बांदा। लोकसभा चुनाव हो या विधानसभा , बड़े राजनीतिक दलों में प्रत्याशी (Candidate) बनाकर सिर्फ बसपा (BSP) ने ही अपना दुलार दिखाया। बाकी तो “बेदर्दी बालमा” निकले।
1969 के बाद से अब तक हुए विधानसभा चुनाव में जिले की चारों सीटों पर बसपा को छोड़कर किसी बड़े दल ने मुस्लिमों पर दांव नहीं लगाया। गैर भाजपा दलों ने भी मुस्लिम चेहरों को टिकट देने से अखियां चुराई । ज्यादातर मुस्लिम प्रत्याशियों ने छोटे दलों के टिकट या फिर निर्दलीय चुनावी समर में उतरकर अपनी किस्मत आजमाई है।
सालों में अब तक 31 मुस्लिमों ने विधानसभा चुनाव लड़ा है। इनमें ज्यादातर 13 निर्दलीय के रूप में मुस्लिम प्रत्याशियों ने चुनाव लड़ा है। इनके अलावा एएसपी ने 5 बार और बसपा, एनसीपी व सीपीआई ने 2-2, आईएनसी ने 3 और अपना दल, आईएनसी (यू), बीएसपी-आर आदि दलों ने एक-एक मुस्लिम प्रत्याशी को चुनाव मैदान में उतारा था।
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लेकिन जीत मयस्सर 1991 में हुए विधानसभा चुनाव में सिर्फ बसपा को नसीमुद्दीन सिद्दीकी के रूप में मिली थी। निकटतम प्रतिद्वंद्वी भाजपा रही थी। 1993 में भी बसपा ने नसीमुद्दीन सिद्दीकी पर दांव लगाया पर वह भाजपा से हार गए थे। इनके अलावा ज्यादातर मुस्लिम दावेदार तीसरे से 11वें स्थान पर रहे।
1969 से अब तक विधान सभा चुनाव लड़े मुस्लिम प्रत्याशियों के ब्योरा पर नजर डालें तों निर्दलीय : अली मेंहदी (1969), नजाकत खां व मिर्जा बाकर खां (1977), खलील अहमद व नसीम अहमद (1989), खलील अहमद व मोहम्मद फारुक (1991), सबदर अली, खालिक व अली हसन (1993), मोहम्मद सईद (2002), मोहम्मद सईद मिर्जा व मोहम्मद वफाती मंसूरी (2007) आदि।
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बसपा : नसीमुद्दीन सिद्दीकी (1991 व 1993)
एएसपी : खालिद हसन, अलयार खां व शमीम खां भारतीय (2002), जमील खां (2007), राजा आजाद (2012)
सीपीआई : असदुज्जमां (1969) व मसीहुल हक (1985)
1980 से अब तक अन्य दल व प्रत्याशी : खलील खां (आईएनसी-यू), मोहम्मद शोएब आलम (आईएनसी), वसीम अहमद (अपना दल), जावेद खां व अब्दुल रईस (एनसीपी) आदि शामिल हैं।