानियत पर उतर आई थी, उन्होंने महिलाओं-बच्चों की भी परवाह नहीं की। इमाम हुसैन का छोटा से 6 महीने का बच्चा प्यास से रो रहा था। इमाम हुसैन को लगा कि छोटे बच्चे में प्यास की तड़प देख यजीद की सेना को रहम आ जाएगा। वो अपने बच्चे को सेना के सामने लेकर गए और बच्चे की तड़प बताई। तभी एक तीर आकर बच्चे के गले पर लगा। बच्चा शहीद हो गया।
आखिरी सांस तक यजीद से लड़ते रहे इमाम हुसैन
इमाम हुसैन ने इस जंग को टालने की बहुत कोशिश की, लेकिन फिर 9 मुहर्रम को यह बात तय हो गई कि जंग करनी होगी। 72 लोगों की सेना ने लाखों की फौज का डटकर मुकाबला किया। यजीद की सेना के कई लोगों को मार दिया गया। इस्लाम की आवाज के लिए लड़ते-लड़ते 10 मुहर्रम का वो दिन था जब खून की दरिया बह गई। एक वक्त ऐसा आया कि मैदान ए कर्बला में सिर्फ इमाम हुसैन , उनके बीमार बेटे और औरतें-बच्चे ही बचे थे। इमाम हुसैन ने आखिरी सांस तक यजीद से जंग लड़ी, लेकिन उन्हें शहीद कर दिया।
कर्बला के मैदान में हजरते जैनब
इमाम हुसैन की शहादत के बाद उनकी बहन हजरते जैनब ने बताया कि इस्लाम में महिलाएं किस तरह से सामने आई हैं। कर्बला की जंग में हजरते जैनब ने वो रोल निभाया है, जिसको जानना काफी जरूरी है। हजरते जैनब मैदान में तलवार उठा कर न लड़ी हो, लेकिन इस्लाम की इस लड़ाई को तारीख में जिंदा रखने वाली, चीख-चीख कर लोगों को इस जंग के बारे में बताने वाली वो ही थी। हजरते जैनब ने यजीद के सामने खड़े होकर, उसी के दरबार में ऐसा खुतबा (भाषण) दिया था, जिसके बाद उसका शासन हिल कर रह गया। उसके अपने समर्थकों में फूट पड़ गई।
इस जंग में एक के बाद एक 72 लोग शहीद हो गए। हजरते जैनब ने अपनी आंखों के सामने इस जंग में अपने दो बेटों की कुर्बानी देखी, जिगर के टुकड़ों को बेजान देख वो तड़प गईं, लेकिन खुद पर काबू किया और बाकी बचे साथियों को हौसला दिया। भाई इमाम हुसैन की शहादत देखी, न सिर्फ शहादत देखी बल्कि यजीद की फौज ने इन शहीदों को कफन तक नहीं देने दिया बल्कि इनका सर तन से जुदा करके , नेजों पर लगाया। हजरते जैनब ने अपने भाई का वो सिर नेजें पर देखा, अपने 6 महीने के भतीजे की कुर्बानी देखी। लेकिन यह इस्लाम की वो बहादुर महिला थीं, जिन्होंने आंसू बहाने के बजाय इस्लाम की पर्दे की ओट से निकलकर असल में इस्लाम का प्रतिनिधित्व किया।
भाई की शहादत देख हजरते जैनब ने क्या कहा?
हजरते जैनब ने पीछे मुड़कर देखा तो कर्बला के मैदान में शहादत को वो मंजर देखा जो कोई तसव्वुर भी नहीं करता। 72 सिर नेजों पर थे। हर तरफ खून पड़ा था, जिस्म के टुकड़े-टुकड़े थे। उनके जानशीन शहीद हो चुके थे। मौलाना तारीक जामील इस्लाम का यह इतिहास बयान करते हुए बताते हैं कि जब हजरते जैनब ने कर्बला का यह मंजर देखा तो उन्होंने पैगंबर मोहम्मद को याद किया। उन्होंने कहा, या रसूल आज तेरे हुसैन की बारात है, उसके साथ आज 72 बाराती हैं। वो घोड़े पर नहीं नेजों पर सवार हैं। आज तेरी औलाद कत्ल हो गई, तेरी बेटियां कैद हो गई।
कर्बला की जंग में मर्दों को कत्ल करने के बाद महिलाओं को कैद कर लिया गया। उन सबको कैदी बनाकर कूफा में घुमाया गया। मौलाना तारीक जमील बताते हैं कि महिलाओं को कैद किया। उनके कानों की बालियां तक खेंच कर उतारी गई। इसके बाद उन्हें इसी हालत में दमिश्क ले जाया गया। उनकी परेड कराई गई। जिस आबादी वाले इलाकों से काफिला निकलता, वहां हजरते जैनब चीख-चीख कर लोगों को कर्बला के वाक्यों को बतातीं।
महिलाओं को किया कैद
मर्दों के कत्ल करने के बाद यजीद ने बाकी बची औरतों को कैद करके अपने दरबार में लाने का हुकूम दिया। इन लोगों को कैद करके कर्बला से कूफा और फिर कूफा से दमिश्क लाया गया। इन सभी के हाथों और पैरों को जंजीरों से बांधा गया था। भूख-प्यास की तड़प थी, अपने करीबी लोगों को आंखों के सामने शहीद होता देखा था। साथ ही उनके काफिले के साथ उनके अपने करीबी लोगों के सिर नेजों पर थे। इन सभी हालातों के साथ जब दरबार में यह लोग पहुंचे तो हजरते जैनब ने ऐसा खुतबा दिया कि इतिहास में आज भी वो दर्ज है।
आज के समय को लेकर सोचे तो अपने करीबियों की मौत हो जाने पर महिलाएं चीख-चीख कर रोती हैं। लेकिन इस्लाम के इतिहास की यह महिला हजरते जैनब भाई की शहादत हो जाने के बाद, भूख-प्यास की तड़प होने के बाद, जंजीरों में जकड़े जाने के बाद भी इस्लाम का झंडा उठा रही थी। लोगों को कर्बला का वाक्या बता रही थी। वो चीख-चीख कर लोगों को कर्बला की जंग की बातें बता रही थी। रास्ते में कई लोग कर्बला की दास्तान सुन कर रोने लगे।
हजरते जैनब ने यजीद के सामने दिया खुतबा
दरबार में इन कैदियों को जमीन पर बैठाया गया। इसी के बाद इमाम हुसैन का कटा हुआ सिर लाया गया। यजीद इमाम हुसैन के चेहरे पर एक छड़ी से बेअदबी करने लगा, तभी जनाबे सज्जाद ने खुतबा देना चाहा, वो खड़े भी हुए लेकिन उन्हें बैठा दिया गया। इसी के बाद इस्लाम की बेटी हजरते जैनब खड़ी हुईं। उन्होंने खुतबा देना शुरू किया। यजीद के सिपाहियों ने उन्हें भी बैठाना चाहा तभी उन्होंने बुलंद आवाज में कहा, यजीद तु मुझे रोकेगा, मैं हजरत अली की बेटी हूं। फिर उन्होंने खुतबा देना शुरू किया।
उनके खुतबे का छोटा सा हिस्सा-
ए यजीद तुझे जितना मक्कार और फरेब करना था, वो तुने कर लिया। अगर तुझ में हिम्मत है तो और मक्कार और फरेब कर ले। खुदा की कसम हमारा जिक्र मिटने वाला नहीं है। कुरान कभी मिटने वाला नहीं है। यजीद ठहर और इंतजार कर और एक-दो सांसे और ले ले और फिर देख क्या होता है। यह खुतबा सुन कर वहां लोगों की आंखों में आंसू थे। उन्होंने यजीद से कहा कि अपनी जीत पर खुश न हो, जबकि असली विजेता वो हैं जो अल्लाह की राह में शहीद हो गए। उन्होंने पूरे दरबारियों को कर्बला में हुए जुल्म को बताया।
हजरते जैनब का यह ही वो खुतबा था जिसने वहां बैठे लोगों को यजीद के खिलाफ कर दिया था। इसी खुतबे के बाद यजीद की खिलाफत में बगावत फूटना शुरू हो गई थी। हजरते जैनब ने ही पूरी दुनिया के सामने मैदान-ए-कर्बला की दास्तान सुनाई। हजरते जैनब को कर्बला की रानी कहा जाता है।