भारतीय संविधान के अनुसार भारत के हाए नागरिक को शिक्षा का समान अधिकार है, फिर वो चाहे किसी नही धर्म, जाति, लिंग का क्यों न हो। शिक्षा के अधिकार से सिर्फ इसलिए वंचित नहीं किया जा सकता की वह आर्थिक रूप से कमजोर है।
इसलिए भारत सरकार ने मुहिम चलाई थी जिसका मकसद था की भारत के हर वर्ग के बच्चों को शिक्षा का एक समान अधिकार मिले।
आरटीई के अंतर्गत गैर सहायतित मान्यता प्राप्त विद्यालयों को कक्षा 1 व पूर्व प्राथमिक कक्षाओं में आरटीई लाटरी में आने वाले छात्रों को निशुल्क पढ़ाना होता है। स्कूलों को अपनी कुल सीट की 25 फीसदी सीटें इनके लिए आरक्षित करनी होती हैं। इस बार स्कूलों को आरटीई के पोर्टल पर सीटें अपलोड करनी थीं, जिसमें स्कूलों ने चालाकी कर अपनी कुल सीट 100 से बजाए 25-20 दर्शायी, ताकि आरटीई में 5 से 6 दाखिले देने पड़े।
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शिक्षा के अधिकार के तहत आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के बच्चों को प्रवेश देने में कथित अनियमितता के आरोप में नोएडा एवं ग्रेटर नोएडा के 33 निजी स्कूलों को नोटिस जारी किया गया है। अधिकारियों ने शुक्रवार को यह जानकारी दी। जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान (डायट) के प्रधानाचार्य और बेसिक शिक्षा अधिकारी का अतिरिक्त प्रभार संभाल रहे संजय कुमार उपाध्याय ने बताया कि इन स्कूलों ने कथित रूप से आगामी सत्र में प्रवेश के लिए वास्तव में उपलब्ध सीटों के मुकाबले कम सीटें दिखाईं। उपाध्याय ने बताया कि शिक्षा के अधिकार (आरटीई) के तहत गैर वित्त पोषित स्कूलों की 25 प्रतशित सीटें आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के विद्यार्थियों के लिए आरक्षित होती हैं और कम सीटें प्रदर्शित करने से स्वत: इस श्रेणी की सीटें कम हो जाती हैं।
जानकारी के मुताबिक, जिन स्कूलों ने 2020-21 सत्र में सौ सीटें दिखाई थीं, उन्होंने 2021-22 सत्र में अपनी सीटें सीधे 80 फीसद कम कर दी। इससे हजारों गरीब बच्चों का शिक्षा का हक छीन लिया गया, वह लॉटरी का हिस्सा तो बने, लेकिन सीट कम होने के कारण लिस्ट में उनका नाम नहीं आया। बेसिक शिक्षा विभाग ने जिले के 33 स्कूलों को नोटिस जारी कर कम सीट दर्शाने का कारण पूछते हुए साक्ष्य सहित सीटों का विवरण मांगा है।