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तंज ही नहीं, सटीक मूल्यांकन भी करे कांग्रेस

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कोरोना के बढ़ते संक्रमण को लेकर विपक्ष प्रधानमंत्री पर हमलावर है। उसे लगता है कि प्रधानमंत्री कोरोना प्रबंधन पर नहीं,चुनाव प्रबंधन पर ध्यान दे रहे हैं। वे 84 देशों को कोरोना रोधी वैक्सीन बांटकर अपनी छवि चमका रहे हैं लेकिन भारत में सभी को वैक्सीन नहीं लगवा रहे हैं। इस तरह के ढेरों आरोप  विपक्षियों की जुबान पर है।  राहुल गांधी ने पश्चिम बंगाल की अपनी रैलियां रद कर दी हैं और अन्य दलों से भी कुछ ऐसा ही करने का आग्रह किया है।

ऐसा उन्होंने देश में बढ़ते कोरोना संक्रमण के मद्देनजर किया है। अपने इस कार्य के लिए वे निश्चित रूप से बधाई के पात्र हैं।वैसे जो कार्य वे अब कर रहे हैं,उसे बहुत पहले करते तो कोरोना से हालात इतने बिगड़ते नहीं। असम,तमिलनाडु,केरल और पुडुचेरी को लेकर भी कदाचित वे इतना ही गंभीर होते तो लगता कि वे वाकई महामारी को लेकर बेहद संवेदनशील हैं। वैसे राहुल गांधी को इतना तो पता है ही कि बंगाल में उनकी और उनके दल की दाल नहीं गलने वाली है। प्रधानमंत्री,केंद्रीय गृह मंत्री और भाजपा अध्यक्ष जे पी नड्डा की जितनी चुनावी रैलियां प्रस्तावित हैं,उससे कांग्रेस की वहां मिट्टी ही पलीत होनी है।

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राहुल की मूल चिंता यह है कि अगर प्रधानमंत्री यूं ही  रैलियां करते रहे  तो तृणमूल कांग्रेस का बिखरना तय है। इससे भाजपा और मजबूत होगी और विपक्ष कमजोर। यह स्थिति शायद कांग्रेस के हितानुकूल नहीं है। पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने अगर अचानक पीएम मोदी को चिट्ठी लिखी है और कोरोना से निपटने के पांच सुझाव बताए हैं तो इसे क्या कहा जाएगा? पार्टी आलाकमान का दबाव या विदेशी दवा कंपनियों के हितों की चिंता।उन्होंने सुझाव दिया है कि अमेरिका या यूरोप के देशों में जो दवाएं चल रही हैं,उसे खरीदने की सरकार अनुमति प्रदान करे। कोरोना को लेकर कांग्रेस ने जितना भ्रम  फैलाया है, वह इस देश के नागरिकों से छिपा नहीं है। जिस कोरोना को कांग्रेस पहले कल्पित रोग बताती रही,आज उसी के भयावह संक्रमण का नाम देकर देश को डरा रही है।

कोरोना जैसी बीमारी देश में पहली बार तो आई नहीं है। पहले भी प्लेग, हैजा, चेचक और टीबी जैसी बीमारियों से देश जूझ चुका है। तब देश में कांग्रेस की ही सरकार थी और वह कितनी असहाय थी,यह भी इस देश के लोग बखूबी जानते हैं। पी चिदंबरम, कपिल सिब्बल जैसे नेताओं को यह तो सोचना ही होगा। देश चलाने के लिए अच्छे लोगों की जरूरत होती है और देश की सेवा के लिए खुद का नेता होना भी जरूरी है। प्रधानमंत्री रहना है तो पार्टी का जीतना भी जरूरी है। इन सभी क्रियाओं का एक दूसरे से अन्योन्याश्रित संबंध है। प्रधानमंत्री होने का मतलब है पूरे देश पर नजर रखना। देश की हर समस्या का निराकरण करना। सामान्य व्यक्ति एक—एक समस्या को निपटाने में यकीन रखता है। प्रधानमंत्री को बहुआयामी होना पड़ता है। जब जैसा—तब तैसा, न जाने तो पीएम कैसा? प्रधानमंत्री अगर एक ही जगह उलझ जाएगा तो देश का विकास ठहर जाएगा। जो लोग प्रधानमंत्री को प्रचारमंत्री कह रहे हैं, वे शायद उनके व्यक्तित्व और कृतित्व को समग्रता में नहीं देख पा रहे हैं।

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प्रधानमंत्री ने कोरोना के भारत में आगमन के दिन से ही मास्क और एक निश्चित दूरी की बात कही थी। जब तक दवाई नहीं, तब तक ढिलाई नहीं का मंत्र दिया था। उन्होंने मंदिरों और मस्जिदों को भी पूजा या नमाज के दौरान एक निश्चित दूरी बनाने का मंत्र दिया था। उन्होंने सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों और मुख्यसचिवों को भी कोरोना महामारी से सचेत रहने का आहृवान किया था। हरिद्वार महाकुंभ को सांकेतिक करने के लिए उन्होंने कई संतों से अपील भी की और इसका असर दिखा भी। वर्चुअल कार्यक्रम शुरू कराए।

भारत में कोरोना वायरस संक्रमण की रोजाना दर पिछले 12 दिनों में दोगुनी होकर 16.69 फीसदी हो गई है जबकि साप्ताहिक संक्रमण दर पिछले एक महीने में 13.54 फीसदी तक पहुंच चुकी है। ऐसा नहीं कि इस खबर से केवल विपक्ष ही चिंतित है। सरकार चिंतित नहीं है। भारत में नए कोरोना  संक्रमितों की संख्या  2,61,500 होना बेहद चिंताजनक है। भारत में कोविड-19 के मामले पिछले साल 7 अगस्त को 20 लाख के पार हो गए थे। 23 अगस्त को 30 लाख, पांच सितंबर को 40 लाख और 16 सितंबर को 50 लाख के पार चले गए थे। वैश्विक महामारी के मामले 28 सितंबर को 60 लाख, 11 अक्टूबर को 70 लाख, 29 अक्टूबर को 80 लाख, 20 नवंबर को 90 लाख और 19 दिसंबर को एक करोड़ से अधिक हो गए थे।

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यह सच है कि कोरोना संक्रमितों की बढ़ती संखा के मद्देनजर आक्सीजन की आपूर्ति की  मांग बढ़ी है तो सरकार इसकी आपूर्ति के लिए 162 संयंत्र लगाने को मंजूरी दे चुकी है जिनमें से 33 संंयंत्र पहले ही लगाए जा चुके हैं।  इनमें से मध्यप्रदेश में पांच, हिमाचल प्रदेश में चार, चंडीगढ़, गुजरात एवं उत्तराखंड में तीन-तीन, बिहार, कर्नाटक और तेलंगाना में दो-दो तथा आंध्रप्रदेश, छत्तीसगढ़, दिल्ली, हरियाणा, केरल, महाराष्ट्र, पुडुचेरी, पंजाब और उत्तर प्रदेश एक-एक संयंत्र लगाये जा चुके हैं।  59 ऐसे संयंत्र अप्रैल के आखिर तक तथा 80 मई के  अंत तक लगाये  जाने हैं।  इसके अतिरिक्त  100 ऐसे और संयंत्रों का राज्यों ने अनुरोध किया है जिन्हें भी मंजूरी दी जा रही है। 162 पीएसए आक्सीजन संयंत्रों की लागत राशि 201.58 करोड़ रूपये का वहन केंद्र सरकार कर रही है। तीन साल की वारंटी के बाद चौथे साल से सात साल तक रखरखाव में आने वाला खर्च भी केंद्र सरकार ही वहन करेगी। करेगा।

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रेलवे देशभर में लिक्विड मेडिकल आक्सीजन तथा आक्सीजन सिलिंडरों की आपूर्ति के लिए आक्सीजन एक्सप्रेस  चलाने जा रहा है। चार हजार रेल कोच में कोविड केयर कोच में तब्दील करने का निर्णय लिया गया है। पी चिदंबरम तंज अच्छा कर लेते हैं कि बंगाल फतह की चुनौतियों के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र  मोदी को कोविड प्रबंधन के लिए कुछ समय तो मिला लेकिन उन्हें यह सोचना होगा कि ये सारे निर्णय उनके प्रधानमंत्री पर तंज से पहले ही ले लिए गए हैं। चाहे रेमडेसिविर की किल्लत दूर करने का मामला हो या आक्सीजन की आपूर्ति बढ़ाने का, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूरी जिम्मेदारी से काम किया है। उनकी अपनी राजनीतिक व्यस्तताएं हो सकती हैं लेकिन यह भी उतना ही बड़ा सच है कि देश के विकास के लिए, उसके शारीरिक, सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक स्वास्थ्य की चिंता के लिए भी उनके पास समयाभाव नहीं है। वे अपने लिए नहीं, देश के लिए जीते हैं। आलोचना आसान है लेकिन आलोच्य व्यक्ति की जगह खुद को रखकर सोचने की जरूरत है। इस महामारी के दौर में  हम लोगों की मदद न कर पाएं, यहां तक तो ठीक है लेकिन धैर्य तो धारण कर ही सकते हैं। बेवजह राजनीति से तो कोई लाभ मिलना नहीं है।

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