सनातन धर्म में पितृ पक्ष का बहुत अधिक महत्व है। इस बार पितृपक्ष 20 सितम्बर, सोमवार से भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि से आरंभ होंगे। इनका समापन 6 अक्टूबर बुधवार को आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि पर होगा।
पितरों का श्राद्ध करते वक्त काफी सावधानी बरतनी चाहिए। क्योंकि आपके द्वार की गई एक लापरवाही आपके पूर्वजों को नाराज कर सकती हैं। ऐसे ही कुछ काम हैं जो श्राद्ध के समय बिल्कुल भी नहीं करना चाहिए। जानिए इनके बारे में विस्तार से। श्राद्ध का काम हमेशा सुबह दोपहर के समय करना चाहिए। वायु पुराण के अनुसार शाम का समय श्राद्धकर्म निषिद्ध है। क्योंकि शाम का समय राक्षसों का है।
श्राद्ध कर्म अपनी भूमि पर करना श्रेयस्कर होता है। अपनी भूमि पर किया गया श्राद्ध विशेष फलदायी होता है। इसके अलावा किसी पुण्यतीर्थ, मन्दिर या अन्य पवित्र स्थानों पर भी आप श्राद्ध कार्य कर सकते हैं। श्राद्ध कर्म के दौरान लोहे के बर्तनों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। इसके बदले आप तांबा, पीतल या अन्य धातु के बने बर्तनों का इस्तेमाल करें। शास्त्रों के अनुसार लोहे के बर्तन इस्तेमाल करने से परिवार पर अशुभ प्रभाव पड़ता है।
पित-पक्ष में जो व्यक्ति अपने पितरों का श्राद्ध करने वाले हैं उन लोगों को दाढ़ी या बाल नहीं कटवाना चाहिए। इससे धन की हानि माना जाता है।
श्राद्ध के लिए बनाए गए भोजन में से गाय, देवता, कौओं, कुत्तों और चींटियों के निमित भी भोजन जरूर निकालें। देखिये कोशिश करके कौओं और कुत्तों का भोजन उन्हें ही कराना चाहिए, जबकि देवता और चींटी का भोजन आप गाय को भी खिला सकते हैं।
श्राद्ध में तिल का उपयोग अच्छा माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार माना जाता है कि तिल की मात्रा अधिक होने पर श्राद्ध अक्षय हो जाता है। कहते है तिल पिशाचों से श्राद्ध की रक्षा करते हैं और इससे पितर देव प्रसन्न होते हैं। आप श्राद्ध के भोजन आदि में भी इनका उपयोग कर सकते हैं।