राजधानी दिल्ली के निजी स्कूलों में नर्सरी दाखिला के लिए आवेदन प्रक्रिया अपने चरम पर हैं। ऐसे में अभिभावक दाखिला सुनिश्चित करने के लिए एक के साथ ही कई स्कूलों में दाखिला के लिए आवेदन कर रहे हैं, लेकिन अभिभावकों के लिए स्कूलों की तरफ से घर की दूरी तय करने का फार्मूला सिरदर्द बना हुआ है। आलम यह है कि स्कूलों की तरफ से दूरी तय करने के अलग-अलग पैमानों अभिभावकों को उलझा रहे हैं।
कोई स्कूल गूगल तो कोई स्कूल बस से दूरी माप रहा
नर्सरी दाखिला के लिए स्कूलों ने अपने मानदंड सार्वजनिक कर दिए हैं। जिसमें प्रत्येक स्कूल दूरी तय करने लिए अलग-अलग मानकों को अपना रहे हैं। जिसमें कुछ स्कूल गूगल मैप के माध्यम से घर से स्कूल की दूरी का निर्धारण कर रहे हैं, तो कुछ स्कूल बस से दूरी का मापन कर रहे हैं। अभिभावक रमेश कुमार के मुताबिक उनके घर से दूरी पर दो अलग-अलग स्कूल हैं। उन दोनों स्कूलों में बेटे को दाखिला दिलवाने के लिए सोमवार को आवेदन किया था। आवेदन के दौरान देखा कि एक स्कूल उनके घर की दूरी के 50 अंक दे रहा है, तो दूसरे स्कूल 30 अंक दे रहा है। विस्तृत तौर पर जानकारी जुटाने पर पता चला कि दोनों स्कूल अलग-अलग पैमाने से दूरी मांप रहे हैं।
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क्षेत्रों के आधार पर दूरी का मापने से भेदभाव हो रहा
एक तरफ कुछ स्कूल घर की दूरी गूगल और बस से मांप रहे हैं, तो कुछ स्कूलों ने क्षेत्रों के नाम अंकित कर उनके आधार पर मेरिट के अंकों की सूची जारी की है। नर्सरी दाखिला से जुड़े सुमित वोहरा के मुताबिक क्षेत्रों के आधार पर दूरी मांपने का तरीके के चलते कई बार बच्चों को भेदभाव झेलना पड़ता है। वोहरा के मुताबिक स्कूल बड़े क्षेत्रों के नाम तो लिख देते हैं, लेकिन छोटे क्षेत्रों के नाम छोड़ देते हैं। जिन क्षेत्रों का नाम नहीं हैं, वहा से कोई अभिभावक आवेदन करने के लिए जाता है ,तो क्षेत्र का नाम ना होने पर वह आवेदन से स्वत: वंचित हो जाता है। गूगल से दूरी तय करने का तरीका सबसे सही है। इस मामले में निदेशालय को कोई नियम बनाए।
दाखिला मानदंड में घर से स्कूल की दूरी के सबसे अधिक अंक
निजी स्कूल नर्सरी दाखिला के लिए मेरिट सूची जारी करते हैं। यह मेरिट सूची दाखिला मानदंड के आधार पर बच्चों को मिले अंकों के आधार पर तैयार होती हैं। 100 अंकों के दाखिला मानदंड में स्कूल की पहली प्राथमिकता घर से स्कूल की दूरी होती हैं। पूरे दाखिला मानदंड में स्कूल सबसे अधिक 100 में से 80 अंक तक घर से स्कूल की दूरी के आधार पर देते हैं। जिसमें कम दूरी वाले बच्चों को सबसे अधिक दिए जाते हैं।