आचार्य संतोष कुमार पाण्डेय
हिंदू धर्म में नाग को देवता का रूप माना जाता है और उनकी पूजा का विधान है। दरअसल, नाग को आदि देव भगवान शिव शंकर के गले का हार और सृष्टि के पालनकर्ता हरि विष्णु की शैय्या माना जाता है। इसके अलावा नागों का लोगों के जीवन से भी नाता है। सावन के महीने में हमेशा जमकर बारिश होती है और इस वजह से नाग जमीन से निकलकर बाहर आ जाते हैं। माना जाता है कि नाग देवता को दूध पिलाया जाए और उनकी पूजा की जाए तो वे किसी को नुकसान नहीं पहुंचाते। कुंडली दोष दूर करने के लिए भी नाग पंचमी का अत्यधिक महत्व है। अगर कुंडली में राहु-केतु की स्थिति ठीक न हो तो इस दिन विशेष पूजा का लाभ पाया जा सकता है। जिनकी कुंडली में विषकन्या या अश्वगंधा योग हो, ऐसे लोगों को भी इस दिन पूजा-उपासना करनी चाहिए। जिनको सांप के सपने आते हों या सर्प से डर लगता हो तो ऐसे लोगों को इस दिन नागों की पूजा विशेष रूप से करना चाहिए।
जो लोग नागों की कृपा पाना चाहते हैं उन्हें नागपंचमी के दिन न तो भूमि खोदनी चाहिए और न ही साग काटना चाहिए। देश के कई भागों में तो इस दिन सुई धागे से किसी तरह की सिलाई आदि भी नहीं की जाती। न ही आग पर तवा और लोहे की कड़ाही आदि में भोजन पकाया जाता है। किसान अपनी नई फसल का तब तक प्रयोग नहीं करते जब तक वह नए अनाज से बाबे को रोट न चढ़ाएं।
नागपंचमी शुक्रवार को है। इस पर्व पर देश के प्रमुख नाग मंदिरों और शिव मंदिरों में ही नहीं, घर-घर में इस दिन श्रद्धालु नागदेवता की पूजा—अर्चना करते और उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। ऐसी मान्यता है कि नागपंचमी के दिन श्रद्धा व भक्ति से नागदेवता की पूजा करने वाले व्यक्ति और उसके परिवार को कभी सर्पों से भय नहीं होता। 13 अगस्त, शुक्रवार को नागपंचमी दिन के एक बजकर 42 मिनट तक रहेगी। पंचमी वैसे तो 12 अगस्त को अपराह्न 3 बजकर 24 मिनट पर ही लग रही है लेकिन उदयतिथि के मान से नागपंचमी का पर्व 13 अगस्त को ही मान्य है। इस दिन पूजा का शुभ मुहूर्त प्रात:5.24 से प्रात:8.31 तक है जबकि अभिजीत मुहूर्त – अपराह्न 12:05 बजे मिनट से 12:57 बजे तक है।अमृत काल दोपहर 12:49 बजे से 2:20 बजे तक है। विजय मुहूर्त दोपहर 02:13 बजे से 3:06 बजे तक है। माता पार्वती और भगवान शिव के साथ भक्तों को इस दिन शुभ मुहूर्त में नाग पूजा करना चाहिए और जमीन को नहीं खोदना चाहिए। इस दिन पूजा और नियमों का पालन करने वालों को काल सर्प योग से निजात मिलती है। नागपंचमी पर सुबह जल्दी उठकर स्नान
आदि करने के बाद सबसे पहले भगवान शंकर का ध्यान करें नागों की पूजा शिव के अंश के रूप में और शिव के आभूषण के रूप में ही की जाती है। पहले भगवान शिव का पूजन —अभिषेक करें फिर नाग पूजन करें। सुबह स्नान करने के बाद घर के दरवाजे पर पूजा के स्थान पर गोबर से नाग बनाएं।मन में व्रत का सकंल्प लें। नाग देवता का आह्वान कर उन्हें बैठने के लिए आसन दें, फिर जल, पुष्प और चंदन का अर्घ्य दें।
दूध, दही, घी, शहद और चीनी का पंचामृत बनाकर नाग प्रतिमा को स्नान कराएं। इसके बाद प्रतिमा पर चंदन, गंध से युक्त जल चढ़ाना चाहिए। फिर लडडू और मालपुए का भोग लगाएं। इसके बाद सौभाग्य सूत्र, चंदन, हरिद्रा, चूर्ण, कुमकुम, सिंदूर, बेलपत्र, आभूषण, पुष्प माला, सौभाग्य द्र्व्य, धूप-दीप, ऋतु फल और पान का पत्ता चढ़ाने के बाद आरती करें। ऐसी मान्यता है कि नाग देवता को सुगंध अति प्रिय है। इस दिन नाग देव की पूजा सुगंधित पुष्प और चंदन से करनी चाहिए।
नाग पंचमी की पूजा का मंत्र इस प्रकार है: “ऊँ कुरुकुल्ये हुं फट स्वाहा”। शाम के समय नाग देवता की फोटो या प्रतिमा की पूजा कर व्रत तोड़ें और फलाहार ग्रहण करें। घर के मुख्य द्वार पर गोबर, गेरू या मिट्टी से सर्प की आकृति बनाएं और इसकी पूजा करें। घर के मुख्य द्वार पर सर्प की आकृति बनाने से जहां आर्थिक लाभ होता है, वहीं घर पर आने वाली विपत्तियां भी टल जाती हैं। इसके बाद ‘ऊं कुरु कुल्ले फट् स्वाहा’ का जाप करते हुए घर में जल छिड़कें। अगर आप नागपंचमी के दिन सामान्य रूप से भी इस मंत्र का उच्चारण करने वालों को नागों का तो आशीर्वाद तो मिलता ही है, साथ भगवान शंकर का भी आशीष मिलता है। बिना शिव जी की पूजा के कभी भी नागों की पूजा न करें। क्योंकि शिव की पूजा कर नागों की पूजा करेंगे तो वो कभी अनियंत्रित नहीं होंगे। नागों की स्वतंत्र पूजा न करें, उनकी पूजा शिव जी के आभूषण के रूप में ही करें।
नाग-नागिन के जोड़े की प्रतिमा (सोने, चांदी या तांबे से निर्मित) के सामने यह मंत्र बोलें।
अनन्तं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलम्। शंखपाल धृतराष्ट्रं तक्षकं कालियं तथा। एतानि नव नामानि नागानां च महात्मनाम्।
सायंकाले पठेन्नित्यं प्रात:काले विशेषत:। तस्मै विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत्।
इसके बाद पूजा व उपवास का संकल्प लें। नाग-नागिन के जोड़े की प्रतिमा को दूध से स्नान करवाएं। इसके बाद शुद्ध जल से स्नान कराकर गंध, फूल, धूप, दीप से पूजा करें व सफेद मिठाई का भोग लगाएं। यह प्रार्थना करें।
‘सर्वे नागा: प्रीयन्तां मे ये केचित् पृथिवीतले। ये च हेलिमरीचिस्था येन्तरे दिवि संस्थिता। ये नदीषु महानागा ये सरस्वतिगामिन:। ये च वापीतड़ागेषु तेषु सर्वेषु वै नम:।’
इस प्रार्थना के बाद नाग गायत्री मंत्र का जप करें-
‘ऊँ नागकुलाय विद्महे विषदन्ताय धीमहि तन्नो सर्प: प्रचोदयात्।’
इसके बाद सर्प सूक्त का पाठ करें— ‘ब्रह्मलोकुषु ये सर्पा: शेषनाग पुरोगमा:। नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।
इन्द्रलोकेषु ये सर्पा: वासुकि प्रमुखादय:। नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।’
इसके बाद नागदेवता की आरती करें और प्रसाद बांट दें। इस प्रकार पूजा करने से नागदेवता प्रसन्न होते हैं और हर मनोकामना पूरी करते हैं।
महाभारत आदि ग्रंथों में नागों की उत्पत्ति के बारे में बताया गया है। इनमें शेषनाग, वासुकि, तक्षक आदि प्रमुख हैं। नागपंचमी के अवसर पर हम आपको ग्रंथों में वर्णित प्रमुख नागों के बारे में बता रहे हैं। धर्म ग्रंथों के अनुसार, तक्षक पातालवासी आठ नागों में से एक है। तक्षक के संदर्भ में महाभारत में वर्णन मिलता है। उसके अनुसार, श्रृंगी ऋषि के शाप के कारण तक्षक ने राजा परीक्षित को डसा था, जिससे उनकी मृत्यु हो गयी थी। तक्षक से बदला लेने के उद्देश्य से राजा परीक्षित के पुत्र जनमेजय ने सर्प यज्ञ किया था। इस यज्ञ में अनेक सर्प आ-आकर गिरने लगे। यह देखकर तक्षक देवराज इंद्र की शरण में गया। जैसे ही ऋत्विजों (यज्ञ करने वाले ब्राह्मण) ने तक्षक का नाम लेकर यज्ञ में आहुति डाली, तक्षक देवलोक से यज्ञ कुंड में गिरने लगा। तभी आस्तिक ऋषि ने अपने मंत्रों से उन्हें आकाश में ही स्थिर कर दिया। उसी समय आस्तिक मुनि के कहने पर जनमेजय ने सर्प यज्ञ रोक दिया और तक्षक के प्राण बच गए।
कर्कोटक नाग शिव के एक गण हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, सर्पों की मां कद्रू ने जब नागों को सर्प यज्ञ में भस्म होने का शाप दिया तब भयभीत होकर कंबल नाग ब्रह्माजी के लोक में, शंखचूड़ मणिपुर राज्य में, कालिया नाग यमुना में, धृतराष्ट्र नाग प्रयाग में, एलापत्र ब्रह्मलोक में और अन्य कुरुक्षेत्र में तप करने चले गए।
ब्रह्माजी के कहने पर कर्कोटक नाग ने महाकाल वन (उज्जैन)में महामाया के सामने स्थित लिंग की स्तुति की। शिव ने प्रसन्न होकर कहा- जो नाग धर्म का आचरण करते हैं, उनका विनाश नहीं होगा। इसके बाद कर्कोटक नाग उसी शिवलिंग में प्रवेश कर गया। तब से उस लिंग को कर्कोटेश्वर कहते हैं। मान्यता है कि जो लोग पंचमी, चतुर्दशी और रविवार के दिन कर्कोटेश्वर शिवलिंग की पूजा करते हैं, उन्हें सर्प पीड़ा नहीं होती।
श्रीमद्भागवत के अनुसार, कालिया नाग यमुना नदी में अपनी पत्नियों के साथ निवास करता था। उसके जहर से यमुना नदी का पानी भी जहरीला हो गया था। श्रीकृष्ण ने जब यह देखा तो वे लीलावश यमुना नदी में कूद गए। यहां कालिया नाग व भगवान श्रीकृष्ण के बीच भयंकर युद्ध हुआ। अंत में श्रीकृष्ण ने कालिया नाग को पराजित कर दिया। तब कालिया नाग की पत्नियों ने श्रीकृष्ण से कालिया नाग को छोड़ने के लिए प्रार्थना की। तब श्रीकृष्ण ने उनसे कहा कि तुम सब यमुना नदी को छोड़कर कहीं और निवास करो। श्रीकृष्ण के कहने पर कालिया नाग परिवार सहित यमुना नदी छोड़कर कहीं और चला गया।
इनके अलावा कंबल, शंखपाल, पद्म व महापद्म आदि नाग भी धर्म ग्रंथों में पूजनीय बताए गए हैं।
नागपंचमी पर नागों की पूजा कर आध्यात्मिक शक्ति और धन मिलता है। लेकिन पूजा के दौरान कुछ बातों का ख्याल रखना बेहद जरूरी है। जिन लोगों के सपने में सांप आते हों या सर्प से भय लगता हो तो ऐसे लोगों को इस दिन नागों की पूजा विशेष रूप से करनी चाहिए। नागपंचमी के दिन भगवान शिव का रुद्राभिषेक करें। शिवमंत्र का 108 बार जाप करें। हनुमान मंदिर में हनुमान जी को सिंदूर और चमेली का तेल अर्पित करें। सुंदरकांड का पाठ करें। घर के मुख्य द्वार पर गोबर, गेरू या मिट्टी से सर्प की आकृति बनाएं और पूजा करें। ऐसा करने से घर पर आने वाली विपत्तियां टल जाती हैं।इस दिन पीपल के वृक्ष के नीचे मिट्टी के बर्तन में दूध रखने से नाग देवता प्रसन्न होते हैं।
राहु-केतु से परेशान लोग एक बड़ी सी रस्सी में सात गांठें लगाकर प्रतीकात्मक रूप से उसे सर्प बना लें। इसे एक आसन पर स्थापित करें। अब इस पर कच्चा दूध, बताशा और फूल अर्पित करें। साथ ही गुग्गल की धूप भी जलाएं। इसके पहले राहु के मंत्र ‘ऊं रां राहवे नम:’ का जप करें और फिर केतु के मंत्र ‘ऊं कें केतवे नम:’ का जप करें। ध्यान रखें, जितनी बार राहु का मंत्र जपेंगे उतनी ही बार केतु का मंत्र भी जपना है। मंत्र का जप करने के बाद भगवान शिव का स्मरण करते हुए एक-एक कररस्सी की गांठ खोलते जाएं। फिर रस्सी को बहते हुए जल में प्रवाहित कर दें। राहु और केतु से संबंधित जीवन में कोई समस्या है तो वह समस्या दूर हो जाएगी।
अगर किसी को को सर्प से डर लगता है या सांप के सपने आते हैं तो चांदी के दो सर्प बनवाएं। साथ में एक स्वास्तिक भी बनवाएं। अगर चांदी का नहीं बनवा सकते तो जस्ते का बनवा लें। अब थाल में रखकर इन दोनों सांपों की पूजा कीजिए और एक दूसरे थाल में स्वास्तिक को रखकर उसकी अलग पूजा कीजिए। नागों को कच्चा दूध जरा-जरा सा दीजिए और स्वास्तिक पर एक बेलपत्र अर्पित करें। फिर दोनों थाल को सामने रखकर ‘ऊं नागेंद्रहाराय नम:’ का जप करें। इसके बाद नागों को ले जाकर शिवलिंग पर अर्पित करें और स्वास्तिक को गले में धारण करें। ऐसा करने के बाद सांपों का डर दूर हो जाएगा और सपने में सांप आना बंद हो जाएंगे।
— लेखक वेदम एस्ट्रो एंड लाइफ साइंसेज के संस्थापक हैं।