धर्म डेस्क। आज वरलक्ष्मी व्रत है। ये लक्ष्मी जी का ही स्वरूप हैं। वरलक्ष्मी धन, समृद्धि और सौभाग्य की देवी हैं। इस दिन लोग वरलक्ष्मी की आराधना करते हैं। साथ ही व्रत कथा भी करते हैं। श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को वरलक्ष्मी किया जाता है। वरलक्ष्मी अपने भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं। यही कारण है कि इनका नाम वर और लक्ष्मी मेल से बना हुआ है। ऐसा माना जाता है कि इस व्रत के जरिए शादीशुदा जोड़ों को संतान सुख की प्राप्ति होती है। स्त्रियां तो ये व्रत बेहद ही उत्साह से करती हैं लेकिन अगर यह व्रत उनके पति भी उनके साथ करें तो इसका महत्व कई गुना बढ़ जाता है।
मान्यता है कि अगर वरलक्ष्मी का व्रत करते समय मां की आरती की जाए और मंत्र का जाप किया जाए तो शुभ फल की प्राप्ति होती है। लेकिन ध्यान रहे कि मंत्र और आरती का उच्चारण एकदम सही किया गया हो। नीचे जो आरती हम दे रहे हैं वो माता लक्ष्मी की है। वरलक्ष्मी, माता लक्ष्मी का ही स्वरूप है और इनकी आरती इस दिन की जा सकती है।
आरती करने से पहले बोलें ये मंत्र-
या श्री: स्वयं सुकृतिनां भवनेष्वलक्ष्मी:
पापात्मनां कृतधियां हृदयेषु बुद्धि:।
श्रद्धा सतां कुलजनप्रभवस्य लज्जा
तां त्वां नता: स्म परिपालय देवि विश्वम्॥
लक्ष्मी जी की आरती-
ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता।
तुमको निशिदिन सेवत, हरि विष्णु विधाता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता॥
उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग-माता।
सूर्य-चन्द्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता॥
दुर्गा रुप निरंजनी, सुख सम्पत्ति दाता।
जो कोई तुमको ध्यावत, ऋद्धि-सिद्धि धन पाता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता॥
तुम पाताल-निवासिनि, तुम ही शुभदाता।
कर्म-प्रभाव-प्रकाशिनी, भवनिधि की त्राता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता॥
जिस घर में तुम रहतीं, सब सद्गुण आता।
सब सम्भव हो जाता, मन नहीं घबराता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता॥
तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न कोई पाता।
खान-पान का वैभव, सब तुमसे आता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता॥
शुभ-गुण मन्दिर सुन्दर, क्षीरोदधि-जाता।
रत्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नहीं पाता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता॥
महालक्ष्मीजी की आरती, जो कोई जन गाता।
उर आनन्द समाता, पाप उतर जाता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता॥