नई दिल्ली। अंतरिक्ष एजेंसी नासा (NASA) के वैज्ञानिकों ने एक बार फिर चांद पर पानी मिलने का दावा किया है। नासा के वैज्ञानिकों ने चांद पर ‘मॉलिक्यूलर वाटर’ होने के सबूत पेश किए हैं। बता दें कि 11 साल पहले यानी 2009 में भारत के चंद्रयान-1 मिशन में भी चांद पर पानी मिला था।
अब एक बार फिर नासा के वैज्ञानिकों ने गोडार्ड स्पेस फ्लाइट सेंटर और हवाई और कोलोराडो के रिसर्च संस्थानों के साथ मिलकर चांद पर मॉलिक्यूलर वाटर खोज लिया है। ये पानी वहां मिला है जहां सूर्य की रोशनी पड़ती है।
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सामने आई दो रिपोर्टों के अनुसार, इस बार मिलने वाला पानी पहले के अनुमान से कहीं ज्यादा हो सकता है। उम्मीद की जा रही है कि पानी की मौजूदगी से भविष्य में स्पेस मिशन को बड़ी ताकत मिल सकेगी। इतना ही नहीं, इसका इस्तेमाल ईंधन उत्पादन में भी किया जा सकता है।
🌔 ICYMI… using our @SOFIATelescope, we found water on the Moon's sunlit surface for the first time. Scientists think the water could be stored inside glass beadlike structures within the soil that can be smaller than the tip of a pencil. A recap: https://t.co/lCDDp7pbcl pic.twitter.com/d3CRe96LDm
— NASA (@NASA) October 26, 2020
इस नए अध्ययन में इस बात के प्रमाण मिले हैं कि चांद पर आणविक जल मौजूद हैं। वहां भी जहां सूरज की सीधी रोशनी पड़ती है। इसके लिए स्ट्रेटोस्फियर ऑब्जरवेटरी फॉर इंफ्रारेड एस्ट्रोनॉमी के आंकड़ों का इस्तेमाल किया गया।
शोधकर्ताओं की माने तो चांद पर मिला ये पानी कांच के छोटे-छोटे मोतियों या फिर किसी और पदार्थ के अंदर हो सकता है जो विपरीत पर्यावरण से बचाने का काम करता है। इसके बाद अब आगे इस बात पर शोध किया जाएगा कि ये पानी कहां से आया है और कैसे यहां जमा हुआ?
जबकि एक दूसरे शोध से पता चला है कि चंद्रमा के ध्रुवीय क्षेत्रों में कुछ जगहों पर बर्फ के संकेत दिखाई दिए हैं। ये भी माना जा रहा है कि ये बर्फ चांद पर बने हुए गड्ढों में हैं। इसलिए इन पर सूरज की रोशनी कभी नहीं पड़ पाती।
बता दें, चांद पर बड़े और गहरे गड्ढे पहले भी पाए गए हैं और 11 साल पहले जब चांद पर पानी खोजा गया था तब एक गहरे गड्ढे में ही पानी के क्रिस्टल मिले थे।