लखनऊ। सियासत के पहलवान धरतीपुत्र मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh) राजनीति के अखाड़े को छोड़कर आज सदा के लिए पंचतत्व में विलीन हो गए हैं। उनका सोमवार सुबह 8 बजे निधन हो गया था और मंगलवार दोपहर 3 बजे पैतृक गांव सैफई में नम आँखों से उन्हें अंतिम विदाई दी गई। मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh) का नाम समाजवादी राजनीति और पिछड़ों एवं वंचितों के लिए न्याय की लड़ाई लड़ने के लिए जाना जाएगा। शायद यही वजह है कि उनके निधन पर भी एक संयोग देखने को मिला है। मुलायम सिंह यादव का निधन 10 अक्टूबर को हुआ, जबकि एक दिन पहले ही बीएसपी के संस्थापक मान्यवर कांशीराम की पुण्यतिथि थी।
यही नहीं सामाजिक न्याय के एक और पुरोधा रहे रामविलास पासवान की पुण्यतिथि भी 8 अक्टूबर को ही होती है। उनका निधन 2020 में ही हुआ था। इसके अलावा मुलायम सिंह यादव के समाजवादी गुरुओं में से एक रहे जयप्रकाश नारायण की भी पुण्यतिथि 8 अक्टूबर को ही होती है। इस तरह 8, 9 और 10 अक्टूबर को लगातार तीन दिनों तक सामाजिक न्याय की राजनीति के 4 पुरोधाओं की पुण्यतिथि का संयोग बना है। यही नहीं 11 अक्टूबर को जयप्रकाश नारायण की जयंती भी होती है। इसे भी मिला लें तो लगातार 4 दिन तक उन नेताओं से जुड़े दिन हैं, जिन्होंने पूरी जिंदगी सामाजिक न्याय की जंग लड़ी और लोकतंत्र के सिपाही के तौर पर काम किया।
पंचतत्व में विलीन हुए ‘धरतीपुत्र’, नम आँखों से अखिलेश ने दी मुखाग्नि
उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh)की सियासत को सामाजिक न्याय की राजनीति के उभार के तौर पर देखा जाता है। राम मनोहर लोहिया, जयप्रकाश नारायण जैसे दिग्गज समाजवाजियों के साथ काम करने वाले मुलायम सिंह यादव ने सांप्रदायिकता के खिलाफ जंग में एक लकीर खींची थी।
यही नहीं मुलायम सिंह यादव ने राजनीति में हमेशा विकल्पों को खुला रखा। उन्होंने भाजपा से जंग भी लड़ी और जरूरत पड़ने पर सहयोग भी किया। इसके अलावा 1995 में कांशीराम के साथ मिलकर सरकार गठन कर सबको चौंका दिया था।
… वे नेता जिनसे मुलायम की दोस्ती ‘अमर’ रही
नेताजी के अंतिम संस्कार से पहले सैफई की हवा में नेताजी अमर रहें, अमर रहें के नारे देर तक गूंजते रहे। इस मौके पर कई राज्यों के सीएम, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, योग गुरु बाबा रामदेव समेत कई हस्तियां मौजूद थीं। एक अनुमान के मुताबिक मुलायम सिंह यादव के अंतिम संस्कार में 1 लाख से ज्यादा लोगों की मौजूदगी रही। आलम यह था कि लोग मोबाइल के कैमरों में हर पल को कैद कर लेना चाहते थे। अंतिम विदाई में मौजूद हर शख्स की यही चाहत थी कि नेताजी के आखिरी पलों को संजो ले।