धर्म डेस्क। आश्विन कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि और गुरुवार का दिन है। अमावस्या तिथि शाम 4 बजकर 30 मिनट तक रहेगी। इस दिन जिनका स्वर्गवास किसी भी महीने की अमावस्या को हुआ हो, उनका श्राद्ध कार्य किया जायेगा। साथ ही मातामह, यानी नाना का श्राद्ध भी इसी दिन किया जायेगा। इसमें दौहित्र, यानी बेटी के बेटे को ये श्राद्ध करना चाहिए। भले ही उसके नाना के पुत्र जीवित हों, लेकिन वो भी ये श्राद्ध करके उनका आशीर्वाद पा सकता है। इस श्राद्ध को करने वाला व्यक्ति अत्यंत सुख को पाता है।
इसके अलावा जुड़वाओं का श्राद्ध, तीन कन्याओं के बाद पुत्र या तीन पुत्रों के बाद कन्या का श्राद्ध भी इसी दिन किया जायेगा। आज अज्ञात तिथि वालों यानी जिनके अंतिम दिवस की तिथि न पता हो। साथ ही पितृ विसर्जन , सर्वपैत्री भी आज ही के दिन किया जायेगा । जो लोग श्राद्ध के बीते दिनों में किसी कारणवश अपने स्वर्गवासी पूर्वज़ों का श्राद्ध न कर पाये हों या श्राद्ध करना भूल गए हों, वो भी आज के दिन श्राद्ध कार्य करके लाभ उठा सकते हैं। आज अमावस्या के दिन श्राद्ध आदि कार्य के साथ ही महालया, यानी पितृपक्ष की भी समाप्ति हो जायेगी।
सर्व पितृ विसर्जन
पितृ विसर्जन किया जायेगा। माना जाता है कि पितृ विसर्जन करके श्राद्ध के लिये धरती पर आये पितरों की विदाई की जाती है। इस दिन दिन खीर, पूड़ी और अपने पितरों की मनपंसद चीजें बनाकर श्राद्ध कार्य किया जाता है। ऐसी मान्यता है की श्राद्ध में पितरों को दिये अन्न-जल से उन्हें संतुष्टि मिलती है और वो अपने परिवार को आशीर्वाद देकर वापस लौट जाते हैं। अतः आज के दिन अपने भूले-बिसरे पूर्वज़ों के निमित्त श्राद्ध करके जरूर लाभ उठाना चाहिए। अपने पितरों के निमित्त किसी सुपात्र ब्राह्मण को भोजन जरूर कराएं। साथ ही अगर कोई जरूरतमंद या मांगने वाला घर पर आ जाये, तो उसे भी आदरसहित भोजन कराएं।
तर्पण विधि
तर्पण के लिये एक लोटे में साफ जल लेकर उसमें थोड़ा दूध और काले तिल मिलाकर तर्पण कार्य करना चाहिए। पितरों का तर्पण करते समय उस लोटे को हाथ में लेकर दक्षिण दिशा में मुख करके बायां घुटना मोड़कर बैठें और अगर आप जनेऊ धारक हैं, तो अपने जनेऊ को बायें कंधे से उठाकर दाहिने कंधे पर रखें और हाथ के अंगूठे के सहारे से जल को धीरे-धीरे नीचे की ओर गिराएं।
इस प्रकार घुटना मोड़कर बैठने की मुद्रा को पितृ तीर्थ मुद्रा कहते हैं। इसी मुद्रा में रहकर आपको अपने सभी पितरों को तीन-तीन अंजुलि जल देना चाहिए। साथ ही ध्यान रहे कि तर्पण हमेशा साफ कपड़े पहनकर श्रद्धा भाव से करना चाहिए। बिना श्रद्धा के किया गया धर्म-कर्म तामसी तथा खंडित होता है। इसलिए श्रद्धा भाव होना जरूरी है।