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इलाज करने का अधिकार सबको तो नहीं

लखनऊ। इलाज  करने का अधिकार ( right to treatment) केवल चिकित्सक को होता है लेकिन आजकल जिसे देखिए, वह इलाज करता नजर आ रहा है। नहीं कर रहा है तो भी इलाज करने के दावे जरूर कर रहा है।  दावे करने में कोई बुराई भी नहीं है। बकते रहिए, कौन रोकता है। तब तक तो नहीं रोकेगा, जब तक कोई उसके हित की राह का रोड़ा न बने।

आप जिस क्षेत्र  से भी ताल्लुकात रखते हों,समस्या का समाधान तो कर ही सकते हो। चुनाव में तो  राजनीतिक दल एक ही बात कहते हैं कि देश और प्रदेश समस्याओं से कराह रहा है। कानून-व्यवस्था ध्वस्त है, शिक्षा और स्वास्थ्य की विसंगति है, लेकिन इन सारी समस्याओं का उसके पास समाधान है। बस एक बार आजमाइए तो, हमें विधायक, सांसद, पीएम, सीएम वगैरह बनवाइए तो देखिए किस तेजी के साथ रामबाण इलाज होता है।

आप समस्या भूल जाएंगे। सरकार बनने के बाद पांच साल होता भी ऐसा ही है। सरकार खुद जनता के लिए इतनी बड़ी समस्या बन जाती है कि उसके समक्ष उसे अपनी समस्याएं छोटी लगने लगती हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कन्नौज की चुनावी सभा में कहा है कि दंगा करने वाला और माफिया के इलाज की दवा भाजपा के पास है।  दवा कोई भी रख सकता है। रोगी भी और चिकित्सक भी लेकिन उसका प्रयोग चिकित्सक की सलाह पर ही होना चाहिए। सरकार किसी पार्टी की हो सकती है लेकिन सही मायने में वह किसी दल विशेष की नहीं, बल्कि प्रदेश और देश की होती है।

सरकार किसी भी दल की हो, उसे व्यवस्था में सुधार करना चाहिए लेकिन कार्रवाई करते वक्त इस बात का ध्यान भी रखना चाहिए कि वह निष्पक्ष और तटस्थ दिखे।  जब तक कोई सरकार  कार्रवाई में निष्पक्षता  और ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर का भाव प्रदर्शित नहीं कर पाती तब तक उसकी लोकप्रियता नहीं बनती। देश और प्रदेश में माफियाओं और अराजक तत्वों की कमी नहीं है। बड़ा सवाल यह है कि हम उन्हें देखते कहां और किस रूप में है।

कस्तूरी मृग की तरह या अर्जुन केमछली की आंख वेधने की तरह। अपराधी सर्वव्यापी हो गए हैं। उन्हें ढूंढना  समुद्र  में बूंद की तलाशने जैसा है। उन्हें तलाशे बिना कैसा इलाज। किसका इलाज।

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