ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को शनि जयंती ( Shani Jayanti) मनाई जाती है। इस साल शनि जयंती 6 जून को है। इस दिन वट सावित्री का व्रत भी है। ऐसी मान्यता है, कि इसी दिन न्याय के देवता कहे जाने वाले शनि देव का जन्म हुआ था। इस साल शनि जयंती पर सर्वार्थ सिद्धि योग का भी निर्माण हो रहा है। यह दिन शनि दोष से पीड़ित जातकों के लिए बेहद खास माना जाता है।
बता दें भगवान शनि सूर्य देवता के पुत्र हैं। हिंदू शास्त्र के अनुसार शनि देव व्यक्ति को उसके कर्म के अनुसार से फल देते है। यदि किसी की कुंडली में शनि की स्थिती खराब हो जाए, तो वह व्यक्ति मानसिक, आर्थिक और शारीरिक रूप से हमेशा परेशान रहता हैं। यदि आप भगवान शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए शनि जयंती ( Shani Jayanti) पर व्रत रखने की सोच रहे हैं, तो आज आपके लिए शनि जयंती की कथा लेकर आए है…
शनि जयंती ( Shani Jayanti) की कथा
स्कंदपुराण की कथा के अनुसार, शनि देव की माता का नाम छाया और उनके पिता का नाम सूर्य देव है। सूर्य देव का विवाह राजा दक्ष की कन्या संज्ञा से हुआ था, फिर छाया और शनि देव से सूर्य देव का संबंध कैसे हुआ? जानते हैं इस कथा के बारे में। जब संज्ञा का विवाह सूर्य देव से हुआ, तो वह सूर्य देव के तेज से परेशान थीं। वे सूर्य देव के तेज को कम करना चाहती थी। समय व्यतीत होने के साथ ही संज्ञा ने सूर्य देव की तीन संतानों को जन्म दिया। उनका नाम वैवस्वत मनु, यमुना और यमराज हैं।
उन्होंने अब सूर्य देव को तेज को कम करने के लिए एक उपाय सोचा, ताकि सूर्य देव इस बारे में न जानें और संतानों के पालन पोषण में भी कोई समस्या न हो। उन्होंने अपने तपोबल से अपने समान ही दूसरी स्त्री को प्रकट किया, जिसका नाम संवर्णा रखा। उनको छाया भी कहते हैं।
उन्होंने छाया से कहा कि अब से तुम सूर्य देव और बच्चों के साथ रहोगी। इस बारे में किसी को पता नहीं चलना चाहिए। यह कहकर संज्ञा अपने पिता दक्ष के घर गईं, लेकिन उनके पिता उनके इस कार्य से नाराज हो गए और पुन: सूर्यलोक जाने को कहने लगे।
संज्ञा सूर्यलोक नहीं गईं और वन में जाकर घोड़ी का रूप धारण करके तप करने लगीं। उधर सूर्यलोक में छाया को सूर्य देव के तेज से कोई समस्या नहीं थी। वे उनके साथ रहने लगीं। छाय और सूर्य देव से तीन संतानों ने जन्म लिया, जिसमें शनि देव, मनु और भद्रा हैं।
कहा जाता है कि जब शनि देव मां छाया के गर्भ में थे, तो उन्होंने भगवान शिव की कठोर तपस्या की थी, जिसके प्रभाव से शनि देव का वर्ण काला हो गया। जब शनि देव पैदा हुए, तो सूर्य देव को लगा कि काले रंग का पुत्र उनका नहीं हो सकता है। उन्होंने छाया के चरित्र पर संदेह किया। मां को अपमानित होते देखकर शनि देव क्रोध से पिता सूर्य देव की ओर देखने लगे। उनकी शक्ति से सूर्य देव काले हो गए और कुष्ठ रोग हो गया। वहां से सूर्य देव शंकर जी के शरण में गए, जहां उनको अपनी गलती का अहसास हुआ। जब सूर्य देव ने क्षमा मांगी, तो फिर उनका स्वरूप पहले जैसा हो गया। इस घटना के बाद से सूर्य देव और शनि देव में रिश्ते खराब हो गए।