उत्तर प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित ने कहा है कि वैदिक काल से ही भारत के जीवन में ज्ञान को लेकर प्यास देखी गयी है।
श्री दिक्षित ने गुरूवार को यहां महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद् के संस्थापक सप्ताह समारोह के मुख्य महोत्सव एवं पारितोषिक वितरण समारोह में बतौर मुख्य अतिथि कहा कि ज्ञान साधारण नहीं है और न/न ही सूचनात्मक है, बल्कि पूर्वजों ने भारतीय ज्ञान को तत्व ज्ञान ही कहा है।
उन्होंने कहा कि तत्वज्ञानी की अभिव्यक्ति गुरु गोरखनाथ जी के कथन में दिखायी पड़ती है। गोरखनाथ जी कहते हैं ‘‘अलेख लेखंत, अदेख देखंत’’ अर्थात् जो दूसरे लोग देख नहीं पाते उसे ज्ञानी देख लेता है और जिसे दूसरे स्पर्श नहीं कर पाते उसे वह स्पर्श कर लेता है। यह ज्ञान परम्परा गुरु से प्राप्त है जिस पर भारत को गर्व है। स्वतन्त्रता तक भारत के ज्ञान राष्ट्रीय भाव, संस्कृति, धर्म दर्शन को लेकर बड़ा आग्रह था। यह आग्रह स्वतन्त्रता के बाद घटता गया। भारतीय संस्कृति और दर्शन को हिकारत से लिखा गया। सारी दुनिया को छद्म गतिशील विद्धानों ने भारत में प्राप्त किये जाने वाले ज्ञान को थोथा बताया। उन लेखकों ने कहा कि यह भाववादी दर्शन है, गायॅ पूर्वजों द्वारा खायी जाती थीं। उन लेखकों ने पूरी संस्कृति को नष्ट करने वाली छवि को दुनिया के सामने प्रस्तुत किया।
उन्होंने कहा कि इसके समानान्तर भारतीय दर्शन, ज्ञान-विज्ञान को पोषित करने वाली धारा भी प्रवाहित हो रही थी। इसका प्रभाव भी परिलक्षित हुआ। श्री गोरक्षपीठ में बहुत पहले प्रभावित करने वाली प्रज्ञा, दर्शन, ज्ञान की धारा फुटती थी। गुरु गोरखनाथ जी की वाणी में संसार और ईश्वर दोनों की सिद्धि की बात है। इसमें बताया गया है कि योग, ध्यान, जप, मुक्ति, मोक्ष, कैवल्य प्राप्त करने का स्रोत संसार में है। सहस्रार, जो शिरके भीतर विस्तृत है यहीं अमृत का वास है, यहीं शिव का निवास है। गुरु गोरखनाथ जी ने इसी को आकाश में औॅधा कुआ कहा है जिससे अमृत झरता है।
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श्री दीक्षित ने कहा कि इसी श्रीगोरक्षपीठ से दुनिया में यहाॅ की आभा,यहाॅ का ज्ञान-विज्ञान पहुॅचा और संसार को सुन्दर बनाया। शिक्षा की दृष्टि से राष्ट्र सम्पन्न हो इसी दृष्टि से सन् 1932 में महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद् की स्थापना हुई। उद्देश्य स्पष्ट था, आध्यात्मिक एवं भौतिक उन्नति,आध्यात्मिक उन्नति एवं भौतिक उन्नति दोनों एक साथ चलें तो धरती स्वर्ग हो जाये और अमरत्व भी प्राप्त हो। उन्होंने कहा कि श्री गोरक्षपीठ संस्कृत और संस्कृति की उपासना की केन्द्र है। यहाॅ अध्यात्म और संसार दोनों को एक साथ देखा जा सकता है।
उन्होंने कहा कि यजुर्वेद के अन्तिम अध्याय में ऋषि कहते हैं कि विद्वानों से सुना है कि जो लोग अविद्या की उपासना करते हैं वे अन्धतम लोको में जाते हैं और जो विद्या की उपासना करते है वह भी नरक में जाते हैं। साधक को चाहिए कि वह विद्या और अविद्या दोनों की उपासना करे। अविद्या से वह संसार पार करता है और विद्या से उसे मोक्ष मिलता है। इस दृष्टि से शिक्षा परिषद् सुयोग्य नारगरिक तैयार कर रहा है।
विधानसभा अध्यक्ष ने कहा कि मैक्समूलर ने भारत में सिविल सेवा में आने वाले लन्दन के छात्रों को ‘व्हाट इण्डिया टीच अस’में भारत के दर्शन, उपनिषदों, ऋषियों-मुनियों के सन्दर्भ में बताया। उसने बताया कि भारत विचित्र देश है। वहाॅ से हम अनेक बातें सीख सकते हैं। मैक्समूलर का भारत, विवेकानन्द का भारत यदि भारत में कहीं है तो वह श्री गोरक्षपीठ में है। उन्होंने आगे कहा कि शिक्षा परिषद् का यह आयोजन अनूठा है। इसकी प्रेरण भारत की अन्य शिक्षण-संस्थाएं ग्रहण कर आगे बढ़ सकती हैं और अविद्या एवं विद्या के तप से भारत को आगे ले जा सकती हैं।
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इसके पूर्व दिगम्बर गखाड़ा अयोध्या के महन्त सुरेश दास ने कहा कि राष्ट्र निर्माण के लिए तीन चीजें आवश्यक हैं, शिक्षा, स्वास्थ्य और यातायात। श्री गोरक्षपीठ ने बहुत पहले परतन्त्रता काल में ही सन् 1932 में शिक्षा का कार्यक्रम प्रारम्भ किया। महन्त दिग्विजयनाथ जी युगद्रष्टा थे। वे जानते थे कि विकास के लिए शिक्षा जरूरी है। शिक्षा के अभाव में ही हम इतने वर्षों तक गुलाम रहे। मानव जीवन में स्वास्थ्य का विशेष महत्व है। सम्पत्ति रहते हुए भी अस्वस्थ व्यक्ति का जीवन व्यर्थ हो जाता है। इसी लिए माननीय योगी जी ने उत्तर प्रदेश में शिक्षा एवं स्वास्थ्य के प्रति विशेष ध्यान दिया है। उत्तर प्रदेश सरकार ने शिक्षा एवं स्वास्थ्य के लिए अनेक योजनाएं प्रारम्भ की हैं।
इस मौके पर गोरक्षपीठाधीश्वर एवं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि हर विपत्ति अवसर भी लेकर आती है। सफलता के साथ चुनौतियाॅ भी सामने होती है। इस कोरोना कालखण्ड में शिक्षा परिषद् ने सफलता पूर्वक इस आयोजन को सम्पन्न कर इस बात को सिद्ध कर दिया है।
उन्हेंने कहा कि देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कोरोना काल में जूझते हुए भारत को चुनौतियों से लड़ने की एवं राह बनाने की प्रेरणा देते हुए देश को सफलता की एक नई ऊचाई पर पहुंचाया है। शिक्षा परिषद् ने इस काल खण्ड में एक आदर्श उदाहरण प्रस्तुत करते हुए 500 से अधिक छात्रों को पुरस्कृत किया है।
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उन्होंने कहा कि यह वर्ष अत्यन्त महत्वपूर्ण है। यह महन्त दिग्विजयनाथ महाराज का 125वीं जयन्ती वर्ष एवं महन्त अवेद्यनाथ का जन्म शताब्दि वर्ष है। इस वर्ष में महाराणा प्रताप इण्टर कालेज ने शिक्षा परिषद् के निर्देशन में गोरखपुर के वासियों को भव्यमंच प्रदान किया है। उन्होंने कहा कि हमारे पूर्वजों ने हमारे जीवन को पाप और पुण्य में बाॅटा है। अच्छे कर्म से पुण्य प्राप्त होता है और बुरे कर्म से पाप जो सत्य है।
श्री योगी ने कहा कि आपका जीवन आपके कर्म से आगे बढ़ता है। आप अच्छे कर्म के माध्यम से संस्था के लिए और समाज के लिए आदर्श बन जाते हैं और यदि आपका कृतित्व उचित नहीं है तो आप स्वयं के लिए, समाज और देश के लिए बोझ बन जाते हैं। हम टीम भावना के साथ एक साथ मिल कर कार्य करें तो संस्था ऊचाई भी प्राप्त करेगी और यशस्वी भी बनेगी। इससे आत्म संतुष्टि तो मिलेगी ही, समाज में लोग आपका उदाहरण देंगे।
उन्होंने कहा कि जीवन में बड़ा उद्देश्य रखना चाहिए और अपने कृतित्व के माध्याम से अपने और अपने परिवेश को प्रेरणादायी बनाना चाहिए। आज देश अच्छी दिशा की ओर बढ़ रहा है। आज से पाॅच-सात वर्ष पहले भारत अमेरिका और यूरोप की ओर देखता था पर, आज ये देश भारत की ओर देख रहे हैं। ऐसा, कुशल नेतृत्व के कारण सम्भव हो सका है। तकनीकि का उपयोग सकारात्मकता के साथ हो तो विकास और नकारात्मकता के साथ हो तो विनाश हो सकता है। बच्चों को तकनिक से सकारात्मकता के साथ जोड़े।
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उन्होंने कहा कि आगामी जनवरी माह तक कोरोना की वेक्सीन आ जायेगी पर, उत्तावलापन न/न दिखाएं, सजग और सतर्क रहें। दो गज की दूरी मास्क है जरूरी का पालन अवश्य करें।
इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि उत्तर प्रदेश सरकार में जल शक्ति मंत्री डाॅ. मेहन्द्र सिंह जी ने कहा कि यद्यपि बादल घिरे हुए है, कुहरा पड़ रहा है पर भगवान सूर्य अपने अंश आदित्य को गर्व के साथ देख रहे हैं। भगवान सूर्य के नामों में पहला नाम आदित्य का ही आता है। आदित्य को पहला गुरु कहा गया है, क्योंकि प्रकाश इन्हीं से प्राप्त होता है। उन्होंने कहा कि भगवान सूर्य के अंश योगी आदित्य नाथ चतुर्दिक विकास से उत्तर प्रदेश को लाभवान्वित कर रहे है। उनके नेतृत्व में उत्तर प्रदेश निरन्तर आगे बढ़ रहा है। उन्होंने कहा कि योगी आहिदत्यनाथ आदर्श मुख्य मंत्री हैं।
उन्होंने कहा कि स्वामी विवेकानन्द ने दो समस्याएं बतायी थी। पहला दरिद्रता और दूसरा अशिक्षा। शिक्षा हो तो दरिद्रता समाप्त हो सकती है। विवेकानन्द के 20वीं शताब्दि का भारत आज प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और योगी के भारत के रूप में फलता-फूलता दिखायी दे रहा है। अशिक्षा और गरिबी के उन्मूलन के लिए दोनों संकल्पित हैं। यहाॅ शिक्षा परिषद् का यह आयोजन अद्भुत है। योगी आदित्य नाथ जी शिक्षा परिषद् की तरह ही भारत और भारतीयता, संस्कृत और संस्कृति से युक्त शिक्षा चाहते हैं।
इस संस्थापक सप्ताह समारोह के मुख्य महोत्सव एवं पारितोषित वितरण समारोह में महाराणा प्रताप इण्टर कालेज परिसर में लगभग पाॅच सौ छात्र-छात्राओं को पुरस्कृत किया गया।
महाराणा प्रताप शि़क्षा परिषद् संस्थापक समारोह के अवसर पर दिये जाने वाले प्रमुख पुरस्कारों में श्रेष्ठतम् संस्था का गुरु गोरक्षनाथ स्वर्ण पदक महाराणा प्रताप बालिका इण्टर कालेज सिविल लाइन्स, गोरखपुर, श्रेष्ठतम शिक्षक का योगिराज बाबा गम्भीर नाथ स्वर्ण पदक पवन कुमार पाण्डेय दिग्विजयनाथ स्नातकोत्तर महाविद्यालय, गोरखपुर स्नातकोत्तर कक्षाओं में श्रेष्ठतम विद्यार्थी का ब्रह्मलीन महन्त दिग्विजयनाथ स्वर्ण पदक महाराणा प्रताप स्नातकोत्तर महाविद्यालय जंगल धूसड़ गोरखपुर के एम.ए.द्वितीय वर्ष के छात्र राहुल गिरि को, स्नातक कक्षाओं में श्रेष्ठतम विद्यार्थी का ब्रह्मलीन महन्त अवेद्यनाथ स्वर्ण पदक दिग्विजयनाथ स्नातकोत्तर महाविद्यालय, गोरखपुर के बी.ए.प्रथम वर्ष के छात्र सागर चैधरी , माध्यमिक वर्ग के श्रेष्ठतम विद्यार्थी का महाराणा मेवाड़ स्वर्ण पदक महाराणा प्रताप इण्टर कालेज, गोरखपुर के कक्षा 12 के छात्र गणेश पाण्डेय को प्रदान किया गया।
शोभा यात्रा में श्रेष्ठ अनुशासन एवं पथ संचलन के पुरस्कारों कीे भी घोषणा कर दी गयी। शोभा यात्रा का प्रथम पुरस्कार महाराणा प्रताप स्नातकोŸार महाविद्यालय जंगल धूसड़, गोरखपुर को द्वितीय पुरस्कार महाराणा प्रताप बालिका इण्टर कालेज सिविल लाइन्स, गोरखपुर को तृतीय पुरस्कार महाराणा प्रताप कृषक इण्टर कालेज जंगल धूसड़, गोरखपुर को तथा प्रोत्साहन पुरस्कार गुरू श्रीगोरक्षनाथ काॅलेज ऑफ नर्सिंग गोरखनाथ, गोरखपुर को एवं दिग्विजयनाथ एल.टी. प्रशिक्षण महाविद्यालय, गोरखपुर को प्रदान किया जायेगा। अन्य प्रमुख 11 पुरस्कारों की भी घोषणा कर दी गयी है। महाराणा भगवत सिंह स्मृति पुरस्कार प्रगति पाण्डेय, स्व.चौधरी विनोद कुमार स्मृति पुरस्कार श्रेया जायसवाल, डाॅ. हरिप्रसाद शाही स्मृति पुरस्कार नेहा गुप्ता, लक्ष्मीशंकर वर्मा स्मृति पुरस्कार सुजाता मौर्या, चण्डी प्रसाद सिंह स्मृति छात्रवृत्ति विशाल यादव, स्व. राम नरेश स्मृति पुरस्कार गणेश गुप्ता, सुशीला देवी स्मृति पुरस्कार श्वेता सिंह, माॅ गंगदेई देवी स्मृति पुरस्कार माधवेन्द्र पति त्रिपाठी,चौधरी रामलखन स्मृति पुरस्कार साधना चौरसिया,चौधरी कृष्णा स्मृति पुरस्कार सौम्या सिंह, पं.बब्बन मिश्र स्मृति पुरस्कार वैष्णवी अग्रहरि को प्रदान किया गया।