हिंदू धर्म में पितृपक्ष (Pitru Paksha) का विशेष महत्व है। यह 15 दिनों की अवधि पितरों को समर्पित होती है, जब हम अपने दिवंगत पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण करते हैं। पंचांग के अनुसार, इस साल पितृपक्ष 7 सितंबर 2025 से शुरू होकर 21 सितंबर 2025 को सर्वपितृ अमावस्या के दिन समाप्त होगा। इन 15 दिनों में किए गए धार्मिक कार्य न केवल पितरों को तृप्ति देते हैं, बल्कि उनके आशीर्वाद से घर में सुख-समृद्धि भी आती है। आइए जानते हैं कि पितृपक्ष (Pitru Paksha) में पिंडदान और तर्पण की सही विधि क्या है और कैसे आप अपने पितरों की आत्मा को शांति दे सकते हैं।
श्राद्ध और पिंडदान का सही समय
श्राद्ध कर्म हमेशा दोपहर के समय (कुतुप काल) में किया जाता है। यह समय सुबह 11:36 बजे से दोपहर 12:24 बजे तक का होता है, जब सूर्य मध्याह्न में होता है। इस समय किया गया श्राद्ध पितरों तक सीधे पहुंचता है। पिंडदान के लिए भी यही समय उत्तम माना गया है।
पिंडदान की विधि
पिंडदान का अर्थ है ‘पिंड’ यानी चावल, जौ और तिल को मिलाकर गोला बनाना और उसे पितरों को अर्पित करना। पिंडदान हमेशा पवित्र नदी के किनारे या घर के किसी शांत और साफ स्थान पर करें।
चावल, जौ का आटा, काले तिल, दूध, शहद और गंगाजल पिंडदान करने के लिए जरूर होने चाहिए। पिंडदान करने वाला व्यक्ति स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करे। हाथ में कुश घास (दर्भ) और जल लेकर संकल्प लें।चावल, जौ के आटे और काले तिल को मिलाकर पिंड बनाएं। इन पिंडों को कुश के आसन पर रखें। इन पर दूध, शहद और गंगाजल अर्पित करें। अपने पितरों का नाम लेकर उन्हें ये पिंड समर्पित करें और उनसे आशीर्वाद की प्रार्थना करें। पिंडदान के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराएं। और उन्हें दान देना न भूलें।
तर्पण की विधि
तर्पण का अर्थ है ‘तप्त करना’ या तृप्त करना। यह जल अर्पित करने की एक विधि है। स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें। हाथ में जल, तिल और कुशा लें।सूर्य की ओर मुख करके दक्षिण दिशा की ओर खड़े हो जाएं, क्योंकि दक्षिण दिशा पितरों की दिशा मानी जाती है। अपने पितरों का नाम लेते हुए अंजलि में भरे जल को धीरे-धीरे बहने दें। यह क्रिया तीन बार दोहराएं। जल अर्पित करते समय ‘पितृभ्य: नम:’ मंत्र का जाप करें।
पितरों को प्रसन्न करने के अन्य उपाय
ब्राह्मणों को भोजन कराएं: पितृपक्ष (Pitru Paksha) में किसी ब्राह्मण को आदरपूर्वक घर पर बुलाकर भोजन कराना बहुत शुभ माना जाता है। भोजन में खीर-पूरी और अन्य पारंपरिक व्यंजन शामिल करें।
गाय को चारा खिलाएं: पितृपक्ष के दौरान गाय को हरा चारा खिलाने से पितृदेव प्रसन्न होते हैं।
गरीबों और जरूरतमंदों की मदद करें: इस दौरान गरीबों और जरूरतमंदों को दान-पुण्य करना भी पितरों को शांति प्रदान करता है।
पितृपक्ष (Pitru Paksha) में क्या करें और क्या न करें?
इस समय दान, ब्राह्मण भोजन और गरीबों को अन्न-वस्त्र देना शुभ माना गया है।
रोजाना पितरों का स्मरण कर दीप जलाएं और उन्हें जल अर्पित करें।
पितृपक्ष में नए कपड़े, वाहन या घर की खरीदारी करने से बचना चाहिए।
मांसाहार, मद्यपान और किसी भी तरह के अशुद्ध कार्य इस दौरान वर्जित हैं।
पितृपक्ष (Pitru Paksha) का महत्व
पितृपक्ष (Pitru Paksha) को श्राद्ध पक्ष भी कहा जाता है। मान्यता है कि इन 15 दिनों में यमराज पितरों को धरती पर अपने परिवार से मिलने के लिए मुक्त कर देते हैं। इस दौरान, वंशज अपने पितरों को पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध के माध्यम से भोजन और जल अर्पित करते हैं। ऐसा माना जाता है कि इन कार्यों से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और वे प्रसन्न होकर अपने वंशजों को आशीर्वाद देते हैं।









