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इस दिन है पापांकुशा एकादशी, विधि से करें भगवान विष्णु की पूजा

Papankusha Ekadashi

Papankusha Ekadashi

हर महीने एकादशी का व्रत रखा जाता है। एक साल में लगभग 24 एकादशी पड़ती है। एकादशी का हर एक व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है। इस साल अक्टूबर में पड़ने वाली शुक्ल पक्ष की एकादशी पापांकुशा एकादशी (Papankusha Ekadashi)  कहलाएगी। मान्यता है पापांकुशा एकादशी का व्रत रखने से विष्णु भगवान की कृपा बनी रहती है। आइए जानते हैं पापांकुशा एकादशी कब है व भगवान विष्णु की पूजा विधि-

पापांकुशा एकादशी (Papankusha Ekadashi) कब है?

दृक पंचांग के अनुसार, आश्विन महीने की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि अक्टूबर 13, 2024 को सुबह 09:08 बजे प्रारम्भ होगी, जिसका समापन अक्टूबर 14, 2024 को सुबह 06:41 बजे तक होगा। ऐसे में दोनों ही दिन पापांकुशा एकादशी (Papankusha Ekadashi) का व्रत रखा जा सकता है।

पापांकुशा एकादशी (Papankusha Ekadashi) के दिन इस विधि से करें भगवान विष्णु की पूजा

– स्नान आदि कर मंदिर की साफ सफाई करें

– भगवान श्री हरि विष्णु का जलाभिषेक करें

– प्रभु का पंचामृत सहित गंगाजल से अभिषेक करें

– अब प्रभु को पीला चंदन और पीले पुष्प अर्पित करें

– मंदिर में घी का दीपक प्रज्वलित करें

– संभव हो तो व्रत रखें और व्रत रखने का संकल्प करें

– पापांकुशा एकादशी की व्रत कथा का पाठ करें

– ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जाप करें

– पूरी श्रद्धा के साथ भगवान श्री हरि विष्णु और लक्ष्मी जी की आरती करें

– प्रभु को तुलसी सहित भोग लगाएं

– अंत में क्षमा प्रार्थना करें

विष्णु जी की आरती

ओम जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे।

भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे॥

ओम जय जगदीश हरे।

जो ध्यावे फल पावे, दुःख विनसे मन का।

स्वामी दुःख विनसे मन का।

सुख सम्पत्ति घर आवे, कष्ट मिटे तन का॥

ओम जय जगदीश हरे।

मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूं मैं किसकी।

स्वामी शरण गहूं मैं किसकी।

तुम बिन और न दूजा, आस करूं जिसकी॥

ओम जय जगदीश हरे।

तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी।

स्वामी तुम अन्तर्यामी। पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी॥

ओम जय जगदीश हरे।

तुम करुणा के सागर, तुम पालन-कर्ता।

स्वामी तुम पालन-कर्ता।

मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥

ओम जय जगदीश हरे।

तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।

स्वामी सबके प्राणपति।

किस विधि मिलूं दयामय, तुमको मैं कुमति॥

ॐ जय जगदीश हरे।

दीनबन्धु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे।

स्वामी तुम ठाकुर मेरे।

अपने हाथ उठा‌ओ, द्वार पड़ा तेरे॥

ओम जय जगदीश हरे।

विषय-विकार मिटा‌ओ, पाप हरो देवा।

स्वमी पाप हरो देवा।

श्रद्धा-भक्ति बढ़ा‌ओ, संतन की सेवा॥

ओम जय जगदीश हरे।

श्री जगदीशजी की आरती, जो कोई नर गावे।

स्वामी जो कोई नर गावे।

कहत शिवानन्द स्वामी, सुख संपत्ति पावे॥

ओम जय जगदीश हरे।

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