लाइफस्टाइल डेस्क। मलेरिया एक वाहक-जनित संक्रामक रोग है जो प्रोटोजोआ परजीवी द्वारा फैलता है। यह बीमारी अमेरिका से लेकर एशिया और अफ्रीका महाद्वीपों तक फैली हुई है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, हर साल 50 करोड़ से ज्यादा लोग इस बीमारी से प्रभावित होते हैं जबकि 10-30 लाख लोगों की इसके कारण मौत हो जाती है। इसके इलाज के लिए कई तरह की दवाओं का इस्तेमाल किया जाता है, जिसमें ‘आर्टिमिसिनिन’ भी एक है। इसका उपयोग दुनियाभर में मलेरिया के इलाज के लिए किया जाता है, लेकिन हाल ही में हुए एक अध्ययन से पता चलता है कि यह दवाई अब मलेरिया के रोगियों को ठीक करने में प्रभावी नहीं रही है। अलग-अलग देशों में मलेरिया के मरीजों पर इसके इस्तेमाल के बाद मिल नतीजे बताते हैं कि अब विश्व प्रसिद्ध दवाई आर्टिमिसिनिन उनपर बेअसर हो रही है।
मलेरिया की दवा आर्टिमिसिनिन मरीजों पर काम ही नहीं कर रही है। इससे पहले यह देखने को मिला था कि दक्षिण-पूर्वी एशिया में मलेरिया के करीब 80 फीसदी मरीजों पर यह दवाई बेअसर रही। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, रवांडा में मलेरिया का जो नया परजीवी मिला है, उस पर यह दवाई कारगर नहीं साबित हो रही है। यह अध्ययन नेचर पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।
वैज्ञानिक बताते हैं कि जब कोई दवाई किसी वायरस या बैक्टीरिया द्वारा फैलाई जाने वाली बीमारी पर काम नहीं करती, तो इसका मतलब होता है कि उस परजीवी ने अपनी क्षमता बढ़ा ली है। उदाहरण के तौर पर आप मच्छर भगाने वाले क्वाइल्स को ही ले लीजिए। शुरुआत में अगर किसी कमरे में क्वाइल्स लगा दिया जाता था तो उसके असर से कमरे के सारे मच्छर भाग जाते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं है। अब क्वाइल्स का असर उतना नहीं रह गया है कि कमरे से सारे मच्छर भाग पाएं।
मलेरिया प्लास्मोडियम गण के प्रोटोजोआ परजीवियों से फैलता है। इसके परजीवी की प्राथमिक पोषक मादा एनोफिलीज मच्छर होती है, जो कि मलेरिया का संक्रमण फैलाने में मदद करती है। एनोफिलीज रात को ही काटती है। इस गण के मच्छर पूरी दुनिया में फैले हुए हैं।
ज्वर, कंपकंपी, जोड़ों में दर्द, उल्टी, मूत्र में हीमोग्लोबिन आदि मलेरिया के लक्षणों में शामिल हैं। इसका सबसे आम लक्षण है अचानक तेज कंपकंपी के साथ शीत लगना, जिसके फौरन बाद ज्वर आता है। चार से छह घंटे के बाद ज्वर उतरता है और पसीना आता है। ऐसे लक्षण दिखें तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।