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शुरू हुआ 36 घंटे का निर्जला व्रत, इन नियमों का करें पालन

chhath puja

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आस्था और विश्वास के महापर्व छठ पूजा (Chhath Puja) की शुरूआत 8 नवंबर से नहाय-खाय के साथ हो गई। आज 9 नवंबर को खरना है, तो वहीं 10 नवंबर गुरुवार को छठ पूजा पर्व है, इसी दिन शाम को सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा। खरना यानी आज के दिन से ही छठ माता पूजन के लिए तैयारी की जाती है। आज जिन लोगों ने व्रत किया है, वे शाम को पूजा करते हैं। इस पूजा के दौरान ध्यान रखना चाहिए कि पूजन के समय शांति हो। किसी प्रकार के शोर में पूजा न करें। इसके अलावा  छठ पूजा के लिए भोग बनाने में भी बेहद सावधानी बरतें।

इस तरह तोड़ा जाता है व्रत

खरना आज के दिन के प्रसाद का काफी महत्व है। व्रती शाम को गुड़ से बनी खीर खाकर व्रत तोड़ती हैं। इसे ही खरना का प्रसाद कहा जाता है। खरना के प्रसाद के खाने के साथ ही 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू हो जाता है। खरना में कुछ लोग बिना शक्कर की दूध की खीर बनाते हैं, कुछ लोग गुड़ की खीर बनाते हैं और पूड़ी के साथ खीर का भोग लगाते हैं। कुछ लोग भोग में मीठे चावल भी चढ़ाते हैं। भोग केले के पत्ते पर रखकर चढ़ाया जाता है। कुछ क्षेत्रों में पूड़ी-खीर के साथ ही पका केला भी अर्पित किया जाता है।

छठ पूजा नियम

1) खरना यानि आज शाम व्रत करने वाले लोग भोजन ग्रहण करते हैं। इसके लिए क्षेत्र के हिसाब से समय तय किया जाता है। साथ ही ध्यान रखा जाता है, कि पूजा के समय किसी प्रकार का शोर न हो। भोजन के समय इस बात का भी ध्यान रखा जाता है कि कोई बच्चा रोए नहीं। ऐसा इसलिए किया जाता है, क्योंकि भोजन के समय अगर कोई आवाज हो जाए तो व्रत करने वाला व्यक्ति वहीं रुक जाता है और उसके बाद भोजन नहीं करता है। इसके बाद जो खाना बच जाता है, उसे परिवार के अन्य लोग प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं।

2) खरना की शाम प्रसाद को ग्रहण करने से पहले छठी माई का आशीर्वाद लिया जाता है। प्रसाद लेकर निकलते समय व्रत करने वाले से उम्र में छोटे लोग उनके पैर छूते हैं। उनका छोड़ा भोजन प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं। परिवार के लोग ये खाना जरूर खाते हैं।

3)  भोजन के बाद थाली ऐसी जगह धोते हैं, जहां पानी पर किसी का पैर न लगे और इसका धोवन अन्य जूठन में न जाए।

4) इसके अगले दिन यानि छठ पूजा पर डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। इस दिन सुबह से ही नियमों में और ज्यादा सख्ती हो जाती है। शाम के समय अस्ताचलगामी यानी अस्त होते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है।

5)  शाम के अर्घ्य के कारण इसे संझका अरग भी कहा जाता है। प्रसाद बनाने में इस्तेमाल होने वाली चीजें शुद्ध और सात्विक होनी चाहिए। प्रसाद बनाने में घर के जो लोग लगेंगे, वह नहाय-खाय के दिन ही नाखून भी काट लेते हैं।

6) पूजा घर के लिए अलग कपड़ा रखना होता है। प्रसाद बनाने वाले लोग कमरे से निकलने के बाद ही खाना खा सकते हैं। प्रसाद बनाने का सारा इंतजाम करने के बाद ही कमरे के अंदर प्रवेश किया जाता है। अगर कुछ सामान बाहर रह जाए तो बाहर का काम करने के लिए इसी तरह साफ-सुथरा होकर किसी अन्य व्यक्ति को तैयार रहना पड़ता है।

7)  भोग बनाते समय कम से कम बात की जाती है। सभी शांत रहते हैं। बोलें भी तो दूसरी तरफ घूमकर ताकि प्रसाद में मुंह का गंदा न गिरे। प्रसाद बनाने वाले लोग अंगूठी पहनकर नहीं जाते है, क्योंकि उसके अंदर भी प्रसाद का हिस्सा फंसकर बाहर जूठन तक पहुंच सकता है या नीचे गिर सकता है।

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8) प्रसाद वाले कमरे के अंदर का काम पूरा करने के बाद हाथ वहीं बाल्टी में धो लिए जाते हैं और जो कपड़े पहने थे, वे कपड़े वहीं छोड़ दिए जाते हैं ताकि प्रसाद का हिस्सा कमरे से बाहर न आ जाए।

9) ये सभी काम आज के दिन दोपहर तक पूरा करने के बाद सूप-दउरा सजाकर छठ घाट पर लोग पहुंचते हैं, उसके बाद  छठ घाट पर सूर्यास्त से कुछ देर पहले व्रती को पानी में उतरना होता है और सूर्यास्त से पहले सूप पर चढ़े प्रसाद को सूर्यदेव के सामने रखकर अर्घ्य अर्पण किया जाता है।

10)  शाम का अर्घ्य अर्पण करने के बाद सूप के प्रसाद को उतारकर एक तरफ रख लिया जाता है और फिर सुबह के अर्घ्य के लिए उसी सूप को साफ कर तैयार कर लिया जाता है। उसमें नया प्रसाद रखा जाता है और घाट पर सूर्योदय के समय से एक घंटे पहले पहुंचकर उसे सजा लिया जाता है। इसे भोर (सुबह) का अर्घ्य कहा जाता है। भोर का अर्घ्य 11 नवंबर की सुबह दिया जाएगा।

11) सूर्योदय से जितना पहले व्रती पानी में उतरकर छठी मइयां की आराधना कर सकें, उतना अच्छा माना जाता है। नदी के घाट पर पूजा करने के बाद व्रती के नदी से निकलते ही लोग उनके पैर छूते हैं। उनके कपड़ों को धोकर आशीर्वाद लेते हैं। व्रती कोई भी हो, उससे प्रसाद लेकर ग्रहण किया जाता है।

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