पद्मिनी एकादशी (Padmini Ekadashi) का व्रत 29 जुलाई दिन शनिवार को है. मलमास या अधिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी पद्मिनी एकादशी कहलाती है. यह पद्मिनी एकादशी हर 3 साल में एक बार आती है क्योंकि मलमास भी हर तीन वर्ष पर आता है. पद्मिनी एकादशी (Padmini Ekadashi)का व्रत करने से संतान की प्राप्ति होती है. उसे यश और वैकुंठ प्राप्त होता है. पद्मिनी एकादशी की पूजा के समय आपको इसकी व्रत कथा को जरूर पढ़ना चाहिए. इससे व्रत का महत्व पता चलेगा. व्रत कथा पढ़े बिना व्रत कैसे पूर्ण होगा? जानते हैं पद्मिनी एकादशी व्रत कथा के बारे में.
पद्मिनी एकादशी (Padmini Ekadashi) व्रत कथा
भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को पद्मिनी एकादशी व्रत के महत्व के बारे में बताते हुए इसकी कथा सुनाई. त्रेतायुग में महिष्मती पुरी में कृतवीर्य नामक राजा था. उसकी 1 हजार स्त्रियां थीं, लेकिन उसे कोई पुत्र न था. पुत्र की कमी खलती थी. उसने पुत्र प्राप्ति के लिए कई उपाय किए, लेकिन मनोकामना पूरी नहीं हुई.
तब राजा ने वन में जाकर तपस्या करने का फैसला किया. उसके साथ उसकी एक रानी पद्मिनी भी वन जाने के लिए तैयार हो गई. दोनों राजपाट त्यागकर नगर से निकल गए और गंधमादन पर्वत पर चले गए. राजा ने करीब 10 हजार साल तक तपस्या की, लेकिन पुत्र की प्राप्ति नहीं हुई.
एक दिन अनुसूया ने रानी पद्मिनी से कहा कि मलमास हर 3 साल में एक बार आता है. यह काफी महत्वपूर्ण है. मलमास के शुक्ल पक्ष की पद्मिनी एकादशी (Padmini Ekadashi)को जागरण करके व्रत रखने से मनोकामना जल्द ही पूर्ण होती है. भगवान श्रीहरि विष्णु प्रसन्न होकर तुमको पुत्र का वरदान देंगे.
जब मलमास आया तो रानी ने पुत्र की कामना से पद्मिनी एकादशी का व्रत रखा. अनुसूया के बताए अनुसार ही व्रत और पूजा पाठ किया. दिन में कुछ भी नहीं खाया और रात्रि में जागरण किया. इस व्रत से प्रसन्न होकर श्रीहरि विष्णु ने रानी को पुत्र का आशीर्वाद दिया.
रानी गर्भवती हुई और 9 माह बाद कार्तवीर्य नामक पुत्र को जन्म दिया. वह काफी बलवान और पराक्रमी था. तीनों लोकों में उसके पराक्रम का परचम लहरा रहा था.
भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया कि जो व्यक्ति पद्मिनी एकादशी (Padmini Ekadashi) व्रत कथा को सुनता है, उसके यश में वृद्धि होती है और मृत्यु के बाद श्रीहरि के चरणों में स्थान पाता है.